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Ek villain
आलस्य के कारण अपने ग्रैंडपा की दुर्दशा देख आज का टेंडर स्टेशन जा रहा था तो गुड़ बनाने की इसमें भी खानदानी रावता के कारण सांस लेते हुए गुण गुना का पूरा मन कर रहा था लेकिन उसे अपने पूर्वजों की तरह भूख से मरना भी नहीं था उन्होंने नैतिक शिक्षा की कहानी में पढ़ रहा था ताकि हमें पूर्वजों की गलती से सबक लेना चाहिए उसने ठंड में कमर कसी और बड़ा बरात की कठिन दिनों को सरल बनाने के निकल गया उसने सोचा कि चलो तथागत ही मेहनती के बाद एक चींटी से भी कोई टिप्स ले जाए तभी उसने पीछे से किसी की गुनगुनाने की आवाज सुनाई पड़ी उसने पलट कर देखा तो एक चींटी बाकायदा काला चश्मा लगाए और कानों में हेडफोन लगाए अति रिलैक्स मूड में बैठी हुई बादशाह के गाने के ना रही थी उसके स्वागत विशेषता के विपरीत इस कदर चिंता मुक्त बैठकर बोला क्या बात है छोटी बहन मुझे तो लगता है इसे तुम उल्लू के बैल में माफिया उस समय के अनाज इकट्ठा करने में लगी रही हो पर तुम बिल्कुल सत्ता पक्ष की विधायक की तरह इंजॉय कर रही हो क्या तुम भविष्य की चिंता नहीं है चलो अभी तक समय में मेरे साथ थोड़ा अनाज इकट्ठा कर लो टुडे का दुख पूर्ण समाप्त होने के बाद सिटी बोली यही समस्या है तुम तीनों की जहां और जब मेहनत करनी चाहिए तब नहीं करते हो चाहे तुम बोल रहे हो कि अब जंगल में प्रजातंत्र का अचानक टिंडा आश्रय देकर होकर बोला प्रजातंत्र आ चुका है मुझे भी मालूम है लेकिन उसमें काम चोरी और मेहनत के बजाय रिलैक्स रहने की बात कहां से आ गई मेरे भोले भाई यह तो तुम नहीं समझ पा रहे हो यह गीदड़ और भेड़िया जैसे लोग तक सत्ता पाने के लिए मुफ्त में सब कुछ लुटा दे रहे हैं ©Ek villain #चींटी टिड्डा और प्रजातंत्र #Nofear
AB
💚🦋💚 ये kuku🦋 जी के original टिड्डा 🙂 जी हैं, आशीर्वाद ले लो,!" #alpanas,,💚"
SUPER FUNNY
Sagar vm Jangid
#KisanDiwas टिड्डी खागी खेता ने, नेता किसाना रा खुन्जा संभाले है। भाया केडो जमानो आग्यो। किसान रो दर्द समझने रे बजाय ऐ दर्द देवन ने लाग्या है। भाया केडो जमानो आग्यो। #किसान #टिड्डी
Kavita jayesh Panot
वो रेत का टिल्ला , जिस परअक्सर बैठने से डरती थी, चुन चुन के कदम रखा करती थी। ऐसे उन रिश्तों की यादों के किस्से , आज दिल के , अखबार में छपे है। दाम बहूत ही कम है , थोड़े से कागज अब भी नम है। कोशिशों के बांध बना अक्सर , मजबूत करने का वो नाकामियाब प्रयास किया करती थी। गुस्से को भूल जाती थी , अपमानों के घुट भी पी लेती थी, अपने जहाँ में एक मूर्ति खुद की बना, आघातों के पानी से नरम पड गयी माटी को, एक सुन्दर आकार देने की कोशिश किया करती थी। जान गई थी सब कुछ निरर्थक है, सार्थक कर सकूँ इसे हर बार। जज्बातो के कुछ धागों में, रिस्तो को बांध लिया करती थी। में अक्सर अपने मै से, इस कशमकश का सवाल किया करती थी। वो रेत का टिल्ला जिस पर बैठने से , अक्सर डरा करती थी उसी पर बैठ किसीका , इंतजार किया करती हूं। (कविता जयेश पनोत) #वो रेत का टिल्ला