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Vijay Tyagi
जीवन एक अनघड़ कविता है तुकान्त और अतुकान्त के बीच बैठाई जा रही आचार संहिता है कुछ रंग इंद्रधनुषी कुछ तस्वीरें बेढंगी सी मन को पुलकित करती उमंगे सतरंगी सी इच्छाएं भरे कुलांचे मन से मनरंगी सी मन के भावों में उठती चलती बहती सरिता है जीवन एक अनगढ़ कविता है Dedicated to अनीता विजयवर्गीय जी, अनीता जी ने इस रचना को लिखने के लिये प्रेरित किया है। हालांकि ये मेरा जोनर नहीं है एक कोशिश भर है उनके आग्
Pooran Shanti
ग्राम प्रधान पोखरी पौड़ी गढ़वाल अनीता
NEERAJ SIINGH
स्त्री के जज्बात स्त्री के द्वारा ओ स्त्री तुमनें इन्हें अपने शब्दों में क्या खूब हैं उतारा.... Dedicating a #testimonial to अनीता विजयवर्गीय #neerajwrites
Ek villain
अनुकूलता और प्रतिकूलता युगल के समान है जो जो गम मनुष्य को संसार में जन्म लेते ही प्राप्त होते हैं यही कारण है कि मां के गर्भ में ममता इसने है और अपन तत्व के लोग में आकार लेते हैं तू जब संसार में आते हैं तब है रोता है शिशु की बंदी हुई मूर्ति का आशय यही है कि गर्भ में उसे परमानंद की जो संपत्ति मिली है वह शिशु छोड़ नहीं पा रहा है संसार में दो तरह की परिस्थितियां हर काल में मौजूद रहती हैं त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को वनवास हुआ और उनकी अर्धांगिनी माता सीता का अपहरण हो गया तो खुद भगवान श्रीराम रोने लगे इस स्थिति को देखकर भगवान शंकर से माता सीता ने पूछा यही श्री राम आप के आराध्य देव हैं जिनके नाम की पूजा करते हैं भगवान शंकर ने कहा हा सती में इन्हीं का नाम जपता हूं सती ने प्रति प्रसन्न किया यह तो सामान्य जन की तरह विपरीत हालात में भी जैसे मनुष्य रोता है वैसे ही रो रहे हैं इस पर भगवान शंकर ने कहा सती तुम्हारे प्रश्न उत्तर भी समाहित है भगवान श्रीराम आसमा जन को यह संदेश दे रहे हैं कि मनुष्य जीवन में विपरीत परिस्थितियां आती रही रहती है मेरे प्रभु नारायण रूप में नहीं बल्कि नर रूप में अमृत हुए हैं इनके रोने का संदेश है कि जब मैं शंकर जी के आराध्य होरोर आ सकता हूं तब मनुष्य रूप लेने में किसी को भी रोने की स्थिति से सम्मान करना पड़ सकता है भगवान शंकर के उत्तर में मनुष्य शब्द पर गौर करना चाहिए जब व्यक्ति मन में स्थित होकर जीवन व्यतीत करता है श्रीराम की तरह मर्यादा में रहता है और वैदिक जीवन जीने में विश्वास रखता है तब उसकी क्रियाशक्ति से प्राप्त उपलब्धियां अपहिद भी हो सकती हैं मन दुखी हो तब भी श्री राम की तरह आदमी बल नहीं छोड़ना चाहिए गौरव विधिक जीवन के पर्याप्त प्रतिकूलता ओं के कारण से मुकाबला करते रहना चाहिए एक दिन उसका समूल विनाश होकर रहेगा ©Ek villain # अनीति की लंका #Love