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Parasram Arora

दुखों की संरचना........

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जीवन मे  हमारे कई  दुख  वृहदआकार क़े
होते है  जो  हमें  रुलाते भी हैँ उलझाते  भी  है
लेकिन  ज्यादातर  दुख  सूक्ष्म रूप  मे ही आते है
जो  रुलाते तो नहीं लेकिन क्रोध  और  तनाव
आदि  को  आने से रोक नहीं पाते. हैँ
जैसे  दाल    चावल  खाते हुए   मुँह मे कंकड़ का  आ जाना........ रोटी  क़े किसी निवाले मे  गृहणी क़े
बाल का  आ जाना...... या  फिऱ दाल  सब्जी मे
नमक का  ज़्यदा होना  और कभी कभार किसी
उत्पाती   मच्छर  की मृत  देह का   किसी
तरी वाली  सब्जी मे  आ जाना...
इन लघु  दुखों  क़े लिए हमें कई बार
वृहद  ग़ुस्से  को  देखा जा सकता है और फलस्वरूप
परोसी हुई  थाली को  उठा  कर  फैंक देने. का
प्रतिकार  भी  हमसे   हो  जाता है

©Parasram Arora दुखों  की  संरचना........

Praveen Jain "पल्लव"

दर्द की संरचना रच बैठे है #IndiaFightsCorona

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#IndiaFightsCorona पल्लव की डायरी
मिटाकर सब जज्बा 
शान खो बैठे है
कोरोना के चक्रव्यूह में
आन भारत की खो बैठे है
साजिशों के ताम झाम से
कत्ल करने के पैगाम दे बैठे है
झूठ की बुनियाद पर
दर्द की संरचना रच बैठे है
स्टैंडर वर्ल्ड हेल्थ के अपनाकर
जहर डोजो का देकर
लाशो का सौदा कर बैठे है
ईमान धर्म गया भाड़ में
जीने का जज्बा जनता से छीन बैठे है
                                   प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" दर्द की संरचना रच बैठे है

#IndiaFightsCorona

MOHAN KIRADE

सुरजना की खेती

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Sarita Shreyasi

वो सुलगाती है कुछ ख्वाहिशें, चढ़ा देती है उम्मीदों की हांडी, वक़्त की धीमी आँच पर, हर रोज अपने ख्वाब रांधती है, और सबकी थाली में खुद को थोड #औरत #yqdidi #ख़्वाब #गुणसूत्र

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वो सुलगाती है कुछ ख्वाहिशें,
चढ़ा देती है उम्मीदों की हांडी,
वक़्त की धीमी आँच पर,
हर रोज अपने ख्वाब रांधती है,
और सबकी थाली में खुद को 
थोड़ा - थोड़ा परोस देती है।
सदियों से उसके ख्वाब यूं ही जिंदा है,
पीढ़ी दर पीढ़ी, 
वो ये बीज बोती है,
संजोती है,
गुणसूत्रों में ख्वाहिशें ढोती है। वो सुलगाती है कुछ ख्वाहिशें,
चढ़ा देती है उम्मीदों की हांडी,
वक़्त की धीमी आँच पर,
हर रोज अपने ख्वाब रांधती है,
और सबकी थाली में खुद को 
थोड

Rachna Baghel

रचना की रचना

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Rachna Baghel

रचना की रचना #Shayari

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