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Chintoo Choubey
जग के नाटक देखे ऐसे, ऐसे- ऐसे,जैसे-तैसे, हर पल देखे भिन्न-भिन्न से, कुछ नखराले कुछ निराले, पर हर एक मुखौटा ऐसा ऐसा - ऐसा, जैसा तैसा, कुछ की भूलभुलैया बातें, कुछ की गोलमोल सी बातें, कुछ पर ऐसा ढोंग धतूरा, कुछ पर खाली नीम-करेला, जग के नाटक देखे ऐसे, ऐसे-ऐसे, जैसे-जैसे, ढोंग का माखौल चढ़ा है, उस पर शहद का लेप चढ़ा है, प्यार प्रेम की बात नहीं है, बेईमानों की सरकार बड़ी है, उस पर करते तमाशा ऐसा, ऐसा-ऐसा जैसा-तैसा, एक और बात,जरा ध्यान से सुनना, ये जो करते अपनापन, नहीं है उसमें जरा भी दम, खूब रोते गाते आएंगे, अपनी अपनी ही गाएंगे, सावधान! बचना ऐसे लोगों से, कैसे लोगों से? ऐसे-ऐसे लोगों से, जैसे-तैसे लोगों से, धन्यवाद! जग के नाटक
करन सिंह परिहार
राजपथों के ढोंगी नायक चंदन चाहे जितना मल लो। सत्ता हथियाने की खातिर चाहे जितनी चालें चल लो। पर मैं अपनी रचनाओं से तुम्हें पराजित सदा करूंगा। और पसीने से लथपथ हर माथे के मैं गले लगूंगा। जो खेतों के संन्यासी हैं सूर्य ताप से नित मिलते हैं। फटी कमीजों में अपने जो ओस बूंद के कण सिलते हैं। जिसके साथ हमेशा रहता धुंध कुहासे का अपनापन। जिसके आगे झूम - झूम कर मोर नित्य करते हैं नर्तन। मैं उन मेहनतकश अंगों में फूलों का मकरन्द भरूंगा। और पसीने की-------------------------------------(१) जाति-पांति का जहर घोलकर तुमने अपने भाग्य संवारे। और तुम्हारी कूटनीति से जगह -जगह दहके अंगारे। धर्मवाद की दग्ध चिता मानवता को झोंका तुमने। आम - जनों को मिलने वाले अधिकारों को रोंका तुमने। पर मैं अपने हर गीतों में तुम्हें धरा का बोझ कहूंगा। और पसीने-------------------------------------------(२) जिन हाथों की गीली मेंहदी सीमाओं पर हुई निछावर। भरी जवानी विलग हो गया जिन पैरों से नेह महावर । जिनकी कच्ची उम्र जवानी के दर्पण को त्याग चुकी है। और नींद जिन-जिन आंखों से अगणित रातें जाग चुकी है। उन आंखों से बहते आंसू का जीवन संग्राम लिखूंगा। और पसीने------------------------------------------(३) ©करन सिंह परिहार #राजपथों के ढोंगी नायक
Pushpendra Pankaj
जिंदगी भर साथ रहते पैर के जूते । इन्हे बदलना ना बदलना हैसियत के बूते।। ©Pushpendra Pankaj पैर के जूते
Ankit Mishra
जाते-जाते अगर यू न मुझको आज़माता तो गनीमत थी आसुओ का शैलाब न आता वो बेवक्त पटल कर देखना तेरा न जाने क्या क्या तोड़ गया अन्दर मेरा सपने न थे थी कोई टूटी ईमारत कॉच कि अगर कॉच चुभने का डर न होता तो बुलाता तुझे तेरा वो महल था कभी और अब मेरा खंडहर है.. दिखाता जाते-जीते
Poet Arun Chakrawarti,Mo.9118502777
शीर्षक-राष्ट्रगान के नायक हे रविन्द्र शत वार प्रणाम तुम्हें मैं करता हूँ मैं राष्ट्र गीत तुम्हारे गाता हूँ दिया जो भारत को राष्ट्रगान, याद उसे फिर मैं करता हूँ हे रविन्द्र शत वार प्रणाम तुम्हें मैं करता हूँ |1| दी पहचान इस भारत को हे जन गण मन के नायक आव्हान तुम्हारा करता हूँ हे रविन्द्र शत वार प्रणाम तुम्हें मैं करता हूँ |2| भारत की संस्कृति,सभ्यता से गहरा नाता है किया दौरा विश्व का फिर भी कोई न भाता है दिलाई एक नई पहचान भारत को विश्व मे, हर भारतीये जन गण मन गण गीत गाता है |3 | हे देवेंद्र के लाल,तुम हो शान-ऐ-बंगाल बंगाल प्रान्त की तुम हो शान भारत देश की हो तुम पहचान लिखा जो राष्ट्रगान आपने वही मैं गाया करता हूँ हे रविन्द्र शत वार प्रणाम तुम्हें मैं करता हूँ |4| रचनाकार-अरुण चक्रवर्ती ©Poet Arun Chakrawarti,Mo.9118502777 हे राष्ट्रगान के नायक #RABINDRANATHTAGORE
Avni Avni
टीचर ने मज़ाक मे कहा कोई है जो जन्नत से मिट्टी ला सके दूसरे दिन एक बच्चा थोड़ी सी मिट्टी किसी चीज़ मे डालकर ले आया और बोला सर आपने कल जन्नत की मिट्टी मांगी थी टीचर और क्लास के सभी बच्चों ने हैरान होकर पूछा ये कहा से लाए हो उसने कहा मेरी माँ के क़दमो के नीचे से ©Avni Avni माँ के लिए लाईक करें।