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bhishma pratap singh
अदनासा-
Vijay Kumar Sharma
Upendra Dubey
एनसीएल महिला कर्मियों ने कोल इंडिया अंतर कंपनी प्रतियोगिता में लहराया परचम इंटरकंपनी भारोत्तोलन एवम शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता 2022 में गोल्ड सहित जीते कई मेडल भारत सरकार की मिनीरत्न कंपनी नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड(एनसीएल) की महिला कर्मियों ने कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा आयोजित अंतर कंपनी भारोत्तोलन एवम शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता 2022 में अपना परचम लहराया है | इस प्रतियोगिता का आयोजन 25 से 27 अप्रैल तक कोलकाता में किया जा रहा जिसमें कोल इंडिया की सभी अनुषंगी कंपनियों एवं सिंगरेनी कोलफील्ड्स लिमिटेड में कार्यरत महिला व पुरुष खिलाड़ी भाग ले रहे हैं | प्रतियोगिता के दौरान एनसीएल से डॉ. नाहिद नसीम, श्रीमती इन्दु बाला एवं श्रीमती ममिता सिंह ने पॉवरलिफ्टिंग में अपनी अपनी श्रेणी में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक तथा याशिका कुजूर ने कांस्य पदक जीता | प्रतियोगिता अभी भी चल रही है जिसमें पुरुष खिलाड़ी भी प्रतिभाग करेंगे | गौरतलब है कि एनसीएल में खेलों के प्रति कर्मियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से खेल संबंधी मजबूत आधारभूत ढांचे को तैयार किया गया है | इसके साथ ही वर्ष भर अनेक खेल प्रतियोगिताओं जैसे क्रिकेट, लॉन टेनिस, बैडमिंटन, फुटबॉल, कैरम, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स, भारोत्तोलन एवम शरीर सौष्ठव इत्यादि का आयोजन किया जाता है जिसकी चलते एनसीएल कर्मी अंतर कंपनी व अन्य राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं | ©Upendra Dubey एनसीएल महिला कर्मियों ने कोल इंडिया अंतर कंपनी प्रतियोगिता में लहराया परचम इंटरकंपनी भारोत्तोलन एवम शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता 2022 में गोल्ड
Ravendra
सांसद ने किया शुरूवात ©Ravendra अक्षयवर लाल गोंड ने किया सांसद खेल स्पर्धा का शुभारम्भ बहराइच 18 मार्च। सांसद खेल स्पर्धा अन्तर्गत इन्दिरा गांधी स्पोर्ट्स स्टेडियम बहराइ
Rishika Srivastava "Rishnit"
#AzaadKalakaar #AzaadKalakaar स्त्री विमर्श क्यो?? स्त्री विमर्श वास्तव में एक जटिल प्रश्न बनकर युगांतर से मन को गुदगुदा ता आ रहा है यद्यपि नारी की उपस्थिति तो साहित्य की हर विद्याओं में किसी न किसी रूप में सदा से रहती ही आ रही है तब फिर इसी औचित्यता पर प्रश्नचिन्ह क्यों अंकित होता रहा है? हमारा देश आज़ाद हो चुका है फिर भी स्त्री की दशा आज भी दयनीय क्यों?? स्त्री विमर्श के विषय में एक प्रश्न और विचारणीय है कि क्या स्त्री द्वारा लिखित साहित्य स्त्रीवादी साहित्य होता है मेरे विचार से स्त्री या पुरुष के लेखन का नहीं है बस है स्त्री विमर्श पर कदम उठाने वाला या कलम उठाने वाली स्त्री स्वभाव का स्त्री समस्याओं की गहराई से परिचित है या नहीं स्त्री की पीड़ा उस पर हो रहे अत्याचार उत्पीड़न शोषण की कसक आदि को कभी मानसिक या वैचारिक रूप से भोगा है या नहीं। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी। समाज में स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकारी थे। पुत्र या पुत्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था। सामाजिक, आर्थिक शैक्षिक तथा धार्मिक कार्यों में दोनों की समान भागीदारी थी। पुत्र या पुत्री के पालन पोषण में भी कोई अंतर नहीं माना जाता था ।इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि थी के पुत्र की शिक्षा के साथ-साथ पुत्रियों तथा स्त्रियों की शिक्षा पर भी गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया जाता था। परिणाम स्वरूप लोपामुद्रा, विश्ववारा, घोषा, सिक्त निवावरी जैसी कवि तथा मंत्र और सुक्तों के प्रसिद्ध रचयिता इसी युग की देन है । इसी युग में हुई स्त्री विकास के मार्ग में बाधक जैसे परंपरा नहीं थी। स्त्रियों को इच्छा अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। वैदिक काल और परिस्थितियों मैं शनै शनै परिवर्तन होने जैसा प्रतीत होने लगा यद्यपि पुत्री की शिक्षा-दीक्षा पूर्व चलती रहे तभी समाज की मानसिकता बदल गई। कालांतर में पुत्री भी स्वयं को पुत्र की तुलना में ही समझने लगी। चुकी इस युग में पर्दा प्रथा की चर्चा तो नहीं है। फिर भी नहीं रह गई सार्वजनिक सभा तथा धार्मिक अनुष्ठान में अपनी भागीदारी निभाने से वंचित होने लगी पुत्री का विवाह कम आयु में करने का विवाद चल पड़ा पुत्र-पुत्रियों के जन्म पर भी भेदभाव होने लगा। पुत्र का जन्म उत्सव मनाया जाने लगा लेकिन पुत्री के जन्म को अभिशाप समझा जाने लगा। पुत्रियों को वेदाध्ययन के अधिकार से बातचीत होना पड़ा। महाभारत में द्रोपदी के के लिए "पंडित" शब्द का विशेषण आया।ऐसी पंडिता जो माँ कुंती के आदेश के पाँच पतियों में बँटकर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो जाती है। कुंती जो विशिष्ट आदर्श कन्याओं में गिनी जाती है समाज के भय से सूरज को समर्पित अपनी को कोम्यता के फलस्वरूप प्राप्त पुत्र रत्न को नदी में प्रवाहित करने हेतु विवश हो जाती है. सती साध्वी राज कुलोधभूता सीता एक साधारण पुरुष के कहने पर अपने पति श्री राम द्वारा परित्यक्ता वन अकारण वनवास के दुःख झेलती है।विचारणीय है यदि उस समय की सधी और मर्यादाओं से बंधी राजकन्या हो कि यदि ऐसी स्थिति की सामान्य स्त्रियों की दशा कैसी रही होगी. चुकी इस काल में स्त्रियों को आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त अधिकार प्राप्त है। माता-पिता आदि से प्राप्त धन स्त्री धन था ही विवोहरान्त या विवाह के समय पर आप उपहारों पर भी स्त्रियों का अधिकार था किंतु मनु विधान के अनुसार वह उसकी संपूर्ण स्वामिनी नहीं थीं। पति का अनुमति के बिना उसका एक पल भी उपयोग नहीं कर सकती थी। खैर जैसा था- था लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में भी हम देखते हैं कि आज भी पुरुषों की मानसिकता यथावत है। मुगल शासनकाल में चल रहे भक्ति आंदोलन के फल स्वरुप स्त्रियों को सामाजिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता मिली फलता बदलाव का बीज अंकुरित होने लगा। 【आगे अनुशीर्षक में पढ़े】 ©rishika khushi ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की परिस्थितियों के कुछ सुधार आया, क्योंकि शिक्षा का विस्तार किया गया। लड़कियों की शिक्षा में ईसाई मिशनरियाँ र
Vickram
हर बार तकदीर के मजाक सही नहीं लगते । । हकीकत है कि साथ रहकर ही खेल खेला जाता है । मुझे आता नहीं कोई खेल फिर भी खेल लेता हूं । हमे तस्वीरों के पीछे का चेहरा भी साफ नजर आता है ।। ©Vickram खेल क्या खेले,,,
Mahendra Dhivare
वक्त के साथ उम्मिदे की किरण कभी जिंदगी मे आई नही... बहुत कोशिश करणे बावजुद भी किरणे कभी आई नही क्या वक्त के साथ उम्मिदोने भी खेल खेलना सिख लिया. ©Mahendra Dhivare बावजुद खेल खेला #Aurora
Hasanand Chhatwani
मिट्टी के दीपक सा है ये तन.. तेल खत्म, खेल खत्म, गुरुर कीस बात का हैं दोस्त..... #तेल खत्म #खेल #खत्म