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हिमपुत्री किरन पुरोहित

प्रभात क्रीडा 
हाय प्यारी गीत गाती  तू प्रभाती है सुनाती,
 एक जाने कौन चिड़िया सुबह का संदेश लाई 
और जो  उठ खोल लूं पट सामने निज कक्ष के,
  तो मैं देखूं मणि अलौकिक हो हरि के वक्ष पे |
 ऐसे ही कुछ सज रहा है मेरे चारों ओर हिमवन ,
 जिसके ऊपर चंद्र भी वह सूर्य भी बन के अलंकन |
 इसकी उजली नील दुति को और भी चमका रहे ,
 और यह तो दर्प पाकर और भी मुस्का रहे |
दोनों पर्वत मध्य बहती अलकनंदा जा रही है ,
 अलकापुरी रैबार देती क्या तुम्हें बता रही है |
 कोहरे से चूर पर्वत धुंधले से लग रहे हैं ,
 और बादल मुकुट बन इन शीश पर क्या सज रहे हैं |
 तभी प्रभाकर की किरण उन पर्वतों पर कर उजाला ,
 धीरे-धीरे पैर रखती जा रही है और नीचे |
 कुछ ही पल में पार करके अलकनंदा तट वो प्यारा ,
  मेरे आंगन में पधारे मुझसे भी कुछ बात करती |
जाने ऊषा मम सहेली भय से मम पितु सूर्य के ,
छुपती छुपाती किधर पहुंची हो करके गायब दूर से |
 और आए सूर्यपितु मैं हाथ जोडे कह उठी ,
 मेरी ऊषा उस सखी को खेलने फिर बोलो बाबा |
 हाथ में जिसके बसा है दृश्य यह सारा का सारा ,
 खेल में जिसके सजा है दृश्य यह सारा का सारा |
 सूर्य भी तब कह उठे प्रिय यह खेलने का पल नहीं है ,
 अपनी सब पुस्तक संभाल स्कूल आज है कल नहीं है |
.............हिमपुत्री किरन पुरोहित #सुप्रभात #प्रभातक्रीडा #goodmorning #morningquots #kiranpurohit *    एक प्रभात क्रीडा 

हाय प्यारी गीत गाती  तू प्रभाती है सुनाती,
 एक जाने

#सुप्रभात #प्रभातक्रीडा #GoodMorning #morningquots #kiranpurohit * एक प्रभात क्रीडा हाय प्यारी गीत गाती तू प्रभाती है सुनाती, एक जाने

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कु

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कु

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कु

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कु

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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #alone #पौराणिककथा

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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #Ride #पौराणिककथा

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PRATIK BHALA (pratik writes)

#RIPRohitSardana continued
from
part
1





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©PRATIK BHALA (pratik writes) Read caption you will definetly increase some knowledge. महाराष्ट्र दिन और गुजरात दिवस की बधाई.
शब्दार्थ:-
1.चंद्रभागा:- भीमा नदी का पंढरपुर

Read caption you will definetly increase some knowledge. महाराष्ट्र दिन और गुजरात दिवस की बधाई. शब्दार्थ:- 1.चंद्रभागा:- भीमा नदी का पंढरपुर #Life #India #Love #Shayari #maharashtra #PratikBhala #pratikwrites #RIPRohitSardana

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
उधर तो रावण अपने भवन के भीतर गया-इधर वे नीच राक्षसियों के झुंड के झुंड अनेक प्रकार के रूप धारण कर के सीताजी को भय दिखाने लगे॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा का स्वप्न
रामचन्द्रजी के चरनों की भक्त, निपुण और विवेकवती त्रिजटा

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥
उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी।
वह रामचन्द्रजी के चरनों की परम भक्त और बड़ी निपुण और विवेकवती थी- उसने सब राक्षसियों को अपने पास बुलाकर,जो उसको सपना आया था, वह सबको सुनायाऔर उनसे कहा की –हम सबको सीताजी की सेवा करके
अपना हित कर लेना चाहिए(सीताजी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो)॥

त्रिजटा अन्य राक्षसियों को स्वप्न के बारे में बताती है
सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

क्योकि मैंने सपने में ऐसा देखा है कि एक वानर ने लंकापुरी को जला कर
राक्षसों की सारी सेना को मार डाला और रावण गधे पर सवार है,वह भी कैसा की नग्न शरीर,सिर मुंडा हुआ और बीस भुजायें टूटी हुई॥

स्वप्न में रामचन्द्रजी की लंका पर विजय
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥
इस प्रकार से वह दक्षिण (यमपुरी की) दिशा को जा रहा है और मैंने सपने में यह भी देखा है कि मानो लंका का राज विभिषण को मिल गया है और नगर मे रामचन्द्रजी की दुहाई फिर गयी है-तब रामचन्द्रजी ने सीता को बुलाने के लिए बुलावा भेजा है॥

स्वप्न सुनकर राक्षसियाँ डर जाती है
यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥
त्रिजटा कहती है की मै आपसे यह बात खूब सोच कर कहती हूँ की यह स्वप्न चार दिन बितने के बाद (कुछ ही दिनों बाद) सत्य हो जाएगा॥त्रिजटा के ये वचन सुनकर सब राक्षसियाँ डर गई।
और डर के मारे सब सीताजीके चरणों में गिर पड़ी॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 419  से 430 नाम
419 परमेष्ठी हृदयाकाश के भीतर परम महिमा में स्थित रहने के स्वभाव वाले
420 परिग्रहः भक्तों के अर्पण किये जाने वाले पुष्पादि को ग्रहण करने वाले
421 उग्रः जिनके भय से सूर्य भी निकलता है
422 संवत्सरः जिनमे सब भूत बसते हैं
423 दक्षः जो सब कार्य बड़ी शीघ्रता से करते हैं
424 विश्रामः मोक्ष देने वाले हैं
425 विश्वदक्षिणः जो समस्त कार्यों में कुशल हैं
426 विस्तारः जिनमे समस्त लोक विस्तार पाते हैं
427 स्थावरस्स्थाणुः स्थावर और स्थाणु हैं
428 प्रमाणम् संवितस्वरूप
429 बीजमव्ययम् बिना अन्यथाभाव के ही संसार के कारण हैं
430 अर्थः सबसे प्रार्थना किये जाने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
उधर

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 10 राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥ उधर #समाज

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