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Ravindra Singh
'मैं कैसे कह दूँ कि तू गुनेहगार नहीं' जुल्म करने वाला तू ही, तू ही है सहने वाला मैं कैसे कह दूँ कि तू गुनेहगार नहीं। कभी था तू व्यक्ति उच्च श्रेणी के वर्ण का, तूने निम्न को कुछ समझा नहीं, आज जब जन्म मिला है निम्न में, बिन सहे जुल्म कटेगी ज़िन्दगी तेरी पार नहीं। ज़िन्दगी का हिसाब ऊपर वाला नहीं, तेरा कर्म करेगा, कहीं दूसरी दुनिआ में नहीं होता स्वर्ग व नर्क, दोनों यहीं हैं,तू यहीं जियेगा, यहीं मरेगा। तू धार्मिक किताबें भले ही पढ़ता हो, तू पूजा पाठ भी करता हो, लेकिन जब बात तू जातिवाद और धर्मवाद को बढ़ावा देने की करता है तो तू समझ खुद को भले ही, पर तू समझदार नहीं। जुल्म करने वाला तू ही, तू ही है सहने वाला मैं कैसे कह दूँ कि तू गुनेहगार नहीं। ©Ravindra Singh मैं कैसे कह दूँ कि तू गुनेहगार नहीं #SunSet
Mr.Poet
तेरे आने की कोई उम्मीद नहीं मगर .... कैसे कह दूँ कि इंतज़ार नहीं...
guru
हर रंग में रंगा मेरा वतन कैसे कह दूँ कि बस हिंन्दू हुँ मै , जिस देश की पराकाष्ठा पर लाखों वीर शहीद हुए , जिस वतन का अस्तित्व इन वीरों की सौग़ात है, जिस वतन का इतिहास गुरु के स्वर्ण अक्षरों से निर्मित हैं, मेरे वतन का नाम कोई धर्म , जाति, सम्प्रदाय से न होकर, वीरता , साहस ,सहनशीलता ज्ञान के आधार पर भारत रखा... मेरे वतन को भारत माँ के नाम से सम्बबोधित किया जाता हैं , जहाँ नारी ममतामयी ,आत्मबलिदानी , लक्ष्मी दैवीय , अर्धांगनी के रूप में पूजनीय हैं , मेरे वतन ने विश्व में अपने ज्ञान का ड़ंका बजाकर विश्व गुरु की ख्याति पायी हैं , मैरे वतन की मिट्टी में हर मिट्टी समाहित हैं , जहाँ धर्म विविधता के बावजूद हर सैनिक बिना धर्म विभेद के देश की रक्षा को तत्पर हैं, जहाँ हर छोटे -बड़े का आदर सत्कार हैं , जहाँ रूप ,रंग ,धर्म जाति में विविधता के बावजूद समान न्याय प्रणाली विध्यमान हैं, मैरा वतन कोई लिखावट थोड़ी न हैं जो मिट जाएँ , ये तो मेरी माँ के रज़ से निर्मित तपोभूमि हैं जो मिट कर भी न मिट पाएँ , हर रंग मै रंगा मेरा वतन कैसे कह दूँ कि बस हिन्दू हूँ मै...., हर रंग में रंगा मैरा वतन कैसे कह दूँ कि बस हिन्दू हुँ मै....
Nehru Katariya {ajnabi}
2 Years of Nojoto कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
Anant Nag Chandan
Dear God एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ कितनी दहलीज़ों पे सज्दा एक पेशानी करे ©Anant Nag Chandan एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ कितनी दहलीज़ों पे सज्दा एक पेशानी करे #dear_god
Swechha S
सोचती हूँ लिखना छोड़ दूँ, कि क्या फ़र्क़ पड़ता है लिखने से मेरे फिर सोचा यह कहानियाँ, कवितायेँ ही तो जोड़ती है मुझे तुमसे फिर सोचा कि तुमसे सारी बातें करने का यही एक तरीका है और तुमसे तुम्हारी बात करना मानों होता है जैसे सांस लेना भी - Swechha सोचती हूँ लिखना छोड़ दूँ, कि क्या फ़र्क़ पड़ता है लिखने से मेरे💌 #19Mar #Alone