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Naresh Chandra

प्रेम हो सबके हृदय मे द्वेष क्लेष न रहे मन मे प्रीत की ज्योति बुझी है मन फंसा है लालसा मे प्रेम की ज्योति जलाकर बस यही उपकार कर दो प्रेम की #कविता

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प्रेम हो सबके हृदय मे
द्वेष क्लेष न रहे मन मे
प्रीत की ज्योति बुझी है
मन फंसा है लालसा मे
प्रेम की ज्योति जलाकर
बस यही उपकार कर दो
प्रेम की देवी धरा पर
प्रेय की बरसात कर दो।

कर मे लिए है पुष्प अपने
प्रेम का इजहार करते
वासना के हो वशीभूत 
झूठा ही प्रस्ताव रखते
भर दो हृदय मे स्वच्छता
इतना सा उपकार कर दो
प्रेम की देवी थरा पर
प्रेम की बरसात कर दो।

अंधकार मे फंसा, मानव 
 सदा दुर्व्यवहार करता
प्यार की देकर तिलांजलि
नित नये, नये जाल बुनता
भाव मन के स्वच्छ हो
ऐसा ही तुम वरदान दे दो
प्रेम की देवी धरा पर
प्रेम की बरसात कर दो।

©Naresh Chandra प्रेम हो सबके हृदय मे
द्वेष क्लेष न रहे मन मे
प्रीत की ज्योति बुझी है
मन फंसा है लालसा मे
प्रेम की ज्योति जलाकर
बस यही उपकार कर दो
प्रेम की

Mahesh kumar yadav

श्लेष अलंकार

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Radhe Chandan jha

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जगदीश कैंथला

यमक,श्लेष अंलकार #बात

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Krishu Ki Khushi

क्लेश 😂😂 #loveshayari

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#thoughtsbecomethings ❤

व्यथा : आंतरिक क्लेश या दुःख।

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क्या लेख लिखूं सोचती,
क्या मन में मेरे है बसा, 
कोई राज़ मन का खोलती,
ये लेख मन की है व्यथा, 
मन में है मेरे क्या व्यथा,
ये सोचकर मैं खो गई,
कल रात के अंधेरे में मै कब न जाने सो गई 

बबीत पपनै।

व्यथा :  आंतरिक क्लेश या दुःख। व्यथा : आंतरिक क्लेश या दुःख।

Prem H Rampuriya

गृह क्लेश का कारण🤔🤔

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आदमी सब पर अपना रौब़ जमाना चाहता है 
अपनो को अपने ही अंदर लाना चाहता है,
कोई उसकी बात को न माने तो
तो वह अपना हाथ आजमाना चाहता है।
  ~pemaram heengra गृह क्लेश का कारण🤔🤔

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः ।
 पवित्रस्य प्रस्रवणेषु वृत्रहन्परि स्तोतार आसते ॥

पद पाठ
व꣣य꣢म् । घ꣣ । त्वा । सुता꣡व꣢न्तः । आ꣡पः꣢꣯ । न । वृ꣣क्त꣡ब꣢र्हिषः । वृ꣣क्त꣢ । ब꣣र्हिषः । पवि꣡त्र꣢स्य । प्र꣣स्र꣡व꣢णेषु । प्र꣣ । स्र꣡व꣢꣯णेषु । वृ꣣त्रहन् । वृत्र । हन् । प꣡रि꣢꣯ । स्तो꣣ता꣡रः꣢ । आ꣣सते ॥

जैसे मेघों के जल आकाश को छोड़कर भूमि पर आकर धान्य, वनस्पति आदि को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही हम पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा आदि का परित्याग करके परमात्मा को प्राप्त कर आनन्द-रस को उत्पन्न करें ॥

 Just as the waters of the clouds leave the sky and come to the land and produce grains, vegetation etc., in the same way, we renounce sonhood, financiation, folklore, etc. and attain joy and produce joy and happiness.

सामवेद मंत्र २६१ #सामवेद #वेद #क्लेश #वर्षा #दुर्भावना #सुख

Pandit Deepak Baglamukhi

घर के कलह क्लेश से छुटकारा पाने का उपाय

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