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Praveen Jain "पल्लव"

लोकतंत्र के तंत्र बिखरे जनता अब कराहती है

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पल्लव की डायरी
तन मन घायल जग में मानवता कराहती है
घुट घुट कर जीवन यापन होते
सत्ता की गतिविधियॉ शोषण  अपनाती है
लोकतंत्र के तंत्र विखरे
माफिया योजनाएं चट कर जाते है
उन्माद भर के सियासत
जनता को भरमाते है
सौ सौ कानून बनाकर लूट का इतिहास बनाते है
गुंडे मवाली दहशत फैलाते संरक्षण सरकारे देती है
धन बल के सब संसाधन कब्जा करके
जनता गरीबी में जीती है
शान्ती की स्थापना कौन करे
जब लाशो पर सरकार बनने की नींव पड़ती हो
                                        प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" लोकतंत्र के तंत्र बिखरे जनता अब कराहती है

Neel Lokesh Mishra (Insta-Neel3.Mishra)

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Praveen Jain "पल्लव"

#lalishq व्यथा में गूँथी गयी में,बन्धनों से कराहती हूँ #nojotohindi #कविता

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शिवानन्द

#अंधेरी_रात में मैंने... कराहती आहों को देखा। #ठंडक को खुद में लपेटते.. #ग़रीबी बाहों को देखा। #नमस्ते_इंडिया #yqbaba #yqdidi yqquote #yqquotes

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अंधेरी रात में मैंने...
कराहती आहों को देखा।

ठंडक को खुद में लपेटते..
गरीबी बाहों को देखा।  #अंधेरी_रात  में मैंने...
कराहती आहों को देखा।

#ठंडक को खुद में लपेटते..
#ग़रीबी बाहों को देखा।   
#नमस्ते_इंडिया 
#yqbaba #yqdidi #yqquote

Prem Nirala

कराहती रातें, बदलती करवटें जब बदन से बिस्तर हटाता हैं, तो तुम बिन प्रिये, ये रातें न जाने कितनी सुनी होती हैं! #prem_nirala_

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कराहती रातें, बदलती करवटें जब बदन से बिस्तर हटाता हैं,
तो तुम बिन प्रिये, ये रातें न जाने कितनी सुनी होती हैं!

prem_nirala_ कराहती रातें, बदलती करवटें जब बदन से बिस्तर हटाता हैं,
तो तुम बिन प्रिये, ये रातें न जाने कितनी सुनी होती हैं!

#prem_nirala_

Drg

दर्द से कराहती उनकी वो फ़ीकी सी मुस्कान, रंगहीन वो मायूस चेहरा, और कमज़ोर सी नज़र आती उनकी काया.. बोलो भी अब..फ़िक़्र कैसे न हो? #शोर #तक़लीफ़ ख़ा #yqbaba #yqdidi #ख़ामोश #अख़रना

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शोर है अंदर किसी
अपने की तक़लीफ़ों का,
उनके चेहरे पर ये ख़ामोश 
सी मुस्कान मुझे अख़रती है दर्द से कराहती उनकी वो फ़ीकी सी मुस्कान, रंगहीन वो मायूस चेहरा, और कमज़ोर सी नज़र आती उनकी काया.. बोलो भी अब..फ़िक़्र कैसे न हो?

#शोर #तक़लीफ़ #ख़ा

Poetry with Avdhesh Kanojia

है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती। मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम आरती। तेरे असीमित तेज सन्मुख, शत्रुसेना कराहती। तेरे सुतों का #RepublicDay #कविता

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है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती।
मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम आरती।
तेरे असीमित तेज सन्मुख, शत्रुसेना कराहती।
तेरे सुतों का शौर्य व बल, सृष्टि सारी सराहती।

✍️अवधेश कनौजिय

©Avdhesh Kanojia है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती।
मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम आरती।
तेरे असीमित तेज सन्मुख, शत्रुसेना कराहती।
तेरे सुतों का

Raahul Kant

सारा शहर मेरी खामियां जानता है, मेरे दर्द से कराहती हुई आह जानता है। किसी अपने की ही मेहरबानी रही होगी मुझपर, यूं ही नहीं आज हर ग़ैर मेरे राज़ #Pain #City #Secret #shahar #raaz #freebird #raahulkant #justmushayra

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सारा शहर मेरी खामियां जानता है,
मेरे दर्द से कराहती हुई आह जानता है।
किसी अपने की ही मेहरबानी रही होगी मुझपर,
यूं ही नहीं आज हर ग़ैर मेरे राज़ जानता है।।
- राहुल कांत

©Raahul Kant सारा शहर मेरी खामियां जानता है,
मेरे दर्द से कराहती हुई आह जानता है।
किसी अपने की ही मेहरबानी रही होगी मुझपर,
यूं ही नहीं आज हर ग़ैर मेरे राज़

Poetry with Avdhesh Kanojia

#गणतंत्रदिवस #RepublicDay #India #भारत #कविता poetry #poem है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती। मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम

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है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती।
मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम आरती।
तेरे असीमित तेज सन्मुख, शत्रुसेना कराहती।
तेरे सुतों का शौर्य व बल, सृष्टि सारी सराहती।
 #गणतंत्रदिवस #republicday #india #भारत #कविता #poetry #poem 
है नमन तुमको दंडवत माँ, है नमन माँ भारती।
मुख से करें गुणगान तेरा, अरु करें हम

AB

" जब कवि भावनाओं के प्रसव से गुज़रते हैं, तो कविताएं प्रस्फुटित होती हैं,!" - ' आचार्य रामचंद्र शुक्ल ' ( तो बस मैंने भी उन्हीं भावनाओं के प #alpanas

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किसी कवि के पहले मन में उपजती होंगी
अनेकों आकांक्षाएं फिर बुनती होंगी ताने - बाने

कभी उलझती होंगी अंतःकरण की दुविधाओं में 
तो कभी सुलझती विस्मय, सौंदर्य, श्रृंगार,
विभत्स, करुण क्रिया भावों में,

चुन - चुन ढाई आखर प्रेम के और पुष्प हज़ार
संवरती होंगी सजती होंगी किसी नववधू सी अंतर्मन में
मँडराती होंगी रंगीन तितलियाँ फिर सहर्ष ही
उन कविताओं के मन - उपवन में,

लिखी जाती होंगी फिर यह ऋचायें कोमल 
उन्मुक्त गगन में कल्पनाएं कल्पित होने हेतु केंद्र में 
प्रगढ़ता रखती ही होंगी वह निःसंदेह ही
और विपल्व करती होंगी मर्म में

कभी कैद रहती होंगी किताबों के पन्नों में,
कभी अच्छादित होती लहर बन कर अनोकों ह्रदय में

तो कभी स्वर बनती होंगी और निरंतर
बहती रहती होंगी ब्रह्माण्ड में आकाशगंगा में 
अंनत, अशेष, असंख्य संख्या बन !
- 'अल्प '✍️ " जब कवि भावनाओं के प्रसव से गुज़रते हैं, तो कविताएं प्रस्फुटित होती हैं,!"
- ' आचार्य रामचंद्र शुक्ल '

( तो बस मैंने भी उन्हीं भावनाओं के प
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