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gaurav dwivedi

समझते क्यो नही इसको
द्विजवंशी

समझते क्यो नही इसको द्विजवंशी

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

भूरि॒ नाम॒ वन्द॑मानो दधाति पि॒ता व॑सो॒ यदि॒ तज्जो॒षया॑से।
 कु॒विद्दे॒वस्य॒ सह॑सा चका॒नः सु॒म्नम॒ग्निर्व॑नते वावृधा॒नः ॥

पद पाठ
भूरि॑। नाम॑। वन्द॑मानः। द॒धा॒ति॒। पि॒ता। व॒सो॒ इति॑। यदि॑। तत्। जो॒षया॑से। कु॒वित्। दे॒वस्य॑। सह॑सा। च॒का॒नः। सु॒म्नम्। अ॒ग्निः। व॒न॒ते॒। व॒वृ॒धा॒नः ॥

हे सन्तानो ! जो आप लोगों के माता-पिता दूसरे विद्यारूप जन्म नामक द्विज ऐसा नाम विधान करते हैं, उनका सेवन निरन्तर तुम लोग करो ॥

o child !  Those of you, your parents, who do such a name for the second birth as a Dwij, do continue to use them.

(  ऋग्वेद ५.३.१० ) #ऋग्वेद #वेद #सन्तान #द्विज #सेवा
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Alka Pandey

आज द्विज है ,द्विज का चांद सब कोई देख लीजिए, शंकर जी के जटाओं में विराजमान । R K Mishra " सूर्य " BenZil (बैंज़िल) Ravi vibhute  SURAJ PAL S

आज द्विज है ,द्विज का चांद सब कोई देख लीजिए, शंकर जी के जटाओं में विराजमान । R K Mishra " सूर्य " BenZil (बैंज़िल) Ravi vibhute SURAJ PAL S #पौराणिककथा

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BRAHM PRAKASH

विश्व वेदना
देव गजब देखो यह अपनी
दुनिया बदल गई पल भर में
अश्रु यज्ञ की धूम घटा से
हाहाकार मचा अंबर में

पंडित जनार्दन प्रसाद झा द्विज

विश्व वेदना देव गजब देखो यह अपनी दुनिया बदल गई पल भर में अश्रु यज्ञ की धूम घटा से हाहाकार मचा अंबर में पंडित जनार्दन प्रसाद झा द्विज #poem

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Manjari Shukla

https://m.facebook.com/manjari.shukla.9?tsid=0.6367949962306412&source=result #कोरोनालॉकडाउन #वर्कफ्रॉमहोम #सुनोकहानी 
https://m.facebook.com/manjari.shukla.9?tsid=0.6367949962306412&source=result
मेरे प्यारे बच्चों और

#कोरोनालॉकडाउन #वर्कफ्रॉमहोम #सुनोकहानी https://m.facebook.com/manjari.shukla.9?tsid=0.6367949962306412&source=result मेरे प्यारे बच्चों और

10 Love

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Tanu Bhardwaj

धूप भि निकली सुबह ,पर ठंड में वो भी लगी जम जाने बिखेर के फिकी रंगीनी सूरज भी लगा कहीं सुस्ताने रात की ठंडी चादर में लिपट के गर्म हुए हर ज #Poetry

धूप भि निकली सुबह ,पर ठंड में वो भी लगी जम जाने बिखेर के फिकी रंगीनी सूरज भी लगा कहीं सुस्ताने रात की ठंडी चादर में लिपट के गर्म हुए हर ज #Poetry

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Shaarang Deepak

ShrimadBhagwadGeeta Chapter (01) Shlok (07) || श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानार्जन श्रृंखला अध्याय (01) श्लोक (07) 

Namaskar.
This verse/ shlok is

ShrimadBhagwadGeeta Chapter (01) Shlok (07) || श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानार्जन श्रृंखला अध्याय (01) श्लोक (07) Namaskar. This verse/ shlok is #Krishna #Mahabharat #Arjuna #parth #समाज #geeta

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DURGESH AWASTHI OFFICIAL

गुप्त नवरात्रि

©Surbhi Gau Seva Sanstan #सनातन_समाज_के_मौलिक_जातीय_तत्त्व।।
१. सनातन समाज में वर्ण चार ही होते हैं, पाँचवाँ वर्ण नहीं होता। ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य ये तीनों “द्व

सनातन_समाज_के_मौलिक_जातीय_तत्त्व।। १. सनातन समाज में वर्ण चार ही होते हैं, पाँचवाँ वर्ण नहीं होता। ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य ये तीनों “द्व #ज़िन्दगी

14 Love

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N S Yadav GoldMine

द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढ़ते और रोते हैं पढ़िए महाभारत !! 📄📄
{Bolo Ji Radhey Radhey}
महाभारत: स्‍त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 38-42 {Bolo Ji Radhey Radhey}📒 विधि पूर्वक अग्नि की स्थापना करके चिता को सब ओर से प्रज्वलित कर दिया गया है और उस पर द्रोणाचार्य के शरीर को रखकर साम-गान करने वाले ब्राम्हण त्रिवेद साम का गान करते हैं।

📒 माधव। इन जटाधारी ब्रम्हचारियों ने धनुष, शक्ति, रथ की बैठक और नाना प्रकार बाण तथा अन्य आवष्यक वस्तुओं से उस चिता का निमार्ण किया। 

📒 वे उसी महान् तेजस्वी द्रोर्ण को जलाना चाहते थे; इसलिये द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढते और रोते हैं, कुछ लोग अन्त समय में उपयोगी त्रिवेद सामों का गान करते हैं।

📒 चिता की अग्नि में अग्नि होत्र सहित द्रोणाचार्य को रखकर उनकी आहुति दे उन्हीं के षिष्य द्विजातिगण कृपी को आगे और चिता को दायें करके गंगाजी के तट की ओर जा रहे हैं।

©N S Yadav GoldMine
  #merasheher द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढ़ते और रोते हैं पढ़िए महाभारत !! 📄📄
{Bolo Ji Radhey Radhey}
महाभारत: स्‍त्री पर्व त्रयोविं

#merasheher द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढ़ते और रोते हैं पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्‍त्री पर्व त्रयोविं #पौराणिककथा

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ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

 बे मतलब का शौक मत पाला करो,इनका भी घर आने का कोई इंतजार कर रहा होता है,,,, पंक्षी पर्यावरण गुलशन की रौनक , सृष्टि की सुषमा होते है,,,,,,,,,फ

बे मतलब का शौक मत पाला करो,इनका भी घर आने का कोई इंतजार कर रहा होता है,,,, पंक्षी पर्यावरण गुलशन की रौनक , सृष्टि की सुषमा होते है,,,,,,,,,फ

7 Love

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Neeraj Vats

मैं भी रावण तू भी रावण 
फिर खुद पर क्यों इल्ज़ाम करे है
क्यों करे कलंकित रावण को
सीताहरण तो आज राम करे है
क्यों करे कलंकित रावण को ......

हर घर में लेती जन्म फूल सी कोमल जानकी
जन्म से वो लड़े लड़ाई अपने स्वाभिमान की
सीता की अग्निपरीक्षा तो हर कोई चाहे
पर क्या कोई राम से काम करे है
क्यों करे कलंकित  रावण को ........

होता अगर इतना दुष्ट दशानन
तो राम मार चरणाभिनन्दन न करता
द्विज था वो महावीर लंकेश
गर घायल न होता तो गर्जन न करता
ऐसे ही न बनते महादानी
तत्काल दस सिर दान करे है
क्यों करे कलंकित रावण को  ......

भले किया हो हरण उन्होंने
पर क्या कभी सीता का अपमान किया है
कहलाते हो तुम राम आज के
पर क्या कभी किसी सीता का सम्मान किया है
तुम सीता हो या हो शांता
तुम्हारे चरणों में नीरज प्रणाम करे है
क्यों करे कलंकित रावण को .........

©Neeraj Vats #Dussehra2021 
#Vijaydashmi 

#NojotoRamleela 

मैं भी रावण तू भी रावण 
फिर खुद पर क्यों इल्ज़ाम करे है
क्यों करे कलंकित रावण को

#Dussehra2021 #Vijaydashmi Ramleela मैं भी रावण तू भी रावण फिर खुद पर क्यों इल्ज़ाम करे है क्यों करे कलंकित रावण को #पौराणिककथा #NojotoRamleela

12 Love

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Amar Anand

-परम सत्य योगपथ-

जीवन रहस्य -----
नीचे कैप्शन में....... जब तक वह जीवन न मिल जाए, तब तक जन्मदिन मत मनाए। तब तक सोचें मत जन्म की बात।

एक जिसे जन्म कहते हैं, उसे जन्म मत समझ लेना। वह सिर्फ एक सोशल म

जब तक वह जीवन न मिल जाए, तब तक जन्मदिन मत मनाए। तब तक सोचें मत जन्म की बात। एक जिसे जन्म कहते हैं, उसे जन्म मत समझ लेना। वह सिर्फ एक सोशल म

5 Love

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Poetry with Avdhesh Kanojia

विजय प्रदाता धर्ममय रथ
-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
समय था कौतूहल का बहु
लंका की धरती पर।
था रावण इक रथ विशाल पर
श्रीराम थे खड़े धरा पर।।
देख के राम को इस प्रकार
दुखी हुए विभीषण।
नयनों में अपने प्रेमाश्रु लिए
हृदय में कष्ट था भीषण।।
बोले हाथ जोड़कर कर वे
हे रघुवर अवधेश।
रावण है धारण कवच किए
तव है तपस्वी वेश।।
    (शेष अनुशीर्षक में) #श्रीराम #ram #god #victory #war #perfect #poem 
विजय प्रदाता धर्ममय रथ
-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -

समय था कौतूहल का बहु
लंका की धरत

#श्रीराम #Ram #God #victory #War #Perfect #poem विजय प्रदाता धर्ममय रथ -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - समय था कौतूहल का बहु लंका की धरत

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vasundhara pandey

दर्द की ज़िन्दगी नहीं मुझे सुकून की मौत चाहिए 
सुलह की धूमी नहीं बस प्रतिकार चाहिये...  नहीं चाहिए कोई...!
धर्म से अपने डिगूँ नहीं कर्म से कभी हटूँ नहीं 
नहीं चाहिए दया कभी, अभी करुणामयी दशा नहीं... 
क्या हठ कर जीत लिया, जो था अ

नहीं चाहिए कोई...! धर्म से अपने डिगूँ नहीं कर्म से कभी हटूँ नहीं नहीं चाहिए दया कभी, अभी करुणामयी दशा नहीं... क्या हठ कर जीत लिया, जो था अ #Decision #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqwriters #Final #cheaters #risingphoenix #sheetallodiya

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Divyanshu Pathak

आज परिवर्तन की गति बढ़ गई है।
कम्प्यूटर आगे निकल गया
मानव पीछे रह गया ।
अत: हम सब टीवी फोन, इंटरनेट से बंध गए।
छूट पाने की शक्ति कम पड़ गई।
धर्म को घुटने टेकते देखा जा सकता है।
हर परिवार में सब-कुछ बदल गया।
शर्म के मारे हमने मुखौटे लगाने शुरू कर दिए।
हमने सत्य को छोड़ दिया, अपरिग्रह को भूल गए
अहिंसा की अवधारणा को ही नहीं जानते।
बच्चों को हिंसा के उदाहरण देकर
अहिंसा सिखा रहे हैं।  :💕👨
Good morning ji
☕☕☕☕🍨🍧🍧☕😊🍉🍉🍉🐒🍫🍫🍫🙏🍎🍎🍎🍉🍉🍇🍸
:
आज धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में राजनीति का प्रवेश बढऩे लगा है। हम देख चुके हैं कि ‘जीवन विज

:💕👨 Good morning ji ☕☕☕☕🍨🍧🍧☕😊🍉🍉🍉🐒🍫🍫🍫🙏🍎🍎🍎🍉🍉🍇🍸 : आज धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में राजनीति का प्रवेश बढऩे लगा है। हम देख चुके हैं कि ‘जीवन विज

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Divyanshu Pathak

वा लकुटी अरु कामरिया पे, राज तिहुँ पुर को तजि डारौं !
आठहुँ सिद्धि नोउ निधि कौ सुख, नंद की गाय चराय विसारों !!
रसखानि जबही इन नैननि ते,बृज के बन बाग़ तड़ाग निहारूँ !
कोटिक के कलधौत के धाम,करील की कुँजन ऊपर वारूँ !!
:


क्रमशः---😊02 ☕🐇#बृजधाम☕🍵#साहित्य😍😍#शिक्षा💕🍫💓🐦#अध्यात्म🐦☕#हिंदी🐇🐰🍫🍵#ज्ञान☕🐇🐰🍀🍂🐿😀#संस्कार😙💕😍🍫🍵☕
:गीता स्पष्ट कह रही है कि जो जन्म लेता है, वह मरता है। आपके

☕🐇बृजधाम☕🍵साहित्य😍😍शिक्षा💕🍫💓🐦अध्यात्म🐦☕हिंदी🐇🐰🍫🍵ज्ञान☕🐇🐰🍀🍂🐿😀संस्कार😙💕😍🍫🍵☕ :गीता स्पष्ट कह रही है कि जो जन्म लेता है, वह मरता है। आपके

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Vikas Sharma Shivaaya'

श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हो, माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।

 

           ॥चौपाई॥

 जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
अर्थ: हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, हर कार्य को शुभ व कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

 
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥
अर्थ: घर-घर सुख प्रदान करने वाले हे हाथी से विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान आपकी जय हो। श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं, आप ही बुद्धि के विधाता है बुद्धि देने वाले हैं।

 
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
अर्थ: हाथी के सूंड सा मुड़ा हुआ आपका नाक सुहावना है पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रुपी तीन रेखाएं भी मन को भा जाती हैं अर्थात आकर्षक हैं।

 
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
अर्थ: आपकी छाती पर मणि मोतियां की माला है आपके शीष पर सोने का मुकुट है व आपकी आखें भी बड़ी बड़ी हैं।

 
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
अर्थ: आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है व सुगंधित फूल चढाए जाते हैं।

 
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
अर्थ: पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी इतनी आकर्षक हैं कि ऋषि मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुश हो जाता है।

 
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥
अर्थ: हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है।

 
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥
अर्थ: ऋद्धि-सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं व आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है।

 
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥
अर्थ: हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ व मंगलकारी है।

 
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
अर्थ: एक समय गिरिराज कुमारी यानि   माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया।

 
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥
अर्थ: जब उनका तप व यज्ञ अच्छे से संपूर्ण हो गया तो ब्राह्मण के रुप में आप वहां उपस्थित हुए।

 
अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥
अर्थ: आपको अतिथि मानकार माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की।

 
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
अर्थ: जिससे प्रसन्न होकर आपने माता पार्वती को वर दिया।

 
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
अर्थ: आपने कहा कि हे माता आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा।

 
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अर्थ: जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा।

अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥
अर्थ: इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए।

 
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥
अर्थ: माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरु किया, माता पार्वती आपको गौर से देखती रही आपका मुख बहुत ही सुंदर था माता पार्वती में आपकी सूरत नहीं मिल रही थी।

 
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
अर्थ: सभी मगन होकर खुशियां मनाने लगे नाचने गाने लगे। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे।

 
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
अर्थ: भगवान शंकर माता उमा दान करने लगी। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन करने के लिए आने लगे।

 
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥
अर्थ: आपको देखकर हर कोई बहुत आनंदित होता। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आये।

 
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥
अर्थ: लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे ( दरअसल शनि को अपनी पत्नी से श्राप मिला हुआ था कि वे जिस भी बालक पर मोह से अपनी दृष्टि डालेंगें उसका शीष धड़ से अलग होकर आसमान में उड़ जाएगा) और बालक को देखना नहीं चाह रहे थे।

 
गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥
अर्थ: शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गई व शनि को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे के आने से व इस उत्सव को मनता हुआ देखकर खुश नहीं हैं।

 
कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
अर्थ: इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट  हो जाएगा।

 
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥
अर्थ: लेकिन इतने पर माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ व उन्होंनें शनि को बालक देखने के लिए कहा।

 
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥
अर्थ: जैसे ही शनि की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया।

 
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥
अर्थ: अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई व बेहोश होकर गिर गई। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।

 
हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥
अर्थ: इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये॥
अर्थ: उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां पंहुचे व अपने सुदर्शन चक्कर से हाथी का शीश काटकर ले आये।

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥
अर्थ: इस शीष को उन्होंनें बालक के धड़ के ऊपर धर दिया। उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर उसमें प्राण डाले।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥
अर्थ: उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा व वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी। बाकि देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिये।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
अर्थ: जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा आने की कही।

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
अर्थ: आदेश होते ही कार्तिकेय तो बिना सोचे विचारे भ्रम में पड़कर पूरी पृथ्वी का ही चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े, लेकिन आपने अपनी बुद्धि लड़ाते हुए उसका उपाय खोजा।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
अर्थ: आपने अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये।

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
अर्थ: इस तरह आपकी बुद्धि व श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए व देवताओं ने आसमान से फूलों की वर्षा की।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥
अर्थ: हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता।

मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
अर्थ: हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं, पापी हूं, दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी विनय आपकी प्रार्थना करुं।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥
अर्थ: हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं।

अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
अर्थ: हे प्रभु दीन दुखियों पर अब दया करो और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।

                    ॥दोहा॥

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
अर्थ: श्री गणेश की इस चालीसा का जो ध्यान से पाठ करते हैं। उनके घर में हर रोज सुख शांति आती रहती है उसे जगत में अर्थात अपने समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है।

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥
अर्थ: सहस्त्र यानि हजारों संबंधों का निर्वाह करते हुए भी ऋषि पंचमी (गणेश चतुर्थी से अगले दिन यानि भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी) के दिन भगवान श्री गणेश की यह चालीसा पूरी हुई।

         ॥इति श्री गणेश चालीसा ॥ 

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय

श्री गणेश चालीसा जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय #समाज

5 Love

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Divyanshu Pathak

गीता स्पष्ट कह रही है कि
जो जन्म लेता है, वह मरता है।
आपके सम्बन्धों का भी
प्रकृति में कोई अर्थ नहीं है। 
अर्जुन को कृष्ण कह रहे हैं कि
तू चाहे इनको मार या नहीं मार,
मैं इनको पहले ही मरा हुआ देख रहा हूं।
अत: मृत्यु का शोक करना उचित नहीं है।
तू क्षत्रिय है,युद्ध करना तेरा धर्म है। गीता ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक इकाई रूप में वर्णन किया है जो अन्यत्र नहीं मिलता। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक पुरुष है, शेष प्रकृति है। सत-

गीता ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक इकाई रूप में वर्णन किया है जो अन्यत्र नहीं मिलता। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक पुरुष है, शेष प्रकृति है। सत- #शिक्षा #पंछी #पाठक #हरे #श्रीमद्भगवद्गीता

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Gumnam Shayar Mahboob

Lajawab 2 Q1-न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य् नाम महद्यस:(यजुर्वेद अधयाय32,मंत्र 3)
अर्थात- उस ईश्वर की कोई मूर्ति या प्रतिमा नही जिसका महान यश है
चार वेदों

Q1-न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य् नाम महद्यस:(यजुर्वेद अधयाय32,मंत्र 3) अर्थात- उस ईश्वर की कोई मूर्ति या प्रतिमा नही जिसका महान यश है चार वेदों

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Divyanshu Pathak

विविक्तसेवी लघ्भाषी यतवाक्कायमानसः।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रित:।।
(गी. अ.- 18,श्लोक - 52)

पवित्र वातावरण में रह कर नित्य अपने शब्दों पर विचार करने वाला वैरागी मुझ पर आश्रित रहता है तो इस ध्यान से--

अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधम् परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
(गी. अ.-18,श्लोक-53)

अपने अहंकार ,बल,घमण्ड,काम और क्रोध को त्याग देने में सक्षम होता है और अपने शान्त व्यवहार से पृथ्वी पर मुझे पाता है। #हुलस_रहा_माँटी_का_कण_कण_उमड़_रही_रसधार_है_त्योहारों_का_देश_हमारा_हमको_इससे_प्यार_है_।
भादों माह लगते ही हर दिन व्रत, पर्व, और उत्सव के रूप म

हुलस_रहा_माँटी_का_कण_कण_उमड़_रही_रसधार_है_त्योहारों_का_देश_हमारा_हमको_इससे_प्यार_है_। भादों माह लगते ही हर दिन व्रत, पर्व, और उत्सव के रूप म #yqhindi #पाठकपुराण #ऋषिपँचमी #देवछठ

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