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SAHIL KUMAR
कभी-कभी एक गीत सुनाई देता है टूटे हुए साज़ का कभी लय में तो कभी बिन ताल का वो नगमे याद दिलाते हैं कुछ उजले, कुछ खामोश, कुछ परछाईयों के तो कुछ अधुरे से बिते पलों को, यूँ तो दिन बित जाया करते है उन्ही नगमो के सायों में के कहीं न कहीं दे जाती है सबक खुद जिंदगी के, दे जातें है कुछ नाऐ शब्द नऐ पल और कुछ नऐ सुर भरने को जीवन के आने वाले कल मे सिखाने कुछ नाऐ सबक से ©SAHIL KUMAR एक गीत
Pramod Pundhir
जाने कितने चित्र बनाएं रेतों की दीवारों पर । अक्षर अक्षर लिखे मिटाए रेतों की दीवारों पर।। शबनम से पैरों की पायल रातों से आंखों का काजल फूलों से छवि शोख़ अदा ली तारों से सतरंगी आंचल जुल्फों में बादल लहराए रेतों की दीवारों पर।। जैसे मेघ बरसता सावन जैसे भीगा सा चंदनवन जैसे खिलती धूप सुबह की जैसे रूप भरा हो दर्पण जैसे मधुबन रंग उड़ाए रेतों की दीवारों पर।। सांसे मधुरिम मलय वात सी अरन अध़र अरु कांति प्रात सी चंद्रमणि के तन पर लिपटी केशराशि ज्यों प्रबल रात सी पलकों पर सपने उतराए रेतों की दीवारों पर।। अक्षर अक्षर लिखे मिटाए रेतों की दीवारों पर,,,, प्रमोद प्यासा एक गीत
dilip khan anpadh
तबस्सुम-एक गीत *********** तुम जो आए तो देखो जरा हाल मेरा माथे बिंदिया सजाई तब्बसुम बिखेरा तेरे होने से है सारी खुशियाँ हमारी तुम जो,ना हो,तो लगता अंधेरा-अंधेरा। ये अधरों की लाली कंहा फिर है खिलती ना कजरों कि काली है आंखों से मिलती, खनक चूड़ियों की हो जाती है गुम-सुम कंही खो सी जाती है बिंदिया ये कुम-कुम ठहर सी क्यों जाती है पायल की रुन-झुन बहक सी जाती है आंहे ये गुम-सुम? नजर ढूंढती है वो छाया तुम्हारी धड़कन क्यों रुक सी है जाती हमारी ना जाना कभी की खुदा की कसम है तुम्ही से खुशी है तुम्ही से है ये गम ये सजना,संवरना ये हंसना,मचलना तुम्ही से है मेरा सुबह-शाम ढलना ना जाना कि सांसे बंधी है तुम्ही से जैसे मिलती है दरिया नदी को कंही से अब ना खो दूँ ये सांसे इसे तुम समझना बनके सावन तुम मुझपे यूं रिमझिम बरसना आ जाना वंही पे जंहा हम मिले थे था नीरव वो तट जंहा सिर्फ तुम्ही थे लगा के गले मुझको वादा निभाना डाल आंखों में आंखे तब्बसुम लुटाना मरते मरते सही फिर कंही तुझमे खो लूं गम के हर पल भूला के में सदियां को जी लूं। दिलीप कुमार खाँ""अनपढ़" #तब्बसुम एक गीत