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Pankaj
शहरों में आजकल छूने पे है सजा गांव चलो खुली छूट खुला है मजा ©Pankaj शहरों में आजकल
pradeep jirati sayarofficial
शहरों में जैसे जैसे भीड़ बड़ जा रही है।लोग वैसे वैसे अकेले होते जा रहे। है ।। ©pradeep jirati sayarofficial शहरों में लोगों की
shivraj singh7
💫शहरों में समाया गांव 💫 शुद्ध हवा, जल, थल को छोड़, शहरों में समाया गांव। कोई बसने चला शहरों में, तो कोई करने चला पेटो का उपाय। जो कल तक प्यारी लगती, अब उनको लगे है काटो भाय। मै नहीं कहता तुम शहर न जावो, कभी लौट कर वापस तो आवो। गांव के दर्द को तुम क्या जानो, वो रोती, बिलखती रहती है। बच्चों से अलग होकर कोई मा, चैन से कहा वो सोती है। जो कल तक हरी भरी दिखती थी, अब सुखी- सुखी सी रहती है। जो रहती थी हरपल खुशियों से, अब बातो- बातो में रोती है। शहरों में भटकता अपनों को देख, ये दर्द की आहे भर्ती है। गांव की पुलिया, बागीचा अब, सपनो में अपनों के रहती है। जो चले गए शहरों में रहने, उनको याद करके रोती है। इससे पूछो इसके दिल का हाल, ये घुट- घुट कर हरपल जीती है। शिवराज सिंह चकिया (बलिया) #शहरों में समाया गांव#
Ritesh Jumnani (jumbo)
ख्वाबों के शहरों में हकीकत आपकी सबसे बड़ी दुश्मन है जिसने इसको मित्र बन लिया तो फिर उसके आगे सब चाय पानी कम है ख्वाबों के शहरों में
pradeep
अधिकांश शहरों की हवा प्रदूषित हो रही है पर क्या फर्क पड़ता है पेड़ कटे या रहे हमें तो काम पर जाना है इतना समय नहीं है कि दुनियादारी करके........ शहरों में जहरीली हवा
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी शहरों में गुमशुद है आदमी पहचान खोकर जीता है आदमी आजू बाजू कौन रहता है नही पहचानता आदमी जो भी मिलता है सलीके से अपना मतलब निकालता है आदमी तरक्की के लिये कटकर परिवारों से अकेला समस्याओं को गले लगाता आदमी हाई वीपी डायबिटीज की लत लगाता आदमी मुप्त में हवा ना पानी सबके दाम चुकाता आदमी गगन चुम्बी इमारतो का दीदार कर इतराता आदमी गाँवो को पिछड़ा बताकर शहरों में खुशी जताता आदमी प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" शहरों में गुमशुद है आदमी #City
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी गगन चुम्बी इमारतों में हवा पर भी पहरेदारी है सजती है शहरों में गरीबो को चिढ़ाती है विलासिता के सब सामान मौजूद किसी का हक तो मारती है चुराकर सपने किसी के राग रागिनी गाती है पहरेदारी इतनी चिडियाँ भी पर नही मारती है सोचे इतनी संकीर्ण किसी की मदद में हाथ नही बढ़ाती है तोड़ती है सब परम्पराये लोगो की भावनाओ से खेलकर इंसानियत शर्मशार करती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" सजती शहरों में गरीबो को चिढ़ाती है #vacation