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Akib Javed

leftalone मुहब्बत की है उसने ज़िल्लत भी उठाई, कौम,रहनुमा सबने मारने की कसम है खाई! किसी ने तलवार किसी ने बंदूक उठाई,

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मुहब्बत
की है उसने
ज़िल्लत भी उठाई,
कौम,रहनुमा 
सबने मारने की
कसम है खाई!
किसी ने तलवार
किसी ने बंदूक उठाई,
सबने मिलके की 
हाथापाई!
मुहब्बत ज़बान है
अमन की
सुकूँ की
मुहब्बत से
कायम है ये जहाँ!
मुहब्बत न होती
तो न होती क़ायनात,
न होता शज़र
न ये बशर!

-आकिब जावेद #leftalone मुहब्बत
की है उसने
ज़िल्लत भी उठाई,
कौम,रहनुमा 
सबने मारने की
कसम है खाई!
किसी ने तलवार
किसी ने बंदूक उठाई,

Prakashvaani پرکاشوانی

रोज सुबह का इश्क़ तेरी किसी पुरानी बात से महके साँसों से तुझमें गुथे पड़े हालात से, रोज सुबह का इश्क़ तेरी ख्वाबों की हर रात से.... बालों में #prakashvaani

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रोज सुबह का इश्क़.... 
[Read in caption...] रोज सुबह का इश्क़
तेरी किसी पुरानी बात से
महके साँसों से तुझमें
गुथे पड़े हालात से,
रोज सुबह का इश्क़
तेरी ख्वाबों की हर रात से....

बालों में

Swåßhímåñ Sîñgh

#हिन्दी डंका बाजा रे, हिन्दी का संसार में डंका बाजा रे, हिन्दी का संसार में डंका बाजा, डंका बाजा, डंका बाजा हाय हाय डंका बाजा रे, हिन्दी क

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डंका बाजा रे , हिन्दी का संसार में...
शेष नीचे .... #हिन्दी
डंका बाजा रे, हिन्दी का संसार में
डंका बाजा रे, हिन्दी का संसार में
डंका बाजा, डंका बाजा, डंका बाजा  हाय हाय 
डंका बाजा रे, हिन्दी क

shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

है बेहतर यही,तु ऐसी*लुगाई को छोड़ दे,जब चबूतरा जैसा है,तो*चारपाई पे सोना छोड़ दे//१ *पत्नी*पलंग *बद्दुआओं में कहीं कुछ तो असर बांकी हो,मुमकिन #Quote #nojotoenglish #nojototeam #रिश्ते_आजकल #shamawritesBebaak #QuoteContest

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अनुज

बेटी विदा हो गई मगर, बेटो की विदाई कौन देखा, मखमल के बिस्तर से, टूटी चारपाई कौन देखा, नौकरी पेशा है न साहब, बेटा करता भी तो क्या करता, बेटों #motherlove

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बेटी विदा हो गई मगर,
बेटो की विदाई कौन देखा,
मखमल के बिस्तर से,
टूटी चारपाई कौन देखा,
नौकरी पेशा है न साहब,
बेटा करता भी तो क्या करता,
बेटों की घर से दूरी,
अपनों से जुदाई कौन देखा,
जो पहनते थे धुले हुए,
कपड़े मां के हाथों से,
जूतो को फेंक देते थे,
बिन छुए, लातों से,
और बिस्तर पर बैठ कर,
गरमागरम चाय मिल जाती थी,
रेंट के कमरे में तब,
मां तेरी बहुत याद आती थी,
सुबह उठकर खुद से,
खाना बनाने की जंग हो,
आटा गीला हो जाए,
तो लगे के मां तू संग हो,
और भारी से मन को अकेले,
एकाकी हो स्वयं ढांढस बंधाया,
रात में तकियों पर छिपकर,
बिन कराहे आंसू बहाया,
मर्द होने का भार सर पर,
पोंछ आंसू को मैं फिर से मुस्कुराया,
और क्या था चारा इसके बजाय,
क्या करें जब घर की याद आए,
जी चाहता है सर पर किसी का हाथ हो,
मेरी सिसकियों पर मुझको,
कोई हो जो थपथपाएं,
इतना घटित जब हो रहा,
तब भी स्वयं को मौन देखा
खुद की खुद से चल रही,
हाथापाई को कौन देखा
बेटी विदा हो गई मगर,
बेटो की विदाई कौन देखा,

©अनुज बेटी विदा हो गई मगर,
बेटो की विदाई कौन देखा,
मखमल के बिस्तर से,
टूटी चारपाई कौन देखा,
नौकरी पेशा है न साहब,
बेटा करता भी तो क्या करता,
बेटों

Bhaskar Anand

ये जो उदघोषित स्वप्न थे पन्नों पर एक एक कर के स्याह काली,शब्दों तक सीमित रह गई जो मायने थे समन्धित वाक्यों के वो अन्तर्विरोधों में ढह गए आज #Poetry

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ये जो उदघोषित स्वप्न थे पन्नों पर
एक एक कर के स्याह काली,शब्दों तक सीमित रह गई
जो मायने थे समन्धित वाक्यों के
वो अन्तर्विरोधों में ढह गए
आज
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