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Fragrance

hmara #शायरी

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Ravil kumar

kashmir hmara tha hmara h .... #nojotovideo

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itz_zabiullah_khan

Hmara gaw #फ़िल्म

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Amrita

hmara bachapan #न्यूज़

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Bk Manoj

Hmara gao #समाज

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Bibha Rani

hmara hindusthan #कविता

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Kisi Ne Sajish to Jarur ki Hogi Varna Hindustan Tajmahal se shuru hokar Lal kile per khatm Nahin Hota

©Bibha Rani hmara hindusthan

Aniket rajput

hmara sath

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Dipika ...

hmara Sapna. #कहानी

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pat. 5 s.d.m.

व लड़का अनजाना सा  



व लड़का  एक दिन एक लड़की को 
follow किया social media पर  
फिर एक दिन मैसेज किया इंकॉक्स में 
पर लड़की का कोई  reply nनहीं आता था पर फिर भी 
व हर बार उस लड़की को मैसेज करता था ओर उस लड़की का हर पोस्ट कोन
लाइक करता था 
फिर एक दिन उस लड़की ने रिप्लाइ  दी 
पर व लड़की हमेशा रिप्लाई नहीं देती थी 
ओर उसे दोस्त बनाना पसंद नहीं था 
पर फिर भी उसने उसे दोस्त बोली  थी 
पर एक दिन उस  लड़की ने उसे ब्लॉक कर दी 
पता नहीं क्यों की ब्लॉक ये उस भी नहीं पता 
फिर ब्लॉक से हटा दी पर उस लड़के का मैसेज नहीं आता था

फिर एक दिन व लड़का मैसेज किया hi
उस ने भी रिप्लाइ दी  फिर दोनों में बात होने लगी 
पर उतनी बात नहीं होती थी 
व लड़का  का गुस्सा बहुत आता था 
फिर एक दिन उस लड़की ने पूछी आप क्या बना चाहते हो 
उस ने बताया मेरे सपना बड़ा है  फिर  उस लड़की ने फिर से पूछी बताए 
तो फिर बोला व लड़का  ,s.d.m k. यही मेरा सपना है  
हर बार व लड़का किस्मत खराब है बोलते ही रहता था
पर व लड़की हर बार समझती थी  ऐसा ना बोले 
ओर हर बार बुरा भला बोलता था खुद के बारे में व लड़का 
ओर अपने id me भी लिखा था  बुरा लड़का 
उस लड़की ने उस बोली आप id  में नाम  दूसरा लिखो मुझे पसंद नहीं उस लड़की ने बोली 
उस लड़का ने उसे समझा ओर दूसरा नाम लिखा  
हमारा सपना 
फिर एक दिन 

बाकी  ka   love 
pat 6 me.     Dipika ..... hmara Sapna.

B.L Parihar

#bachpan hmara

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*हम उस जमाने के बच्चे थे*

पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे... स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी, कक्षा के तनाव में भाटा पेन्सिल खाकर ही हमनें तनाव मिटाया था।

स्कूल में टाट-पट्टी की अनुपलब्धता में घर से खाद या बोरी का कट्टा बैठने के लिए बगल में दबा कर भी साथ ले जाते थे।

कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का कायदा पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी।
स्मॉल लेटर में बढ़िया एफ बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था।
करसीव राइटिंग भी कॉलेज मे जाकर ही सीख पाए।

उस जमाने के हम बच्चों की अपनी एक अलहदा दुनिया थी,
कपड़े के थेले में किताब और कापियां जमाने का विन्यास हमारा अधिकतम रचनात्मक कौशल था। 

तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते (नई काॅपी-किताबें मिलती) तब उन पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का स्थाई उत्सव था।

सफेद शर्ट और खाकी पेंट में जब हम माध्यमिक कक्षा पहूँचे तो पहली दफा खुद के कुछ बड़े होने का अहसास तो हुआ लेकिन पेंट पहन कर हम शर्मा रहे थे, मन कर रहा था कि वापस निकर पहन लें। 

पांच छ: किलोमीटर दूर साईकिल से रोज़ सुबह कतार बना कर चलना और साईकिल की रेस लगाना हमारे जीवन की अधिकतम प्रतिस्पर्धा थी।

हर तीसरे दिन पम्प को बड़ी युक्ति से दोनों टांगो के मध्य फंसाकर साईकिल में हवा भरते मगर फिर भी खुद की पेंट को हम काली होने से बचा न पाते थे।

स्कूल में पिटते, कान पकड़ कर मुर्गा बनते, मगर हमारा ईगो हमें कभी परेशान न करता.. हम उस जमाने के बच्चें शायद तब तक जानते नही थे कि *ईगो* होता क्या है?

क्लास की पिटाई का रंज अगले घंटे तक काफूर हो गया होता,और हम अपनी पूरी खिलदण्डता से हंसते पाए जाते।

रोज़ सुबह प्रार्थना के समय पीटी के दौरान एक हाथ फांसला लेना होता, मगर फिर भी धक्का मुक्की में अड़ते भिड़ते सावधान विश्राम करते रहते।

हम उस जमाने के बच्चे सपने देखने का सलीका नही सीख पाते, अपने माँ बाप को ये कभी नही बता पाते कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, क्योंकि "आई लव यू माॅम-डेडी" नहीं आता था. 

हम उस जमाने  से निकले बच्चे गिरते सम्भलते लड़ते-भिड़ते दुनिया का हिस्सा बने है। कुछ मंजिल पा गए हैं, कुछ यूं ही खो गए हैं। 

पढ़ाई, फिर नौकरी के सिलसिले में लाख शहर में रहे लेकिन जमीनी हकीकत जीवनपर्यन्त हमारा पीछा करती रहती रही है।

अपने कपड़ों को सिलवट से बचाए रखना और रिश्तों को अनौपचारिकता से बचाए रखना हमें आज भी नहीं आता है।

अपने अपने हिस्से का निर्वासन झेलते हम बुनते है कुछ आधे अधूरे से ख़्वाब और फिर जिद की हद तक उन्हें पूरा करने का जुटा लाते है आत्मविश्वास।

कितने भी बड़े क्यूँ ना हो जायें हम आज भी दोहरा चरित्र नही जी पाते हैं, जैसे बाहर दिखते हैं, वैसे ही अन्दर से होते हैं।

*"हम थोड़े अलग नहीं, पूरे अलग होते हैं. "*
*कह नहीं सकते हम बुरे थे या अच्छे थे,*
    *"क्योंकि हम उस जमाने के बच्चे थे."* #Bachpan hmara

pujali patle

hmara yarana#

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ye galiya ye chaubara yaha aaye ham phir dobara 
hme phir pass laya hmara yarana 
chl yad krte hai phir vo kise 
kuch tumse kuch kuch hamse hmara yarana#
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