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koushik lenka
दील टूट ता है... मगर हम टकरा गए एक दुसरे से, लेकिन टकर देने कि हिम्मत सिर्फ तुने ही जुटा पायी.... और मैं जमीन तु आसमान, जब एक दुसरे से टकराए बाजि तो चांद भी हमारे सामने हार गया... क्यूं झुट बोला क्या......।। { सम्पूर्ण पढ़ें अनुशीर्षक में } हाॅं में थक चुका हुं और ये भी सच है तुम भी थकि हो.... क्यूं कि तुमने भी तो वादा किया था मेरे साथ चलने का... मेरे परछाई बनने का... क्यूं झुठ
chanderman
इंसान इंसान से दूर क्यू है तू.? क्या बोला... क्या करू खोखला समाज मज़हबी जो है । #hindipoetry #hindustani #hindu #muslim Read my thoughts
Neerav Nishani
क्या यह सच है कि तुमने मुझसे झूठ बोला क्या तुम बेदर्द थी, क्या तुम्हें जरा भी फर्क नहीं पड़ा मुझे छोड़ने के बाद, क्या तुम्हारी नियत ही नहीं थी साथ निभाने की, आखिर तुम भी औरों के जैसा निकलीं, लेकिन निशानी 'तुम्हारे जैसा नहीं है ©Neerav Nishani क्या यह सच है कि तुमने मुझसे झूठ बोला क्या तुम बेदर्द थी, क्या तुम्हें जरा भी फर्क नहीं पड़ा मुझे छोड़ने के बाद, क्या तुम्हारी नियत ही नहीं
Sunsa Kerapa
हम मारवाड़ी लोग बड़े कमाल के होते हैं जज्बात समझना नहीं लिखना जानते हैं कल शाम को बैठा था शायरी लिखने तभी किसी ने कहा क्या कर रहे हो , तो मैंने कह दिया :- वही जो सीएम पिछले 5 साल से कर रही है ( बोला क्या ? ) मैंने कहा :- टाइम पास हम शायरी शौख से लिखते हैं ~ शौक में आके नहीं -@sunsakerapa #NojotoQuote हम मारवाड़ी लोग बड़े कमाल के होते हैं जज्बात समझना नहीं लिखना जानते हैं कल शाम को बैठा था शायरी लिखने तभी किसी ने कहा क्या कर रहे हो , त
दुःखीआत्मा
कुणाल ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ तो खोले लेकिन कुछ कह नहीं पाया। कार्तिक सिंघानिया ने कुणाल को दोनों कंधे से पकड़ा और बोला "क्या कोई है तेरी लाइफ में? बता मुझे। हम तेरे दोस्त किस दिन काम आयेंगे? तेरे घरवाले नही मान रहे? या फिर उस लड़की के घरवाले? साले! तू बस एक बार उसका नाम बता, हम उसे उसके घर से उठवा लेंगे और तुम दोनो की शादी करवा देंगे। तू बस एक इशारा कर।" कहानी "सुन मेरे हमसफर " link in bio ©दुःखीआत्मा #ddlj #love #story #कहानी #lovestory कुणाल ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ तो खोले लेकिन कुछ कह नहीं पाया। कार्तिक सिंघानिया ने कुणाल को दोनों
Mehfuza
वह वादा करके जिंदगी भर का दो कदम भी ना चल पाईं, रही होगी मोहब्बत में कमी हमारी ही, यह कहकर देते रहे दिलासा सालों अपने दिल को, दिल पलट कर कहने लगा भूल जा उसे और आगे बढ़ जा, ना-ना रही होगी कमी मुझमें ही कहता रहा उससे हर बार, एक जमाना बीत गया! वह मिली हमसे रहा चलते, कहने लगी भैया जरा रास्ता तो छोड़ना! थाम कर किसी पराए का हाथ चली गई वो मेरी आंखों के सामने। दिल बड़े गुमान से बोला! क्या हुआ याद ना रहा तेरा चेहरा भी उसे आज? मेरी आंखों में ना आंसू थे ना हुई कोई दिल में हलचल आज , शायद समझ गया मैं आज उसकी बेवफाई का राज! -Mehfuza वह वादा करके जिंदगी भर का दो कदम भी ना चल पाईं, रही होगी मोहब्बत में कमी हमारी ही, यह कहकर देते रहे दिलासा सालों अपने दिल को, दिल पलट कर कह
Shubham Tripathi
सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्यों आंख दिखाते कुछ भी विसात नहीं तेरी सहसा मैंने सूरज देखा लिए लुकाटी बैठे है जो सूरजु काका खेत में तन पर उनके वस्त्र नहीं है तप्ती हुई इस जेठ में चमड़ी इनकी काली पड फिर भी डिगा न पाया तू इनको न तेरी धूप लगे न लगे कभी भी इनको लू सहसा मैंने सूरज देखा पीछे है चाँदनिया बैठी मैले भूरे बाल में, एक लंगोटी तन पर डाले मिट्टी लगी है गाल में सहनशीलता उसकी देखो उसको हटा न पाया तू खुद ही तू जल जायेगा फिर भी पयेगा न उसको छू सहसा मैंने सूरज देखा तेरी अकड़ कहा चलती है बड़े बड़े से महलों में यहाँ सृजन का देव है बैठा व्यस्त है अपने टहलों में कोशिश तू कितना भी करले कितना आंख दिखा ले तू इनको न तेरी धूप लगे न लगे कभी भी इनको लू सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्या आंख दिखाते कुछ भी बिसात नहीं तेरी #सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्यों आंख दिखाते कुछ भी विसात नहीं तेरी सहसा मैंने सूरज देखा लिए लुकाटी बैठे है जो सूरजु
dilip khan anpadh
पतझड़ का पश्चाताप *************** व्यथित वो पतझर सोच रहा क्यों साख पे पत्ते बचे नहीं? ऐसा क्या मैंने कर डाला? वो फूल भी अच्छे बचे नहीं। ये क्या कर्तव्य निभा डाला जो हरित ये उपवन रहा नहीं ना कोयल फिर से कूक रही मुझे क्यों खुशहाली जंची नहीं। है, द्वेष मेरा या घृष्ट कर्म क्यों समझ न आया उचित धर्म ये है माया या ईश मर्म या पथभ्रष्ठ मैं हुआ विधर्म। ले मुख पे बैठा ग्लानि चिन्ह क्यों मैं ऐसा हूँ पृथक, भिन्न क्या पाप कर्म मेरा विधान क्यों है नही इसका मुझको भान? इतने में शीत पवन डोला ऋतुराज सन्मुख हो बोला क्या दुविधा है,क्यों व्यथित हो तुम क्यों बैठे हो चुप-चुप,गुमशुम ना तुमने कोई पाप किया नाही उपवन को संताप दिया ये नव श्रृंगार ले झूमेगा हमने ही तुमको याद किया। तुम्हे निज का है,कर्तव्यबोध तुम स्नेहशील,नहीं हो अबोध तुमने है मार्ग प्रशस्त किया धरती को है,नव रूप दिया। मृत्यु, जन्म का है प्रमाण तुम रखते हो ये दिव्य ज्ञान जरा भ्रम से बाहर झांक तो लो देखो नया सबेरा,नया बिहान दिलीप कुमार खाँ""अनपढ़""" #पतझड़ का पश्चाताप *************** व्यथित वो पतझर सोच रहा क्यों साख पे पत्ते बचे नहीं? ऐसा क्या मैंने कर डाला? वो फूल भी अच्छे बचे नहीं। ये
saumya
तेरी मेरी कहानी part 4 👇 read in caption शाम का टाइम था मै और अनन्या कैफे में थे हमदोनो ने कॉफ़ी ऑर्डर किया हम यूं ही बात करने लगे। एक बूढ़े अंकल कुछ सामान बेच रहे थे जैसे कलम पे