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Chanchal Jaiswal

याद रखना
जब भी ऊँचे चढ़ोगे
पंख से पहले पैर पर 
करना होगा भरोसा
उड़ान जितना
अकाशभर
और चलना होगा
कदम दर कदम
और ये शुरुआती कदम
भरेंगे दमखम
तुम्हारी उड़ान में #पंखुरी

Shailendra Lunia

जब से देखे है कातिल तेरे दो नैन
तब से उड़ गया है मेरा सब चैन

©Shailendra Lunia #नैन #चैन

Ajit Bhai Yadav

मैं पंखुरी गुलाब का...

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मैं पंखुरी गुलाब का ,तु तो गुलाब हैं,
मैं आदि हूँ शराब का ,तु तो शराब हैं,
उलझन में हैं ये जिंदगी, तु तो सुलझी किताब हैं,
मैं सवाल जिंदगी हूँ ,तु तो जवाब हैं।
 
मैं पतझर बाग का ,तु तो चंदन की खुशबू हैं,
मैं ज्येष्ठ की दोपहरी हूँ,तु तो सावन की रिमझिम हैं,
सुनी पड़ी हैं ये जिंदगी ,तेरे पास खुशीयाँ हजार हैं,
भर दे उमंग जिंदगी में,तु तो बहार हैं,
 
मैं भटका राही मंजिल का ,तु तो मंजिल हैं,
मैं रात हूँ अमावस्या का,तु तो पुनम की चाँद हैं,
होकर दुर तुम से ये जिंदगी उदास है,
काश रब तुम से मिला दे, तु तो जिने की आस हैं।

मैं शिप समुन्द्र का ,तु तो उसकी मोती हैं।
मैं धलता सूर्य शाम का, तु तो उगती किरण हैं,
बेजान है ये जिंदगी,तु तो मेरी जान हैं।

मैं पंखुरी गुलाब का ,तु तो गुलाब हैं,
मैं आदि हूँ शराब का, तु तो शराब हैं,
उलझन में है ये जिंदगी ,तु तो सुलझी किताब हैं,
मैं सवाल जिंदगी हूँ, तो तो जवाब हैं। मैं पंखुरी गुलाब का...

Shashi Vhankalas

पंखुड़ी #Quote

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Trust me बदतमीज शैतान ...दिमाग भी ऐसा है कि....
अच्छी बातें ही भूल जाता है... पंखुड़ी

Rakhi Raj

पंखुड़ी (भाग 7)

काव्य खिड़की पर जाकर पंखुड़ी को इशारा कर बुलाती है वी कागज की पुड़िया में नींद की गोलियां लपेट उसके कमरे में फेकती है.. पुड़िया पर लिखा था "भैया स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार कर रहें है, स्टेशन के लिये ऑटो नुक्कड़ पर मिल जायेगा, ये नींद की गोलिया है इन्हे खाने मै मिला के इन्हे खिला देना और 11 बजे स्टेशन पर पहुंच जाना "
पंखुड़ी सबके खाने मे नींद की दवा मिला सबको खाना खिला देतीं है, नींद की गोलियों के असर से सब बेहोशी जैसी नींद में सो जाते है,पंखुड़ी खिड़की पर ख़डी काव्य की और मुस्कुराते हुए स्टेशन की ओर भाग जाती है 
स्टेशन पर पहले से ही खड़ा वेद उसका इंतजार कर रहा होता है 
पंखुड़ी की नजरें स्टेशन पर ढूंढ़ती है वेद को, वेद भी पंखुड़ी को ही ढूंढ़ता है 
एक दूसरे को ढूँढ़ते हुए दोनों की नजरें मिलती है एक दूसरे से, पंखुड़ी कदम बढ़ा वेद के पास जाती है... आप काव्य के भैया है? 
वेद हाँ करके उसका हाथ थमने को उसकी ओर हाथ बढ़ता है 
पंखुड़ी को वेद अनजान होकर भी अनजान नहीं लगा,, वो अपना हाथ बढ़ा थामती है हाथ वेद का 
दो अजनबी एक दूसरे का हाथ थामे बैठ जाते है रेल में,खिड़की से शुरू वेद का प्यार रेल की सिटी बजने पर आगे बढ़ती रेल के साथ अब आगे बढ़ेगा 
पंखुड़ी न ही लाल चुनरी ओढ़ी थी न ही दुल्हन का लिबाज पर उसके चेहरे पर किसी दुल्हन से अधिक चमक थी आज... 
दोनों बंगलौर पहुंच समझते है एक दूसरे को, करते है समर्पित दोनों एक दूसरे को,  एक दूसरे को छूने से पहले.. ज़ब कोइ पुरुष छू लेता है एक स्त्री की आत्मा को और स्त्री ज़ब बनती है पूरक पुरुष का तब होता है असली समर्पण 
..... 
2महीने बाद वेद अपनी और पंखुड़ी की शादी की फोटो काव्य के फोन पर भेजता है, वेद ने पंखुड़ी के जीवन में पँख लगा दिए है #पंखुड़ी

Shashi Vhankalas

पंखुड़ी

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अलगद तू माझा हात हातात दाबला होतास..
तू मला पहिल्या प्रेमाचा गंध दिला होतास.... पंखुड़ी

Rakhi Raj

पंखुड़ी (भाग 1)

प्रातः सूरज की किरणे, पक्षियों की चहचहाहट, बारिश की बूंदे, इंद्रधनुष के रंग, हवाओं के झोंको से खिड़की खुलती है प्रकृति की ओर.. 
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काव्य को अपनी खिड़की से बाहर की दुनियां बड़ी प्यारी लगती है |रोज की तरह वो उठी अपनी आँखों को मलते हुए.उसे अंगड़ाइयां लेते देख ऐसा लगता है मानो जैसे उसकी अँगड़ाइयों से आजाद होकर ही सूरज की किरणें आसमां में बिखर रही हैं | 
काव्य उठ कर जाती है खिड़की की ओर, हवाओं के झोंको को महसूस करते हुए उसका ध्यान जाता है अपने सामने वाले घर की खिड़की पर.. एक लड़की  जो देखने में नयी नवेली दुल्हन सी लग रही थी खिड़की के उस पार ख़डी थी, वो भी काव्य जैसे ही हवाओं के झोंको को महसूस कर रही थी 
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(काव्य दौड़ के माँ के पास जाती है )
"माँ वो सामने वाले घर मे लड़की कौन आयी है पता है क्या तुमको"? 
अरे वो रमेश है न वो ब्याह के लाया है.."हींग लगी न फिटकरी रंग चोखो "चार आदमी गये ओर ले आये ब्याह के |
ब्याह के !!! (काव्य ने आश्चर्य से कहा )
पर वो लड़की तो मुझसे भी कम उम्र की लग रही है देखने से ओर रमेश तो अठ्ठाइस बरस का है माँ, ऊपर से नशा भी करता है वो दुनियां भर की खराब आदते है उसमे..
अनाथ है बेचारी बोझ समझ ब्याह दी होगी बिना छान बीन करे..अब यही भाग बेचारी का
माँ पर....
 उसके सवालों पर अपनी करछी दिखाते हुए काव्य की माँ ने कहा, "हाथ मुँह धो आ दोबारा चाय नहीं बनाउंगी अब "
काव्य अपने भीतर उठ ते सवालों को लिये चाय पीने लगती है

अगला भाग जारी..... #पंखुड़ी

Supriya devkar

# पंखुडी #मराठीप्रेम

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Raj Bhandari

रैन बिन चैन

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क्यों ना, चल के कह दूँ,अब चैन नहीं है,
रो के जो ना कटती अब ऐसी रैन नहीं है ! रैन बिन चैन

DR. LAVKESH GANDHI

चैन # जान # बेजान #

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तुझे ना देखूं तो चैन नहीं आता
 जब तुम रूठ जाती हो  मुझसे
 खुदा कसम !मैं बेचैन हो जाता
 तुम यों ना रूठा करो मुझसे
 मेरी जान निकल जाती है

 चैन 
# जान # बेजान #
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