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kumarउमेश

#Flute "सर" (SIR ) शब्द का अर्थ #विचार

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Shravan Goud

स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना। --अज्ञात

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स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात

कलीम शाहजहांपुरी (साहिल)

शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)

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उसकी रंगत है जैसे कोई खिलता गुलाब,
उसकी बातों से टपके इल्हाम की बारिश.!

©कलीम शाहजहांपुरी (साहिल) शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)

Kavita jayesh Panot

शब्द वही होते है वर्ण माला के,
लेकिन वक्त के बदलाव के साथ ,
तार बदल जाते है।
कभी सुख ,एहसास खुशी का दिला जाता है
तो कभी वही सु और ख से सूखापन बन जाता है।
जो एक नकारात्मकता का बोध है।
कविता जयेश पनोत

©Kavita jayesh Panot #शब्द#भेद#वक्त#अर्थ

Hasanand Chhatwani

#सिमित शब्द #असीमित अर्थ # #विचार

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*सीमित शब्द हो और*

*असीमित अर्थ हो...*

*लेकिन इतना ही हो कि*

*शब्द से न कष्ट हो...* #सिमित शब्द #असीमित अर्थ #

Chetan Jaat

शब्द आत्मा है और उनके अर्थ उस आत्मा की अभिव्यक्ति, इसलिए शब्द और अर्थ दोनों का बोध अनिवार्य है ।

©Chetan Jaat #notjo  #शब्द #अर्थ #अभिव्यक्ति

Abhishek shukla



मैं शब्द हूँ 
तू मेरा अर्थ बन जा।।। #nojoto #love #nojotohindi #शब्द '#अर्थ

राहुल अग्निहोत्री

शब्द एक अर्थ अनेक #ताड़ना #विचार

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ढ़ोल गवांर शुद्र  पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी शब्द एक अर्थ अनेक
#ताड़ना

pearls of shayari

प्रेम केवल शब्द था, 
शब्दों में था उसका प्रचार।
तेरे मिलने से ही अर्थ मिला,
तू ही है अब प्रेम का सार।।
❤ #प्रेम #शब्द #प्रचार #अर्थ #सार

Ratan Singh Champawat

दृग के द्वार से

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आज कुछ स्पंदन...
❤❤❤❤❤
माना कि एक कतरा भर हूं मैं ....
किंतु मेरा अस्तित्व गहरा है सातों समंदरों से भी यह सारे.नदियां ,तालाब ,झीलें, महासागर ..सब के सब बने हैं मुझ ही से तो 
समाए हैं.यह सब मुझे ही में 
और एक दिन फिर से..
सिमट आएंगे मुझ ही में यह सब... 
एक अनछुई रुहानियत हूँ मैं.. 
अनकही व्यथा कथा की अभिव्यंजना हूँ..मैं स्वानुभूत पीड़ा का साक्षात्कार हूं ..मैं पवित्र..पावन..पुनीत हूं..
तभी तो सूरज भी मुझे छूकर झिलमिला उठता है..इंद्रधनुषी सतरंगी आभा से
चिर मुक्त हूं मैं ..सारे तटों ,कूलों,साहिलों की परिभाषाएं कभी बांध न सकी मुझको किसी सीमा मे.. मैं समाया हूं...बस अपने ही आकार में..निराकार हो कर.. 
सृजना भी मेरी..मैंने ही की है
इसीलिए तो मैं..विस्तृत हूं..समस्त विस्तार से परे तक !
किंतु मेरे दोस्त 
विडंबना यही है कि.
तुम सागर की हदों में ही उलझे रहे...मुग्ध रहे..किनारों की कशमकश तक ही..
जकड़े रहे..तुच्छता के मोहपाश में..
असीम की अनकही अनुभूति का आकर्षण
लय में विलय..लीन में विलीन..
हो जाने का आनंद 
वंचित रहे इन सब से तुम  
मात्र कुछ प्रवंचनाओं के कारण
और मुझे अफसोस है मेरे दोस्त
कि तेरी दृग देहरी पर 
मैं कब तक ठहरता  
लो मैं तो चला 
फिर अपने उसी निरपेक्ष पटाक्षेप की ओर 
मगर जा रहा हूं छोड़कर कुछ स्पन्दन अपने जो देते रहेंगे दस्तक
तुम्हारे दिल की देहरी पर अक्सर..
 दृग के द्वार से
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