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Dipali Thakare
कुछ साल बाद........ लॉकडाऊन का दौर चल रहा था.. लोगो ने घरमे जिना सिख लिया था... फिर से उन पुराने दोस्तों से बाते होने लगी थी... जिंदगी जैसे रुक सी गयी थी.. परिवार के लोग फिर से पुराने किस्से पे हसने लगे थे... बहुत से लोगो की कला बाहर निकल के आयी थी... कुछ लोग भूके पेठ ही सोने लगे थे... तो कुछ लोग पेठ भरके खाकर भी कुछ खुश नही थे.. रास्तो पे सन्नाटा छाया था... और दिलो मे घबराहट सी थी... कुछ लोगो को १ वक्त की रोटी नसीब नही होती थी... तो कुछ लोग अपने हीस्से की रोटी मे से किसी और को बाट देते थे... कुछ लोग अपनी जान लगाकर देश की सेवा करते थे... और कुछ लोग बेवकुफी करके दुसरो की जान खातरे मे डालते थे... आमिर लोग टाईमपास कैसे करे ये सोचते थे .. तो गरीब लोग रोटी के लिये पैसे कहासे लाये ये सोचते थे... शेहर के रास्ते सूने हो गये थे... और लोग अपने गाव की तरफ भागने लगे थे... कुछ लोग अपने घर मे चैन से बैठे थे.. तो कुछ लोग पैदल चल के थक गये थे... पर इस सब मे भी एक किसान ही था जो दटके खडा था.... ऊस वक्त डॉक्टर और पुलिस ही हमारे भगवान थे... क्योकी असली भगवान तो कैद हो गये थे... एक बात तो हमेशा याद रहेगी... विदेश यात्रा तो किसी और ने की थी... और किंमत गरीब लोगो ने चुकाई थी.. -dipali thakare #simplicity #lockdown #lockdowndiary rukh zindagi ne mod liya aisa hamne socha nahi tha kabhi aisa..
Prince
Zoha writes
zindagi ne hume is mod pe la kar khada kar diya jaha par mujhe sirf likhne ke siwa kuch dikha hi nhi warna hume to likhne ka l tak pata nhi tha #NojotoQuote zindagi ne hume is mod par...
#WriterSen
rukh mod ke chod ke apni zindagi jeene chali jaugi
Abhishek kori
तू अपना काम करता चल, Mohabbat Ki Rahon Se Rukh Mod Liya Hai Humne Darde Dil Ke Tukde samet Liya Hai Humne ab Bus Itna Karke dikhana Hai apni Manjil ko Apne Kadmo Mein Pana Hai Rukh Mod Liya Hai Humne
Rao Umer
Hai itna buland honsla mera, ki patthar ko nazro se tod dun, A Zindagii tu to Zindagii hai ..mai to mout ka Rukh mod dun... By Rao #gif Mout ka rukh mod dun..!
Mohsin Uttarakhandi
बहती हुई हवाओँ का रुख मोड़ रहा हूँ ऐ ज़िन्दगी तेरे पीछे मैं दौड़ रहा हूँ मेरे साथ रहकर भी कभी मेरा ना हुआ उसके लिए ही सबको मैं छोड़ रहा हूँ बरसो जिसे खून से मैं सींचता रहा उस फूल को खुद ही आज तोड़ रहा हूँ तमाम उम्र क़ैद रहा जिस मकान में ऐ ईश्क तेरा पिंजरा मैं तोड़ रहा हूँ ना उम्मीदी कुफ्र है मैं जानता हु लेकिन वो ना आएगा यही उम्मीद मैं छोड़ रहा हूँ ये सफ़र-ए-ईश्क़ मुकम्मल नहीं हुआ थक गया हूँ बहुत मैं क़फ़न ओढ़ रहा हूँ इज़्ज़त ज़िल्लत सब कुछ ख़ुदा के हाथ है तेरा ये फ़ैसला मैं वहीँ छोड़ रहा हूँ। (मोहसिन) ©Mohsin Saifi rukh mod raha hu. #Morning