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vishnu thore
जय आझाद हिंद सेना... एक एक जमवुनी सैनिक फौज केली उभी देशासाठी बलिदानाची दिली सलामी नभी.....धृ किती सहाव्या या मातीने जुलूमांच्या वेणा जय आझाद हिंद सेना, जय आझाद हिंद सेना...! तुम्ही नेताजी शौर्याची केली गाथा सुरू जवानास मंत्र दिला जिंकू किंवा मरू तळहातावर प्राण घेऊन पेटविले रणा.... जय आझाद हिंद सेना जय आझाद हिंद सेना......१ एक एक जमवुनी सैनिक फौज केली उभी देशासाठी बलिदानाची दिली सलामी नभी... पराक्रमाचे वाजू लागले चहूकडे चौघडे अभिमानाने उभे ठाकले दरी कपारी कडे असे नेताजी घडणे नाही या भूमीवर पुन्हा.... जय आझाद हिंद सेना, जय आझाद हिंद सेना...!....२ -विष्णू थोरे,चांदवड जय आझाद हिंद सेना... एक एक जमवुनी सैनिक फौज केली उभी देशासाठी बलिदानाची दिली सलामी नभी.....धृ किती सहाव्या या मातीने जुलूमांच्या वेणा जय आ
Kumarchitra
तू आपल्या आझादीची रांगोळी वेगवेगळे रंग भरून आणखीच देखणी करत गेलीस माझ्या वाट्याला मात्र ..आला लाल रंग तोच लाल रंग भरून मी मोकळा झालो आझाद झालो..!! ©️कुमारचित्र #लाल रंग #आझाद #revolution
Agarwal'sArtical
" आझाद रहना सबको पंसद आता हैं , पर ये सोचो कि हमारे ,अझाद रहने से किसी को कोई तकलीफ ना हों " ©Agarwal'sArtical #parindey #आझाद #Nojoto @Agarwal's Artical
SUREKHA THORAT
मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है! सही गलत को अब समझना नही है मुझे सुकुन और दुःख के परे जाना है राहत और मंजिल को यही छोड देना है अब नसीब और किस्मत को लाँघ देना है जीत और हार को मात देना है स्त्री और पुरुष कि मतभेद कि सीमाओ को पार कर देना है संस्कार और रहन सहन को अब समझाना है कि मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है समाज और न्याय के बीच मुझे नही फंसना है जीवन और संघर्ष को जरा थंब सा देना है अकेले हु या कोई साथ है इन सब से मुझे फर्क नही पडता अब एक ही चाहत है मेरी इस जमाने से मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है.. इंसान हु या पत्थर तिलतिल तडपते दर्दो को आराम देना है खुद मे राहत सी महसुस करना है क्या फर्क पडता है इंसान हुं या कोई और जीव निर्जीव इन सब से मुझे कहना है मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है नही जानती मे कौन हुं! बस इतना पता है कि बेवजह नही हुं में अब बस बोझ सा लगता है मुझे ए दुनिया भर कि सीमाए को अपनाना एक जान से सच मे पत्थर बन ग्ई है जिंदगी होले ही सही अब सुकुन मे कम दर्द मे ही लगती है जिंदगी दुनिया के कौन से कोने से टकराऊ मे मुझे मेरी आजादी को महसुस कर जीना है आजादी किसे कहते है ए जमाने को दिखाना है घुटन कि सांसो को बुंद कि तरह आजाद कर देना है मुझे खुद कि कमी को भी संवारना है लिपटना है उन लहरों से जहा मुझे सुकुन सा महसुस हो सके,, ए मै तु कि बहस मे नही पडना अब मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है..... मुझे आजाद कर दो इस मतभेद के पिंजरे से जो समाज और दुनिया ने सोचे समझे इंसानो पर लगाए है ©SUREKHA THORAT #मुझे बुंद कि तरह आझाद बनना है! #together
Ran parmar
हिंद न तेरा है नही तेरे बाप का खोल दरवाजा हमे भी जेल जाना हैं कवि तेज ©Ran parmar हिंद