न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा हैं ,
यें घर बहार की रातों में बे-चराग़ पड़ा हैं..!!
अजब नहीं यहीं कैफ़-आफ़रीं हो शाम-ए-अबद तक.....
जो
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Vaseem Akhthar
1212 1212 1212 1212
बहक गए थे राह से गुनाह के तह-नशीं हुए
तिरे करम के सदक़े में बरी हुए बरीं हुए
ये कैसा फ़ैज़
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Vaseem Akhthar
1212 1212 1212 1212
बहक गए थे राह से गुनाह के तह-नशीं हुए
तिरे करम के सदक़े में बरी हुए बरीं हुए
ये कैसा फ़ैज़
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Amit Kumar
बरहम हुई है यूँ भी तबीअत कभी कभी
ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
मिलती है ज़िंदगी में ये राहत कभी कभी
तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-आफ़ #ज़िन्दगी#जिंदगी_के_किस्से