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Akanksha Soni

मंज़िल दूर नहीं नहीं, फिर से उठ और मंज़िल को जीत le....🖤🔸️

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मंजिले तो हमने भी तय कर रखी थी,
 पर शायद खुदा को और ही कुछ मंजूर था। 
पर हम मुसाफिर इतने कमजोर तो नहीं, 
कि रास्ता बदलने पर मंज़िल ही छोड़ दे, 
हम तो उनमें से है जो गिर कर फिर से।
उठ कर दुगनी मेहनत से के साथ ,
अपनी मंज़िल की और आगे चल पड़ा हैं। 

          👀🙌❤



 मंज़िल दूर नहीं नहीं, 
फिर से उठ और मंज़िल को जीत le....🖤🔸️

taiba ilyas

'ज़िंदगी' गिर कर टूट जाने का नहीं, फिर से उठ खड़े होने का नाम है। #Travelstories #Poetry

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ज़िंदगी में कभी गिरना नहीं।
गिर गए, तो टूटना नहीं।
टूट गए, तो बिखरना नहीं।
बिखर भी गए, 
तो बिखरे टुकड़ों को समेट, 
फिर चल पड़ना।

©taiba ilyas 'ज़िंदगी' गिर कर टूट जाने का नहीं, फिर से उठ खड़े होने का नाम है।

#Travelstories

chanderman

इनायत हुई कैसे उसे हम याद आए साजिश तो नहीं फिर से लौट आने की #Love #emtional #Pyar #mohabaat

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इनायत हुई कैसे
उसे हम याद आए
साजिश तो नहीं
फिर से लौट आने की इनायत हुई कैसे
उसे हम याद आए
साजिश तो नहीं
फिर से लौट आने की
#love #emtional #pyar #mohabaat

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द

प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
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