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Bhupendra Rawat
बन जाती अखबारों के मुख्य पृष्ठ की खबर और न्यूज़ चैनलों की हेड लाइन्स अगर मरता कोई नेता कभी भूख की तड़प से लेकिन नजाने कितनो को ही खा जाती है पेट की आग लेकिन फिर भी नही बनती वो कभी हेड लाइन्स और उन बड़े अखबारों के मुख्य पृष्ठ की खबर जिनपर चलती रहती थी दिन भर ये चर्चाएं उन सभी महारथियों के नेतृत्व में जिन्होंने कभी देखी ही नहीं थी पेट की आग, न ही महसूस की थी कभी भूख की तड़प वही तड़प जिसे शांत करने के लिए एक मुसाफिर ने किया था, मिलों लंबा सफर लेकिन नहीं दे पाया झूठा दिलासा अपने भूखे पेट को और त्याग दिए अपने प्राण कर दिया समर्पित अपना मृत शरीर उन छोटे जीवों व पंछियो को जो कई दिनों से तड़प को शांत करने के लिए तलाश रहे थे भोजन। भूपेंद्र रावत 30।04।2021 ©Bhupendra Rawat बन जाती अखबारों के मुख्य पृष्ठ की खबर और न्यूज़ चैनलों की हेड लाइन्स अगर मरता कोई नेता कभी भूख की तड़प से लेकिन नजाने कितनो को ही खा जाती
OMG INDIA WORLD
गिद्ध क्या आपको उस चित्र की याद है? उस चित्र का नाम है- ‘गिद्ध और छोटी बच्ची’। इस चित्र में एक गिद्ध, भूखी बच्ची की मृत्यु का इंतजार कर रहा है। एक दक्षिण अफ्रीकी फोटो पत्रकार केविन कार्टर ने इसे मार्च 1993 के अकाल में सूडान में खींचा था। उस फिल्म के लिए उसे पुलित्जर पुरस्कार दिया गया था। लेकिन इतना सम्मान प्राप्त करने के बाद भी कार्टर ने 33 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर ली थी। उस आत्महत्या का कारण क्या था? वास्तव में, जब वह सम्मान मिलने की खुशी मना रहा था, और उस पुरस्कार का समाचार अनेक टीवी समाचार चैनलों पर दिखाया जा रहा था, उसी समय किसी ने उससे एक टेलीफोन इंटरव्यू में पूछा कि अन्त में उस लड़की का क्या हुआ? कार्टर ने उत्तर दिया कि मैं कुछ कह नहीं सकता, क्योंकि मैं अपनी उड़ान पकड़ने की जल्दी में था। ‘वहाँ कितने गिद्ध थे?’ उसी आदमी ने पूछा। कार्टर ने कहा, ‘मैं समझता हूँ कि वहाँ एक ही था।’ टेलीफोन पर दूसरी ओर से बात कर रहे व्यक्ति ने कहा, ‘मैं कह रहा हूँ कि वहाँ उस समय दो गिद्ध थे, उनमें से एक के पास कैमरा था।’ इन शब्दों की सार्थकता समझते ही कार्टर बहुत दुःखी हो गया और उसके कुछ समय बाद उसने आत्महत्या कर ली। हमें हर स्थिति में मानवता का ध्यान रखना चाहिए। कार्टर आज भी जिन्दा होता, यदि उसने उस भूख से मरती हुई बच्ची को संयुक्त मिशन के भोजन केन्द्र तक पहुँचा दिया होता, जो वहाँ से केवल आधा मील दूर था, शायद वह बच्ची वहीं पहुँचने का प्रयास कर रही थी। आज फिर, अनेक गिद्ध हाथों में कैमरा लेकर पूरे देश से अपने घर लौट रहे हैं, जो केवल जलती हुई चिताओं के और ऑक्सीजन के अभाव में दम घुटने से मरने वाले लोगों के चित्र खींच रहे हें और उनको ऑनलाइन बेच रहे हैं। इन गिद्धों को मौतों की चिन्ता करने के बजाय उनके समाचार एकत्र करने की चिन्ता अधिक है, ताकि चैनलों की टीआरपी बढायी जा सके। वे जलती हुई चिताओं में ईंधन डालकर ब्रेकिंग न्यूज एकत्र करने में व्यस्त हैं। केविन कार्टर में स्वाभिमान था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। लेकिन ये पत्रकार नामधारी गिद्ध गर्व के साथ ब्रेकिंग न्यूज बनाने में व्यस्त हैं। 🙏💥 ©OMG INDIA WORLD गिद्ध क्या आपको उस चित्र की याद है? उस चित्र का नाम है- ‘गिद्ध और छोटी बच्ची’। इस चित्र में एक गिद्ध, भूखी बच्ची की मृत्यु का इंतजार कर र
यशवंत कुमार
हाथों में बेकारी है !! घूम-घूम, सब देख-देख नज़रों ने खाया धोखा! खून के प्यासे दो जनों में रिश्ता भाई का चोखा !! जिंदगी की भीख मांगता बेटे से पिटता बाप! मंदिर - मंदिर माथा टेका मिल गया अभिशाप !! Continue.... Read Full poem in Caption. हाथों में बेकारी है !! घूम-घूम, सब देख-देख नज़रों ने खाया धोखा! खून के प्यासे दो जनों में रिश्ता भाई का चोखा !! जिंदगी
यशवंत कुमार
दोनों हाथों में बेकारी है! Read in caption... #desh #duniya #corruption #riste #sarkar #terrorism #change #unemployment हाथों में बेकारी है !! घूम-घूम, सब देख-देख नज़रों ने
यशवंत कुमार
दोनों हाथों में बेकारी है !! घूम-घूम, सब देख-देख नज़रों ने खाया धोखा! खून के प्यासे दो जनों में रिश्ता भाई का चोखा !! जिंदगी की भीख मांगता बेटे से पिटता बाप! मंदिर - मंदिर माथा टेका मिल गया अभिशाप !! माँ ने जब समझाया लाडली चिल्ला कर बोली ! इतना रोका-टोका मत कर खा लूंगी नींद की गोली!! Read in Caption... हाथों में बेकारी है !! घूम-घूम, सब देख-देख नज़रों ने खाया धोखा! खून के प्यासे दो जनों में रिश्ता भाई का चोखा !! जिंदगी
Dr Jayanti Pandey
कोई जिए, कोई मरे; इन्हें फर्क पड़ता नहीं जहां राजनीति चमके ,वो ही खबर होती है। यह लोकतंत्र है चार स्तंभों वाला साहब सभी के बिकने से इसकी बसर होती है। #जाति, धर्म, रीज़न में बांटते लड़ाते अखबारों और चैनलों से वितृष्णा हो गई है.. #दोहरे मानदंड #jayakikalamse #yqdidi#yqhindi#yqpolitics
#maxicandragon
इन्हें चैनलों में इश्तिहारों में थानों में अखबारों में मत ढूंढना ये सुअर के पिल्लें हैं, मरने के बाद भी गटर में ही मिलेंगे #Sadharanmanushya ©#maxicandragon इन्हें चैनलों में इश्तिहारों में थानों में अखबारों में मत ढूंढना ये सुअर के पिल्लें हैं, मरने के बाद भी गटर में ही मिलेंगे #Sadharanmanus
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त