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Ubaid Khan Uwaisi
Incomplete Truth चांद से कह दो अपनी औकात में रहे नबी ए पाक का तलवा मुबारक तुझसे ज्यादा चमकदार है chand se kah do Apni aokaat me rhe Nabi e PAK ka talva Mubarak tujhe se jayada chamakdar hai #चांद से कह दो अपनी औकात में रहे नबी ए पाक का तलवा मुबारक तुझसे ज्यादा चमकदार है chand se kah do Apni aokaat me rhe Nabi e PAK ka talva
यशवंत कुमार
राजनीति का हलवा! बड़ा लज़ीज़, बड़ा नायाब! बंधु! राजनीति का हलवा!! एक-से-एक दिग्गज भिड़ते, इस नायाब हलवे की ख़ातिर. पाने को सत्ता की कुर्सी, लगा देते बुद्धि सारी शातिर. हो जाता कहीं पे दंगा-फ़साद, हो जाता कहीं पे बलवा. बड़ा लज़ीज़, बड़ा नायाब! बंधु! राजनीति का हलवा!! Read Full Poem in caption... राजनीति का हलवा! बड़ा लज़ीज़, बड़ा नायाब! बंधु! राजनीति का हलवा!! एक-से-एक दिग्गज भिड़ते, इस नायाब हलवे की ख़ातिर. पाने को सत्ता की कुर्सी,
रजनीश "स्वच्छंद"
कैसे वर मांगूं।। कैसे मैं दैविक वर मांगूं। कैसे कष्टों से उबर मांगूं। जीवन मांगूं की मृत्यु आस, एक पल मांगूं या उमर मांगूं। कब हुआ भक्त कब भक्ति की, पूजा तो रही आसक्ति की। किस मुख शब्द उच्चारुं मैं, किस भाव ईश पुकारूँ मैं। कालिख पूता जो मन मे था, कब धीर भाव आसन में था। कब श्लोक मन्त्र या स्तोत्र पढ़ा, बस स्वार्थ लोक का स्रोत गढ़ा। उनका वंदन अभिनन्दन क्या, भाल तिलक और चन्दन क्या। मूढ़ बना जो फिरता है, पल पल घुटनों पे गिरता है। ईश सुने उसकी पुकार क्यूँ, शब्दहीन उसकी हुंकार ज्यूँ। माथ पटकता भावहीन हो, मानो बिनजल वो मीन हो। तलवा जर्जर और घायल था, कब मन भक्ति का कायल था। तपाधीन उठ आये महेश भी, वर में भी छुपा रहा द्वेष ही। मंत्रोच्चारण सब जोग जाप, उपजे जब छाया संताप। लाभ हानी का मोल भाव था, पापोनमुलन का तो आभाव था। भजन रहा छन्दित और स्वरबद्ध, हुआ नहीं मैं और मेरा का वध। सारहीन हर एक प्रलाप था, वर में भी छुपा एक शाप था। ईश्वर क्या सुनता मेरी, सब मैं प्रारबधों से डर मांगूं। कैसे मैं दैविक वर मांगूं। कैसे कष्टों से उबर मांगूं। जीवन मांगूं की मृत्यु आस, एक पल मांगूं या उमर मांगूं। ©रजनीश "स्वछंद" कैसे वर मांगूं।। कैसे मैं दैविक वर मांगूं। कैसे कष्टों से उबर मांगूं। जीवन मांगूं की मृत्यु आस, एक पल मांगूं या उमर मांगूं। कब हुआ भक्त कब
अशेष_शून्य
"जीवन की हर सांझ एक नई भोर को प्रेषित निमंत्रण पत्र है" जिसे हम दोनों अपने पंखों में बांध लौट चुके हैं; अपने अपने देश!! ~©Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में) जैसे चटख धूप में मीलों चलकर कोई भक्त पहुंचा हो मंदिर, या कोई प्रवासी पक्षी दूर देश...!! प्यास से जिसका