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Pnkj Dixit
💝प्रेम नदी 💝 बारह मास आठों पहर तुम मुझमें करते सैर मैं प्यासा बादल तुम उफनती नदी मैं हो जाऊँ तृप्त पिलाओ प्रेम नदी ०२/०७/२०१८ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा 'बेधड़क' 💝प्रेम नदी 💝 बारह मास आठों पहर तुम मुझमें करते सैर मैं प्यासा बादल तुम उफनती नदी मैं हो जाऊँ तृप्त पिलाओ प्रेम नदी
parineeta
मुझे पसंद है पढ़ना कोई कविता ऐसे जैसे की हम डूब जाए इसकी गहराई में और झुक जाए उस लेखक के चरण में .... मुझे पसन्द हैं भींगना, ऐसे जैसे बूँदे मुझ पर नहीं मैं बूँदो पर गिर रहा, पसन्द हैं मुझे
अशेष_शून्य
तुम्हारा अंश ईश्वर अब मेरा प्रेम बन गया है देखो ना ईश्वर ! तुम्हें भी गर्व होगा अपने सृजन पर मेरे "प्रेम" पर ....।। -Anjali Rai (अनुशीर्षक में .....,❤️) मुट्ठियों में समेट लेता है वो अपनी पलकों की उफनती नदी को; डरता है कि कहीं उस प्रवाह में मैं बह ना जाऊं सांझ होते ही बटोर लेता है वो सार
अशेष_शून्य
देखो आदम सुनो .... तुम कुछ भी लिखो वहां से मंजूर ना मंज़ूर सब सर आंखों पर ..!! - Anjali Rai Read in caption .....❤️ देखो आदम सुनो ....🍁 तुम कुछ भी लिखो वहां से मंजूर ना मंज़ूर सब सर आंखों पर बस तुम जमीं पर ना उतरना कभी। नहीं तो तुम्हारी ही औलादें तुमसे
अशेष_शून्य
तुम देना साथ मेरा ....!! (अनुशीर्षक में ....) मुझे आश्चर्य हो रहा है कि भूमि के सबसे कठोरतम भाग अपने अंतस में खड़े होने के पश्चात भी ये कैसा प्रलय है जो मुझे लीलने को आतुर है! ये कैस
Parasram Arora
संध्या की बीमार सी मद्दिम रौशनी मे सांस लेती हुईं इस बस्ती की झुग्गियो कि चिमनियों से धुए के बादल बन कर उड़ रहे थे झुग्गी के भीतर दोनों आँखों से पानी पोंछति हुईं गृहणी बंसी कीफूंक से चूल्हे की गीली लकड़ियों को सुलगा कर मिट्टी के तवे पर रोटीया सेक रही थी अपने उन्मादी बच्चो की उफनती भूख का समाधान उसे ही तो करना था उफनती भूख......
J P Lodhi.
सागर की लहरों की तरह मच रही ज़िंदगी में उथल पुथल। ज्वार भाटे की तरह आते रहें ,अनवरत रूप से उतार चढ़ाव। डगमगा रही ज़िन्दगी की कश्ती,डूबाने को बेताब है उफान। ठहरा नहीं जाता किनारों पर भी, उड़ा रहा वहां भी तूफान। स्वर गूंज रहा उफनती लहरों के,मच रहा किनारों पर सोर। चारो तरफ छाएं गमों के बादल, होती नही खुशियों की भौंर। फंस रही कश्ती ज़िंदगी के भंवर में,किनारे बन रहे बेखबर। झेल रही कश्ती मुश्किलें, तूफानों में टूटी पतवारों के सहारे। #Nojoto उफनती लहरें
Pushpendra Pankaj
जब कोई फ्री में मौज उङाए शक तो उस पर बनता हैं । प्रकृति किसी की नहीं बपौती , अपना हक भी बनता है । असमय कोई दृश्य डरावना हृदय मे धक-धक बनता है । खाली बैठे, काम ना कोई, कुछ तो बक-बक बनता है। आस पङौस में काम चल रहा खट खट,पट-पट चलता हैं। बैर आग है,क्रोध दूध सा, आग पर दूध उफनता है । टांग खिचाई ठीक नहीं भाई, इससे झगङा बनता है ।। ©Pushpendra Pankaj आग पर दूध उफनता है
गुमनाम Dilyejazbaat
नदीश की याद में, सरिता तडपती हैं। पर, क्या जाने आवारा नदीश, सरिता हर पल रोती है। #SAD #नदीश - संमदर #सरिता - नदी