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its.ishamishra30

#वक़्त २५

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हम उनके साथ वक़्त गुजारने का मौका ढूंढ रहे थे
और वो जनाब हमें बैठा के ख़ुद ही घूम रहे थे😊 #वक़्त   २५

mahi yadav

परोसी तो जलता है भाई लेकिन मेहनत 💪करो और परोसी को जलाव 🥵... #Motivational

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Praveen Jain "पल्लव"

#Invisible मिटाकर वजूद,गरीबी परोसी जाती है #Invisible #कविता

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पल्लव की डायरी
बहकाना सियासतों का,मकसद हो गया है
गिरप्त में आवाम,दहशतो का बोलबाला हो गया है
चुन लिये अपने लिये, कई रास्ते दौलतों के लिये
जनता की कमाई,अवैध बताती है
चलता है टेरर,शांति भंग की जाती है
कई हिस्सों में,जिंदगी उजाड़ी जाती है
वोट वोट खेल कर,दुहाई 
लोकतंत्र की दी जाती है
मिटाकर वजूद,गरीबी परोसी जाती है
मेहनतकशी हमारी,लूट का मजा
सफेद पोश और खादी उठाती है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #Invisible
मिटाकर वजूद,गरीबी परोसी जाती है
#Invisible

Anjali Jain

अनायास...२५-१०-२१ #jharokha

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हम किसी को चोट पहुंचाना नहीं चाहते
पर
दूसरों के द्वारा दी जाने वाली
 चोटों से 
स्वयं को बचाने के
 प्रयास में 
अनायास ही
 चोट दे बैठते हैं!!

© Anjali Jain अनायास...२५-१०-२१

#jharokha

Arjun Rana Yoga

#Flute योग दर्शन, समाधिपाद- सूत्र.२५

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शिव संकल्प

शिवदिनविशेष 🚩 इ. स. २५ मार्च १६७० #मराठीपौराणिक

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

या देवी...मातृरूपेण...नमस्तस्यै (दुर्गासप्तशती ५/२५) #nojotophoto

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 या देवी...मातृरूपेण...नमस्तस्यै (दुर्गासप्तशती ५/२५)

ShivSankalp

शिवदिनविशेष 🚩 इ. स. २५ फेब्रुवारी १६३७ #Mythology

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सुसि ग़ाफ़िल

अजीबोगरीब परंपराएं हैं हमारी मृत्यु पर भी चाय परोसी जाती है।

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अजीबोगरीब परंपराएं हैं हमारी ,
मृत्यु पर भी चाय परोसी जाती है। अजीबोगरीब परंपराएं हैं हमारी 
मृत्यु पर भी चाय परोसी जाती है।

Hitesh Saini(पथिक)

कभी कभी कविता २५ November २०१९ please read

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कभी कभी यूं लगता है जीवन कुछ है ही नहीं
कभी कभी लगता है बस यही है ज़िन्दगी

कभी कभी तो राहों में बस अकेला ही चलता हूं
कभी कभी  हर मोड़ पर भीड़ से घुलता मिलता हूं

कभी कभी घबरा जाता हूं खुद के अंदर झांक कर 
कभी कभी मुस्का देता हूं अपना प्रतिबिंब देख कर 

कभी कभी आते है रातो को वो सपनों में 
कभी कभी भर जाते है बातो और जज्बातों में

कभी कभी में खुद को खुद से बेगाना लगता हूं 
कभी कभी बस खुद को ही जाना पहचाना लगता हूं

कभी तो लगता है बस कभी कभी का खेल है
कभी कभी ये लगता है बस पल दो पल का मेल है 

कभी कभी की बातों में जैसे कभी  खो जाता हूं
कभी कभी यूंही सुंदर सपनों में सो जाता हूं

कभी कभी अनजाने में किस्से कहानिया बन जाते है
कभी कभी चाह कर भी जज्बात अधूरे रह जाते है

कभी कभी तो अपने भी पराए लगते है
कभी अजनबियों से भी रिश्ते गहरे लगते है

कभी कभी कर के सब कुछ जनोगे क्या अभी
चलो बस अब चलते है मिलेगे कहीं फिर कभी
                                        -हितेश (पथिक) कभी कभी
#कविता
२५ November २०१९
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