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sagir sagar
गंगा तेरे पानी मे मिलता जहर देख रहा हूं में हर रोज इस वतन में फेरबदल देख रहा हूं
pankaj balania
नरेश होशियारपुरी
मत सोच ज़्यादा ना रख फिक्र कोई दिल में। गर्दिशों का खेल मेरे दोस्त हमारे बस में नहीं... गर्दिश - कालचक्र , ज़माने का फेरबदल #meethiiiiiiislove ------------------------------------------- Hello Resties! ❤️ Collab on this #rz
Swati Tyagi
Shree
चले थे कारवां लिए, रास्ता नापा अकेले हमने रुक रुक विरह मेरे राम वनवास तोड़ आए ना हलाहल वो ज़माने का मन मसोस कर पीते रहे जिंदगी की खरीद फरोख्त हम बस लूटाते रहे दिन-रैन पहर का भेद भूल हां खुद को भी भूले ले जाओ कसक इस भीड़ की पीड़ से बचाओ वक्त रहते मौसमों के फेरबदल आदि बने जा रहे चेहरे पर चेहरा आंसू हंसी अब सूखते जा रहे हैं अकाल विरक्त सी दुल्हन सा कोमल ह्रदय संभालें चले कहां थे, जाने कहां हम चल कर आ गये हैं! चले थे कारवां लिए, रास्ता नापा अकेले हमने रुक रुक विरह मेरे राम वनवास तोड़ आए ना हलाहल वो ज़माने का मन मसोस कर पीते रहे जिंदगी की खरीद फरोख्
Madhav Jha
ख़याल है कि सवाल है? बता तेरा मिज़ाज क्या है जो कह चुके हों कि शाम तेरे घर की आकर ढलनी है उनसे रोष न कर तेरा यूँ ख़याल ही तो प्यार है न मैं पूरा हूँ न तू पूरा है जाने क्या फिर बार बार तेरे मन को हुआ है जो बातें प्यार में तू करता है उसे अपने पे भी ज़रा आज़मा नहीं है सवाल करने से पहले धैर्य बार बार यूँ खो देता है । बस फिर मेरे पास ख़ामोशी ही बच सा जाता है मेरे कहने पे छोड़ तू खुद अपने कहने पे नहीं आता है दुनियां की छोड़ ये तो लगाती है उल्फतें तुझे जाने क्यूँ बार-2 मुझसे यक़ीन उठ से चला जाता है । समझ भी चुका हूं समझा भी चुका, ज़रा ध्यान से पढ़, मेरा प्यार ही तेरी तरफ है बाकियों को बस मुझे भटकाने के लिए बस नाटक ही आता है लोग इसी बातों पे जले तो तेरा और मेरा क्या जाता है देख फिर तेरा धीरज यूँ रोज़ शाम के सूरज की तरह ढल की फिर रोज़ सुभहो तलक फिर चढ़ता जाता है तेरे सारे रोज़ के ये ताने तू फिर भी मुझे ही सुनाता है देख मुड़ के तू अपने साथ मुझे भी गिराता चला जाता है रहबर मेरे दिल है तू मेरा मन नहीं धमनियों में दौड़ता ये दो किस्में ख़ून यूँ उल्टा क्यों बहा जाता है सांस वही है और सोच भी एक ही है तू लिपट के फ़िर क्यों दूसरे से जलन खा के मन की ओर फिर बात बात पे चला जाता है कह दिया है जानिब तुझसे तू ज़माने के लिए क्यों और बातें बनाने में बदगुमां हम दोनों को क्यूँ बार बार किए जाता है मुझे इतना तो क़ाबिल बना... सुन ले जानिब मुहब्बत थी है और रहेगी मुहब्बत थी है और रहेगी ये हैडिंग्स के उल्टे फेरबदल बंद हों अबसे हवा सुनहानी ह
Vinod Umratkar
काव्यजागर आयोजित काव्य स्पर्धेत सहभागी केलेली ही कविता, आपण ही या स्पर्धेत सहभागी व्हावे या विनंती सह 🙏🙏 मी झालोय सहभागी या काव्य स्पर्धेत आपण ही सहभागी व्हावे ही विनंती 🙏🙏🙏 #मराठी #मराठीकविता #काव्यस्पर्धा #काव्यजागर #सहभागी काव्यजागर व आयुष्
Samar Shem
जरूर पड़े 👇👇👇👇👇👇👇 #Article_15_my (#रिव्यू) पूरी मूवी एक #सिस्टम को दिखाती है ... एक ऐसा सिस्टम जो बहुत पहले से चला आ रहा है और वह अभी भी उसी
sandy
हरवली ती दिवाळी सण.. सण आपल्यासोबत नेहमीच आनंद,उत्साह आणि नवीन उमेद घेऊन येत असतात.. रोजच्याच धकाधकीमुळे निरुत्साही झालेल्या जीवनाला नवचैतन