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Naresh Kumar

मां को गुरु व भगवान का दर्जा दिया गया है । मां तो ममता की मूरत है ।

मेरी सबसे प्यारी सी अच्छी मां ही है

मां को गुरु व भगवान का दर्जा दिया गया है । मां तो ममता की मूरत है । मेरी सबसे प्यारी सी अच्छी मां ही है

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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey}
गुरू व भगवान श्री कृष्ण जी 
को मनाना सबसे आसान है, 
गुरू जी के द्वारा भगवान की 
और चल देना, पर संसार को 
मनाना सबसे ज्यादा कठिन है, 
एक को मनाऊँ,
तो दूजा रूठ जाता हैं।।

©N S Yadav GoldMine
  #gandhijayanti {Bolo Ji Radhey Radhey}
गुरू व भगवान श्री कृष्ण जी 
को मनाना सबसे आसान है, 
गुरू जी के द्वारा भगवान की 
और चल देना, पर संसार

#gandhijayanti {Bolo Ji Radhey Radhey} गुरू व भगवान श्री कृष्ण जी को मनाना सबसे आसान है, गुरू जी के द्वारा भगवान की और चल देना, पर संसार #समाज

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Bhagirth choudhary

पता है जब एक किसान फसल की बुआई करने से लेकर फसल की कटाई तक कीतनी ही मुश्किल से सामानकरता है फिर भी हार नहीं मानता है जानते हो कीयो उनको अपनी

पता है जब एक किसान फसल की बुआई करने से लेकर फसल की कटाई तक कीतनी ही मुश्किल से सामानकरता है फिर भी हार नहीं मानता है जानते हो कीयो उनको अपनी #समाज

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Ravendra

किसान दिवस पर प्रस्तुत किए गए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए डीएम मोनिका रानी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र

किसान दिवस पर प्रस्तुत किए गए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए डीएम मोनिका रानी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र #न्यूज़

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Ravendra

किसान दिवस पर विधायक व डीएम के हाथों सम्मानित हुए अन्नदाता 

एंकर ====प्रसार सुधार (आत्मा) योजना अंतर्गत जिलाधिकारी मोनिका रानी की अध्यक्षता

किसान दिवस पर विधायक व डीएम के हाथों सम्मानित हुए अन्नदाता एंकर ====प्रसार सुधार (आत्मा) योजना अंतर्गत जिलाधिकारी मोनिका रानी की अध्यक्षता #न्यूज़

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N S Yadav GoldMine

जब इंद्र पुत्र जयंत ने माता सीता को चोंच मारी पढ़िए दिलचस्प कथा !! 🏯🏯{Bolo Ji Radhey Radhey}

इंद्र पुत्र जयंत :- 💡 यह उस समय की बात है जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला हुआ था। उस समय वे अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में रह रहे थे। एक दिन भगवान श्रीराम माता सीता के साथ अपनी कुटिया के बाहर उनकी गोद में सर रखकर लेटे थे। तब इंद्र पुत्र जयंत को एक शरारत सूझी व उसने कौवे का रूप धारण कर लिया। वह कौवा बनकर उनकी कुटिया के पास आया व विचरने लगा। आज हम उसी घटना के बारे में जानेंगे।

माता सीता को मारी चोंच :- 💡 जयंत की उद्दडंता तब हुई जब उसने माता सीता के पाँव में चोंच मारी। माता सीता के द्वारा उसे बार-बार हटाने का प्रयास किया गया लेकिन उसने चोंच मारनी जारी रखी। इसके कारण माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा। जब भगवान राम ने माता सीता को इस तरह परेशान होते देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा। माता सीता ने उन्हें अपना पैर दिखाया व कौवें के द्वारा परेशान करना बताया।

भगवान राम ने चलाया ब्रह्मास्त्र :- 💡 भगवान राम कौवे की इस हरकत से अत्यंत क्रोधित हो गए। चूँकि भगवान राम अत्यंत धैर्यवान व विनम्र स्वभाव के व्यक्तित्व वाले थे किंतु माता सीता को पहुंचे आघात के कारण उन्होंने अपना संयम खो दिया। उन्होंने उसी समय अपना ब्रह्मास्त्र निकाला व उस कौवें पर चला दिया।

जयंत भागा तीनों लोकों में :- 💡 भगवान श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रहार करने पर इंद्र पुत्र जयंत वहां से भाग गया लेकिन ब्रह्मास्त्र ने उसका पीछा नही छोड़ा। वह अपने प्राण बचाकर तीनों लोकों में दौड़ा किंतु कोई भी उसे नही बचा सका। अपने पिता के देव लोक में भी किसी के अंदर उसे बचाने का साहस नही था। तब नारद मुनि ने उससे कहा कि उसे केवल प्रभु श्रीराम ही बचा सकते है।

जयंत ने मांगी श्रीराम से क्षमा :- 💡 तब जयंत भागता हुआ वापस चित्रकूट की उसी कुटिया में आया व भगवान श्रीराम के चरणों में गिर पड़ा। उसने अपने अपराध के लिए भगवान श्रीराम से क्षमा मांगी। तब भगवान राम ने उसे ब्रह्मास्त्र को अपना कोई अंग देने को कहा। तब जयंत के कहने पर प्रभु श्रीराम ने उनकी दायी आँख फोड़ दी व उसे क्षमा कर दिया।

©N S Yadav GoldMine
  #snowfall जब इंद्र पुत्र जयंत ने माता सीता को चोंच मारी पढ़िए दिलचस्प कथा !! 🏯🏯{Bolo Ji Radhey Radhey}

इंद्र पुत्र जयंत :- 💡 यह उस समय की बा

#snowfall जब इंद्र पुत्र जयंत ने माता सीता को चोंच मारी पढ़िए दिलचस्प कथा !! 🏯🏯{Bolo Ji Radhey Radhey} इंद्र पुत्र जयंत :- 💡 यह उस समय की बा #पौराणिककथा

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N S Yadav GoldMine

आज मैं आपको लंकिनी कौन थी व भगवान ब्रह्मा ने उसे क्या कार्य सौंपा था उसके बारे में बताएंगे !! 🎑{Bolo Ji Radhey Radhey}
लंकिनी :- 💤 लंकिनी लंका राज्य की सुरक्षा प्रभारी थी जो लंका नगर के प्रवेश द्वार पर पहरा देती थी। उसकी आज्ञा के बिना कोई भी नागरिक लंका के अंदर प्रवेश नही कर सकता था। वह अत्यंत शक्तिशाली व बलवान स्त्री थी जिसे रावण ने मुख्यतया लंका की सुरक्षा का उत्तरदायित्व दिया था। जब हनुमान माता सीता की खोज में लंका में प्रवेश करने लगे तब उनका सामना लंकिनी से हुआ था। आज हम उसी रोचक प्रसंग तथा लंकिनी की कथा के बारे में जानेंगे।

भगवान ब्रह्मा ने लंकिनी को सौंपा लंका की सुरक्षा का प्रभार :- 💤 जब भगवान ब्रह्मा के वरदान से रावण को सोने की भव्य नगरी लंका प्राप्त हुई तो वह अत्यंत प्रसन्न था। उस समय ब्रह्मा जी ने लंकिनी को लंका का मुख्य प्रहरी बनाया था व उसे लंका की सुरक्षा का भार सौंपा था। लंकिनी ने भगवान ब्रह्मा से पूछा कि वह कब तक लंका की सुरक्षा में तैनात रहेगी। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि जब एक दिन वानर रूप में स्वयं भगवान यहाँ आयेंगे तब वे तुम पर एक ही प्रहार करेंगे जिससे तुम परास्त हो जाएगी। उस समय तुम्हारा लंका की सुरक्षा करने का कर्तव्य पूर्ण हो जायेगा व तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी।

हनुमान आये माता सीता की खोज में :- 💤 जब हनुमान समुंद्र लांघकर माता सीता की खोज में लंका की नगरी पहुंचे तो वे लंकिनी को चकमा देकर अंदर प्रवेश करने लगे किंतु लंकिनी ने उन्हें देख लिया व रोक लिया। लंकिनी ने हनुमान से लंका में प्रवेश करने का कारण पूछा तो हनुमान उन्हें सत्य बताना नही चाहते थे। इसलिये उन्होंने लंकिनी से कहा कि वे केवल यहाँ विचरण करने व लंका को देखने आये है। इस पर लंकिनी ने हनुमान की चाल को समझ लिया व उन पर आक्रमण करने दौड़ी।

हनुमान का लंकिनी पर एक प्रहार :- 💤 लंकिनी को स्वयं पर आक्रमण करते देखकर हनुमान ने स्त्री का वध करना उचित नही समझा व उसे रोकने के लिए उस पर एक जोरदार प्रहार किया जिससे लंकिनी अचेत हो गयी व उसके मुख से रक्त बहने लगा। एक वानर के द्वारा शक्तिशाली लंकिनी पर इतने जोरदार प्रहार से लंकिनी को ब्रह्मा जी के द्वारा कही गयी बात याद आ गयी।

लंकिनी ने मांगी हनुमान से क्षमा:- 💤 ब्रह्मा जी की बात याद आते ही लंकिनी ने उसी समय हनुमान से क्षमा मांगी व उन्हें सारा वृतांत सुनाया। उसने हनुमान जी से कहा कि वह जान चुकी है कि अब लंका व राक्षसों का अंत आ चुका है। साथ ही ब्रह्मा के कहे अनुसार उसका भी लंका की सुरक्षा का उत्तरदायित्व अब समाप्त हो चुका है। इसलिये वे उन्हें क्षमा करें ताकि वह पुनः ब्रह्म लोक जा सके। इसके बाद लंकिनी पुनः ब्रह्म लोक की ओर चली जाती है।

लंकिनी की मिला था भगवान ब्रह्मा का श्राप :- 💤 एक मान्यता के अनुसार लंकिनी पहले एक सुंदर स्त्री थी जिसके पास पहले भगवान ब्रह्मा के लोक की सुरक्षा का भार था किंतु स्वयं को मिले इस उत्तरदायित्व के कारण उसमे अहंकार आ गया था। इसी अहंकार के कारण ब्रह्मा जी ने उसे राक्षस नगरी का प्रहरी बना दिया था। जब उसे अपनी गलती का अनुभव हुआ तो उसने भगवान ब्रह्मा से क्षमा मांगी। तब भगवान ब्रह्मा ने उसे एक वानर के द्वारा उस पर प्रहार करके उसे मुक्ति देने का उपाय बताया था। N S Yadav...

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  #snowfall आज मैं आपको लंकिनी कौन थी व भगवान ब्रह्मा ने उसे क्या कार्य सौंपा था उसके बारे में बताएंगे !! 🎑{Bolo Ji Radhey Radhey}
लंकिनी :- 💤

#snowfall आज मैं आपको लंकिनी कौन थी व भगवान ब्रह्मा ने उसे क्या कार्य सौंपा था उसके बारे में बताएंगे !! 🎑{Bolo Ji Radhey Radhey} लंकिनी :- 💤 #प्रेरक

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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey}
मेघनाद वध :- 💠 सुलोचना मेघनाथ की पत्नी व भगवान विष्णु के शेषनाग वासुकी की पुत्री थी। चूँकि लक्ष्मण शेषनाग के ही अवतार थे इसलिये वे सुलोचना के पिता व मेघनाथ के ससुर लगते थे। सुलोचना को नाग कन्या कहा जाता था व कुछ पुस्तकों के अनुसार उसका नाम प्रमीला भी बताया गया है। युद्धभूमि में जब मेघनाथ लक्ष्मण के हाथो वीरगति को प्राप्त हो गया था तब सुलोचना अपने पति के शरीर के साथ सती हो गयी थी। हालाँकि इस कथा का उल्लेख ना तो वाल्मीकि रचित रामायण व ना ही तुलसीदास रचित रामचरितमानस में मिलता है। कुछ अन्य भाषाओँ मुख्यतया तमिल भाषा की कथाओं में इसका प्रमुखता से उल्लेख मिलता है। 

सुलोचना व मेघनाथ का अंतिम मिलन :-  💠 तीसरी बार युद्ध में जाते समय मेघनाथ को यह ज्ञात हो गया था कि श्रीराम व लक्ष्मण कोई साधारण मानव नही अपितु स्वयं नारायण का रूप है तो वह अपने माता-पिता व सुलोचना से अंतिम बार मिलने आया। वह अपने माता-पिता से मिलकर जाने लगा तब उसने सुलोचना को देखा। सुलोचना से वह इसलिये नही मिलना चाहता था क्योंकि उसे लग रहा था कि कही सुलोचना के आंसू देखकर वह भी भावुक हो जायेगा व युद्ध में कमजोर पड़ जायेगा किंतु जब उसने सुलोचना का मुख देखा तो अचंभित रह गया। सुलोचना के आँख में एक भी आंसू नही था तथा वह अपने पति को गर्व से देख रही थी। हालाँकि उसे भी पता था कि आज उसका अपने पति के साथ अंतिम मिलन है लेकिन एक पतिव्रता व कर्तव्यनिष्ठ नारी होने के कारण उसने अपने पति को युद्ध में जाने से पूर्व उनके कर्तव्य में उनका साथ दिया व अपनी आँख से एक भी आंसू नही गिरने दिया।

मेघनाथ का वध होना :-  💠 जब लक्ष्मण मेघनाथ का वध करने जाने लगे तब भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि चूँकि सुलोचना एक पतिव्रता नारी है इसलिये मेघनाथ का मस्तक भूमि पर ना गिरे। इसलिये जब लक्ष्मण ने मेघनाथ का मस्तिष्क काटकर धड़ से अलग कर दिया तो उसे श्रीराम के चरणों में रख दिया।

मेघनाथ की भुजा पहुंची सुलोचना के पास :- 💠 भगवान श्रीराम लंका व सुलोचना को यह बता देना चाहते थे कि युद्ध में मेघनाथ वीरगति को प्राप्त हो चुका है। इसी उद्देश्य से उन्होंने मेघनाथ की दाहिनी भुजा को काटकर धनुष-बाण से सुलोचना के पास पहुंचा दिया। जब सुलोचना ने मेघनाथ की भुजा देखी तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नही हुआ। उसने उस भुजा से युद्ध का सारा वृतांत लिखने को कहा। उसके बाद एक कलम की सहायता से मेघनाथ की भुजा ने युद्ध मे घटित हुई हर घटना का वृतांत सुलोचना को लिखकर बता दिया।

सुलोचना पहुंची रावण के पास :- 💠 इसके बाद सुलोचना अपने पति की भुजा लेकर रावण के पास पहुंची व उनसे अपने पति के साथ सती होने की आज्ञा मांगी। रावण ने उसे यह आज्ञा दे दी किंतु पति के सिर के बिना वह सती नही हो सकती थी। इसलिये उसने रावण से मेघनाथ के धड़ की मांग की किंतु रावण ने शत्रु के सामने याचना करने से मना कर दिया। चूँकि राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुष थे व उनकी सेना में ऐसे अनेक धर्मात्मा थे इसलिये उसने सुलोचना को स्वयं श्रीराम के पास जाकर मेघनाथ का मस्तिष्क लेकर आने की आज्ञा दे दी। सुलोचना लंका नरेश से आज्ञा पाकर श्रीराम की कुटिया की और प्रस्थान कर गयी।

सुलोचना ने माँगा मेघनाथ का सिर :- 
💠 जब सुलोचना भगवान श्रीराम के पास पहुंची तो श्रीराम व उनकी सेना के द्वारा उनका उचित आदर-सम्मान किया गया व श्रीराम ने उनकी प्रशंसा की। सुलोचना ने भगवान को प्रणाम किया व अपने पति का मस्तिष्क माँगा। श्रीराम ने भी बिना देरी किए महाराज सुग्रीव को मेघनाथ का सिर लाने को कहा किंतु सभी के मन में यह आशंका थी कि आखिर सुलोचना को यह सब कैसे ज्ञात हुआ। तब सुलोचना ने मेघनाथ की भुजा के द्वारा उसे सब बता देने की बात बतायी।

सुग्रीव ने किया अनुरोध :- 💠 यह सुनकर मुख्यतया वानर राजा सुग्रीव हतप्रभ थे व उन्होंने सुलोचना से मांग की कि यदि उसके पतिव्रत धर्म में इतनी शक्ति है तो वह इस कटे हुए धड़ को हंसाकर दिखाएँ। यह सुनकर सुलोचना ने उस मस्तिष्क को अपने पतिव्रत धर्म की आज्ञा देकर उसे सबके सामने हंसने को कहा। इतना सुनते ही मेघनाथ का कटा हुआ सिर जोर-जोर से हंसने लगा। सब यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये किंतु भगवान श्रीराम सुलोचना के स्वभाव व शक्ति से भलीभांति परिचित थे। उन्होंने उस दिन युद्ध विराम की घोषणा की व लंका की सेना को अपने युवराज का अंतिम संस्कार करने को कहा ताकि सुलोचना के सती होने में किसी प्रकार का रक्तपात ना हो। इसलिये उस दिन कोई युद्ध नही हुआ था।

सुलोचना का सती होना :- 💠 अपने पति का कटा हुआ सिर लेकर सुलोचना लंका आ गयी व समुंद्र किनारे सभी मृत सैनिकों व मेघनाथ की अर्थी सजा गयी। सुलोचना धधकती अग्नि में अपने पति का सिर लेकर बैठ गयी व सभी के सामने सती हो गयी।

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  #dhundh {Bolo Ji Radhey Radhey}
मेघनाद वध :- 💠 सुलोचना मेघनाथ की पत्नी व भगवान विष्णु के शेषनाग वासुकी की पुत्री थी। चूँकि लक्ष्मण शेषनाग के

#dhundh {Bolo Ji Radhey Radhey} मेघनाद वध :- 💠 सुलोचना मेघनाथ की पत्नी व भगवान विष्णु के शेषनाग वासुकी की पुत्री थी। चूँकि लक्ष्मण शेषनाग के #पौराणिककथा

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N S Yadav GoldMine

आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey}

त्रिजटा कौन थी :- 🌰 त्रिजटा रावण की नगरी में एक ऐसी राक्षसी थी जिसका जन्म तो राक्षस कुल में हुआ था लेकिन उसका हृदय देवियों के समान पवित्र था। वह रावण को दुष्ट व पापी समझती थी व भगवान विष्णु में विश्वास रखती थी। रावण के द्वारा माता सीता का अपहरण किये जाने के पश्चात उसे अशोक वाटिका में रखा गया था जहाँ माता त्रिजटा को ही उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। उस समय उसने अपनी बुद्धिमता के साथ माता सीता को संभाला था। 

त्रिजटा का जन्म :- 🌰 त्रिजटा के जन्म के बारें में वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास की रामचरितमानस में तो नही बताया गया है लेकिन कुछ अन्य भाषाओँ में त्रिजटा के बारें में भिन्न-भिन्न विवरण सुनने को मिलते हैं। सबसे प्रमुख मान्यता के अनुसार त्रिजटा को रावण के छोटे भाई विभीषण व उनकी पत्नी सरमा की पुत्री बताया गया हैं। कुछ अन्य रामायण में त्रिजटा को रावण व विभीषण की बहन के रूप में दर्शाया गया है। किसी भी बात को प्रमाणिक तौर पर नही कहा जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि उसका जन्म एक राक्षस कुल में हुआ था फिर भी उसके अंदर राक्षसी प्रवत्ति के गुण नामात्र थे। वह हमेशा माता सीता की सच्ची मित्र के रूप में याद की जाती है।

अशोक वाटिका में माता सीता की अंगरक्षक की भूमिका :- 🌰 जब रावण छल के द्वारा माता सीता को पंचवटी से अपने पुष्पक विमान में उठाकर ले आया तो उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा। रावण के द्वारा माता त्रिजटा को ही सीता की सुरक्षा सौंपी गयी व सभी राक्षसियों का प्रमुख बनाया गया। रामायण में त्रिजटा की भूमिका भी यही से शुरू हुई थी जिसमे उन्होंने स्वयं के चरित्र को ऐसा दिखाया जिससे वह आमजनों के दिल में हमेशा के लिए बस गयी।

माता सीता की दुःख की साथी :- 🌰 जब माता सीता रावण के द्वारा अपहरण कर लंका में लायी गयी तब वह अत्यंत विलाप कर रही थी। साथ ही अशोक वाटिका में अन्य राक्षसियां उन्हें तंग कर रही थी। यह देखकर त्रिजटा ने अपनी बुद्धिमता से बाकि राक्षसियों को चुप करा दिया था व माता सीता को ढांढस बंधाया था। त्रिजटा के कारण ही माता सीता को उस राक्षस नगरी में रहने की शक्ति मिली व उनका विलाप कम हुआ थ

माता सीता की गुप्तचर :- 🌰 वैसे तो माता त्रिजटा रावण की सेविका थी लेकिन वह भगवान श्रीराम की विजय में विश्वास रखती थी। उसनें अपने व माता सीता के बीच के संबंधों को जगजाहिर नही होने दिया किंतु हर पल वह माता सीता को हर महत्वपूर्ण जानकारी देती थी जैसे कि लंका का दहन होना, समुंद्र पर सेतु बनना, राम लक्ष्मण का सुरक्षित होना इत्यादि। त्रिजटा के द्वारा समय-समय पर माता सीता को जानकारी देते रहने से उनकी हिम्मत बंधी रहती थी।

रावण के अंत के बाद माता त्रिजटा :- 🌰 अंत में भगवान श्रीराम व दशानन रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ व उसमें रावण मारा गया। इसके पश्चात विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया व उन्होंने तुरंत माता सीता को मुक्त करने का आदेश जारी कर दिया। त्रिजटा माता सीता के जाने से तो दुखी थी लेकिन प्रसन्न भी थी कि अब सब विपत्ति टल गयी। अग्नि परीक्षा के बाद जब माता सीता भगवान श्रीराम के पास आई तब उन्होंने माता त्रिजटा के वात्सल्य व प्रेम के बारे में उन्हें बताया। यह सुनकर सभी बहुत खुश हुए व भगवान राम व माता सीता ने त्रिजटा को इतने पुरस्कार दिए कि अब जीवनभर उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नही थी। साथ ही त्रिजटा को लंका में भी विभीषण के द्वारा अहम उत्तरदायित्व व उचित सम्मान दिया गया। कुछ मान्यताओं के अनुसार माता त्रिजटा भगवान राम व माता सीता के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या भी आई थी व कुछ दिनों तक उनके साथ रही थी। कुछ रामायण में लंका विजय के बाद यह बताया गया है कि विभीषण ने भगवान हनुमान से अनुरोध किया था कि वे उनकी बेटी त्रिजटा से विवाह कर ले। इसके बाद हनुमान ने त्रिजटा से विवाह किया जिन्हें उन्हें एक पुत्र तेगनग्गा प्राप्त हुआ। कुछ समय तक वहां रहने के पश्चात हनुमान वहां से चले गए।

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  #boat आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey}

त्रिजटा क

#boat आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey} त्रिजटा क #प्रेरक

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क्या कुंवारी लड़कियां भी रख सकती हैं करवा चौथ का व्रत? जानिए क्या है मान्यता करवाचौथ पर बुधादित्य योग में अर्घ्य देंगी महिलाएं, जानिए चंद्र पूजन क्यों? 🌝🌝
{Bolo Ji Radhey Radhey}
करवा चौथ 2022 :- 🍏 पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ व्रत रखा जाता है। इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर 2022, दिन गुरुवार को रखा जाएगा। करवा चौथ का ये व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। महिलाएं करवा चौथ के दिन कठिन उपवास रखती है और चांद के निकलने तक पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। दिन भर व्रत रहने के बाद रात में चौथ का चांद देखने के बाद छलनी में पति का चेहरा देखकर ही महिलाएं व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत को पति के दीर्घायु और दांपत्य जीवन में खुशहाली प्रदान करने वाला माना गया है, इसलिए शादी-शुदा महिलाओं के द्वारा ये व्रत रखने का विधान है। वैसे तो ये व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा करने का विधान है, लेकिन कई बार लोगों के मन में ये प्रश्न आता है कि क्या अविवाहित लड़कियां भी करवा चौथ का व्रत कर सकती हैं या नहीं। 

क्या अविवाहित लड़कियां भी रख सकती हैं करवा चौथ का व्रत ?

🍏 ज्योतिष की माने तो अविवाहित लड़कियां अपने मंगेतर या प्रेमी जिसे वो अपना जीवन साथी मान चुकी हों, उनके लिए करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। मान्यता है कि इससे उन्हें करवा माता का आशीष प्राप्त होता है। लेकिन कुंवारी कन्याओं के लिए करवा चौथ व्रत व पूजन के नियम अलग-अलग होते हैं, इसलिए यदि आप अविवाहित हैं और करवा चौथ का व्रत करना चाहती हैं, तो सबसे पहले इन बातों के बारे में जान लेना आवश्यक है।

🍏 वैसे तो इस व्रत में भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। लेकिन कुंवारी कन्याओं को करवा चौथ के व्रत में केवल मां करवा की कथा सुननी चाहिए व भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना चाहिए। 

🍏 कुंवारी लड़कियां तारों को देखकर अर्घ्य दे सकती हैं और व्रत का पारण कर सकती हैं। मान्यता के अनुसार, चंद्रमा को अर्घ्य देने का नियम केवल सुहागिन स्त्रियों के लिए होता है। इसके अलावा अविवाहित लड़कियों को छलनी के प्रयोग करने की भी कोई बाध्यता नहीं है। वे बिना छलनी के ही तारों को देखकर अर्घ्य दे सकती हैं और व्रत का पारण कर सकती हैं।

इसलिए की जाती है चौथ पर चंद्रमा की पूजा :- 🍏 ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है,जो मन की चंचलता को नियंत्रित करता है। हमारे शरीर में दोनों भौहों के मध्य मस्तक पर चंद्रमा का स्थान माना गया है। यहां पर महिलाएं बिंदी या रोली का टीका लगती हैं,जो चंद्रमा को प्रसन्न कर मन का नियंत्रण करती हैं। भगवान शिव के मस्तक पर अर्धचंद्र की उपस्थिति उनके योगी स्वरूप को प्रकट करती हैं। अर्धचंद्र को आशा का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि सौभाग्य, पुत्र, धन-धान्य, पति की रक्षा एवं संकट टालने के लिए चंद्रमा की पूजा की जाती है।

🍏 करवाचौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का एक अन्य कारण यह भी है कि चंद्रमा औषधियों और मन के अधिपति देवता हैं। उसकी अमृत वर्षा करने वाली किरणें वनस्पतियों और मनुष्य के मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। दिन भर उपवास के बाद चतुर्थी के चंद्रमा को छलनी की ओट में से सभी नारियां देखती हैं,तो उनके मन पर पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव उत्पन्न होता है,उनके मुख व शरीर पर एक विशेष कांति 

🍏 इससे महिलाओं का यौवन अक्षय,स्वास्थ्य उत्तम और दांपत्य जीवन सुखद हो जाता है। उपनिषद के अनुसार जो व्यक्ति चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्म को जानकार उसकी उपासना करता है,वह उज्जवल जीवन व्यतीत करता है। उसके सारे कष्ट दूर होकर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं वह लंबी आयु पाता है। चंद्रदेव की कृपा से उपासकों की इस लोक और परलोक में रक्षा होती है।

करवा चौथ पूजा नियम :-🍏 पूजा की थाली में रोली, चावल, दीपक, फल, फूल,पताशा,सुहाग का सामान और जल से भरा कलश रखा जाता है। करवा के ऊपर मिटटी की सराही में जौ रखे जाते हैं। जौ समृद्धि,शांति,उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ध्यान रहे कि पूजा की थाली में खंडित चावल व माचिस न रखें। 

🍏 चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें। भूलकर भी अर्घ्य देते समय जल के छींटे पैरों पर न पड़ें,ऐसा होना शुभ नहीं माना जाता है। 

🍏 मिटटी का करवा गणेशजी का प्रतीक माना गया है,इससे चंद्रमा को अर्घ्य दें और दूसरे लोटे के पानी से व्रत खोलें। 

🍏 करवा साबुत और स्वच्छ होना चाहिए,टूटा या दरार वाला करवा पूजा में अशुभ माना गया है। 

🍏 जिस सुहाग चुन्नी को पहनकर आपने कथा सुनी,उसी चुन्नी को ओढ़कर चंद्रमा को अर्घ्य दें।

🍏 इस दिन किसी की बुराई-चुगली अथवा किसी का अपमान न करें एवं लहसुन-प्याज वाला और तामसिक खाना न बनाएं।

©N S Yadav GoldMine क्या कुंवारी लड़कियां भी रख सकती हैं करवा चौथ का व्रत? जानिए क्या है मान्यता करवाचौथ पर बुधादित्य योग में अर्घ्य देंगी महिलाएं, जानिए चंद्र प

क्या कुंवारी लड़कियां भी रख सकती हैं करवा चौथ का व्रत? जानिए क्या है मान्यता करवाचौथ पर बुधादित्य योग में अर्घ्य देंगी महिलाएं, जानिए चंद्र प #Shadow #समाज

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N S Yadav GoldMine

आइये जानते हैं भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी !! 
🌻N S Yadav - N K Tiwari🌻
{Bolo Ji Radhey Radhey}
रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना :-
↪ रामेश्वरम में जो शिवलिंग स्थापित है वह सभी हिन्दुओं के बीच अत्यधिक पवित्र स्थल हैं। साथ ही यह स्थल चार धामों में से एक माना जाता हैं जिसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्ण की थी। आखिर श्रीराम ने उसी स्थल पर शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी व इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य था? 

श्रीराम के द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना :- समुंद्र पर बनवाया सेतु :-↪ जब श्रीराम को हनुमान के द्वारा माता सीता के लंका में सुरक्षित होने की बात पता चली तो वे संपूर्ण वानर सेना के साथ किष्किन्धा से तमिलनाडु के धनुषकोडी नामक स्थल पर पहुँच गए जो लंका के समीप सबसे निकट भूमि थी। यही से उन्होंने समुंद्र देव से आज्ञा लेकर नल व नील की सहायता से समुंद्र सेतु के निर्माण का कार्य शुरू करवाया था।

👉 क्यों किया रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित :- ↪ चूँकि यह रावण के अंत की शुरुआत हो रही थी व यही से भगवान को लंका की चढ़ाई कर रावण का अंत करना था इसलिये उन्होंने अपने आराध्य भगवान शिव की याद में यहाँ शिवलिंग स्थापित करने का सोचा। श्रीराम के अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को पापियों से मुक्त करना तथा राक्षसों के राजा रावण का अंत करना था। लंका पर चढ़ाई करने के पश्चात कुछ ही दिनों में रावण का अंत हो जाता। इसलिये श्रीराम ने उससे पहले अपने आराध्य भगवान शिव की स्तुति करने का निर्णय लिया। इसके लिए भगवान श्रीराम ने महाराज सुग्रीव को आदेश दिया था कि वे आसपास से सिद्धि प्राप्त सभी पंडितों व ऋषि-मुनियों को बुलाए व उनके द्वारा पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाए।

↪ इसके बाद उन्होंने अपने हाथ से उस स्थल पर समुंद्र की मिट्टी का शिवलिंग बनाया व उस पर जल, बेलपत्र इत्यादि अर्पित किये। समुंद्र पर लंका तक सेतु का निर्माण करने में पांच दिन का समय लगा था व इतने दिनों तक भगवान श्रीराम शिवलिंग की पूजा करते रहे व भगवान शिव की स्तुति में डूबे रहे। अन्तंतः जब सेतु का निर्माण कार्य पूर्ण हो गया तब उन्होंने भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर लंका के लिए चढ़ाई शुरू की व रावण रुपी पापी का अंत किया। इस स्थल का नाम रामेश्वरम इसलिये पड़ा क्योंकि इसे राम भगवान के ईश्वर अर्थात भगवान शिव से जोड़कर देखा गया। यह नाम स्वयं भगवान श्रीराम ने ही दिया था।

©N S Yadav GoldMine
  #boat आइये जानते हैं भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी !! 
🌻N S Yadav - N K Tiwari🌻
{Bolo Ji Radhey Radhey}
रामे

#boat आइये जानते हैं भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी !! 🌻N S Yadav - N K Tiwari🌻 {Bolo Ji Radhey Radhey} रामे #पौराणिककथा

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Ashish Kumar

माता शबरी और भगवान श्री राम व लक्ष्मण मिलन

माता शबरी और भगवान श्री राम व लक्ष्मण मिलन #समाज

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साहस

और उस कुंभ के संचालक आप होते,
तो जलकुंभी ही बन जाते। #भगवान #भगवान् 
#राम #राममंदिर #श्रीराम 
#रामराज्य
#raammandir  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Atul Verma
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Lalit Kumar

कुछ लोग कहते है कि हमारी गाडी भगवान भरोसे चल रही है ।
अगर भगवान से ही गाडी चलवाना चाहते होतो 
कुछ कर्म अर्जुन जैसे भी कर लिया करो।
क्योकि भगवान भरोसे तो गाडी सिर्फ अर्जुन कि ही चली थी। #NojotoQuote भगवान भरोसे ..............?
भगवान भरोसे ..............?

भगवान भरोसे ..............? भगवान भरोसे ..............?

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सृष्टि के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं

सृष्टि के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं

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Di Pi Ka

भगवान और कोई नहीं वो है,
जो बुरे दौर में साथ देता है।
और आप कहेंगे हम उसे देख नहीं सकते,
देख तो सकते है,
पर लोग उन्हें देवदूत कहकर अनदेखा कर देते। #भगवान
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chandan

इतना कष्ट मत तो फूल को
भगवान भी नराज हो जाएंगे
फूल समय पर तोड़ाना चाहिए ना अगर अधखिले फूल से
 खुश होते हैं भगवान
 तो उसे फूलवारी में 
होना चाहिए था ना भगवान

भगवान

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Writer Surya

मेरे प्यारे भगवान जी खोजते-खोजते थक गया
यहा ज्ञान बहोत सारे लोग देते हैं
पर उसमे क्या देते हैं, उन्हे भी नही मालुम
हूँ की नही कुछ पता नही
शांशे चल रही है की नही कुछ पता नही
तू है की नही कुछ पता नही
तुझपे आस्था है की नही कुछ पता नही
क्या बुरा कर रहा हूँ, क्या अच्छा पता नही
बस इतना ही याद रखता हूँ, जो हो रहा है उसका 
जिम्मेदार सिर्फ तू है, मै तो नौकर हूँ मलिक तो तू है।
    
       -Writer Sandeep patel(surya) भगवान

भगवान #कविता

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Sangam Ki Sargam

एक सवाल मेरा भगवान से-

"प्रभु वैसे तो आप सर्वव्यापी हैं परन्तु क्या मन्दिरों में बिना भक्तों के आपका मन लग रहा है?"
हाँ माना हम पापी हैं, दुराचारी हैं
पर आपकी ही संतान हैं प्रभु।
आपके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है कृपा करके इस महामारी को समेट लो ना ठीक उसी तरह जिस तरह विष पिया,ठीक उसी तरह जिस तरह 'ताड़कासुर' का तूफ़ान अपने सीने में समेटा।
विनती स्वीकार करो मेरे प्रभु।
दया दिखाओ प्रभु अब तो।
एक नजर करो कृपा की।
सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाओ भोलेनाथ😢😢😢🙏🙏
आपकी दर्शनाभिलाषी
आपकी एक भक्त। #भगवान
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kapil rawat

रब कि रजा में ख़ुश रहा करो..

वो देके भी आजमाता है और ले के भी.. #भगवान
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Shukla

भगवान


  
भ-       भूमि 
 ग-        गगन 
व-         वायु 
। (अ) - अग्नि 
न -        नीर 
               मेरे मतानुसार इन सभी पाँच तत्वों से
 मिलकर बना है भगवान, इनका संरक्षण करें 
आराम से जीवन जिये। भगवान

भगवान #विचार

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VickY MishrA

जय श्री परशुराम भगवान #भगवान
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Gautam Bisht

मित्रो,
जल, अग्नि, वायु, आकाश, अहंकार, महत्तत्त्व और प्रकृति- इन सात आवरणों से घिरे हुए इस ब्रह्माण्ड शरीर में जो विराट् पुरुष भगवान हैं, वही परमात्मा का स्वरूप है।

©Gautam Bisht #भगवान
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Sneha MS

जिंदगी में हम कुछ न हासिल कर पाये।
लेकिन 
तुम्हें भक्ति से पाके भगवन,  तुम न मिलें होते, तो हम सब  कुछ् खो जाते। ।
🙏Krishnarpana mastu 🙏

©Sneha MS #भगवान
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dauly Sharma

दिल के सच्चे लोग भले ही अकेले रह जाते ह
लेकिन ऐसे लोगो का साथ भगवान जरूर देते है

©dauly Sharma भगवान

भगवान

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Monika jayesh Shah

भगवान

भगवान #समाज

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Vikas Dhaundiyal

कि पत्थरों को पूज के लोग 

भगवान बना देते है 

फिर जो ना पूरी करे उनकी ख्वाहिशें 

तो उस भगवान को पत्थर का बता देते है भगवान

भगवान

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DOOBATE ALFAAZ

 #भगवान
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