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Saras Nandanwar
एक भाषा मे 'अ' लिखना चाहता हूँ,'अ' से अनार 'अ'से अमरुद लेकिन लिखने लगता हूं 'अ' से अत्याचार 'अ' से अनर्थ।कोशिश करता हूं कि 'क' से कलम या करुणा लिखू, लेकिन मैं लिखने लगता हूं, 'क' से क्रूरता 'क' से कूटिलता। अभी तक 'ख' से खरगोश लिखते आया हूं लेकिन 'ख' से अब किसी खतरे कि आहट आने लगी है। मै 'फ' से फूल लिखना चाहता हूं मगर कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है 'फ' से लिखो फरेब , और 'भ' से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है। 'द' दमन का और 'प' पतन का संकेत है। आततायी छीन लेते है हमारी पूरी वर्णमाला वे भाषा कि हिंसा को बना देते है समाज कि हिंसा 'ह' को हत्या के लिऐ सुरक्षित कर दिया गया है,हम कितना ही हल और हिरण लिखते रहे वे 'ह' से हत्या लिखते रहते है हर समय।। #आज कि वर्णमाला
Akanksha Srivastava
डर सबको लगता है पर #वर्णमालासेकविताएँ😍 "य" यारी निभाना जीवन भर तुम ओह्ह मेरे हम साथी "र" रहूं मैं जब जकड़ी ज्वर में तब -तब पास रहना मेरे ओह्ह हमसाथी, "ल" अब लव मैरिज क्या अरेंज मैरिज हूं तो तुम्हारी हमसाथी "व" वो सोच जो ना बदली तुमने अबतक कैसे निभाऊंगी मैं ओह्ह मेरे जीवनसाथी! ©Akanksha Srivastava वर्णमाला से मेरी कविताएं #AdhureVakya
Shikha Shukla
मेरे जीवन की पुस्तक पर हृदय की कलम द्वारा, प्रेम की स्याही से... एक-एक अक्षर पिरो कर, लिखती हूँ वर्णमाला की तरह तुझे। तुम्हें अंको में ढालना... तुम्हें स्वयं संग जोड़ना, और स्वयं को तुममें घटाना... और फ़िर पुनः तुम्हें पढ़ना... बस इतनी सी ही गणित आती है मुझे। ~शिखा$ #जीवन #की #वर्णमाला💞💞 #HindiDiwas2020
REETA LAKRA
जेब में है नहीं एक भी धेला, चले थे मियां मिट्ठू घूमने को मेला। अपने गुच्छे से जो टूट जाता एक केला, कहने लगता जमाना उसे अकेला केला।। जीवन है चार ही दिनों का खेला, मरणोपरांत नहीं देखा किसी ने कोई रेला। देखो तो ये है मेरा छैल छबीला, पर सचमुच न जानूँ रहता कौन कबीला।। आला, अउ रहला, अउ गेला, पूछो तो कोन गुरु कोन चेला।। क्यों झेला, क्या ठेला, कैसा ढेला.,., इंतजार कर रहे आएगी कब वह वेला खुशबू फैलाएगी जब खिलकर यह बेला।। वर्णमाला के अक्षरों में एला लगाया। कुछ समय लगाया और ये बना डाला।
rupali yadav
रहती हूँ मैं मौन सी पर वर्णमाला का ज्ञान भी है भले कहूं न कुछ जिह्वा से शब्दों की पहचान भी है मैं शांत रस सी दिखती हूँ पर मन में कोलाहल भी है रहती हूँ मैं मौन सी पर वर्णमाला का ज्ञान भी है आशय और भावों से सबके अब वाकिफ मैं हो चुकी हूँ भूतकाल में सोकर ही तो वर्तमान में जाग सकी हूँ क्रोध का नाममात्र भी मुझमें विस्तार नहीं पर ये कहना उचित नहीं कि मेरे भीतर क्रोध का अंगार नहीं.. रहती हूँ मैं मौन सी पर वर्णमाला का ज्ञान भी है भले कहूं न कुछ जिह्वा से शब्दों की पहचान भी है रहती हूँ मौन सी.. पर वर्णमाला का ज्ञान भी है. #ख़ामोशी #मैं #जज़्बात #क्रोध #hindipoetry #yqdidi
Tj_diaries
" पुराने दोस्त, भाषा की उस वर्णमाला की तरह हैं, जिसके साथ आप आज भी खुशियों की किताब पढ़ सकतें हैं। " ©TjSidhu2310 " पुराने दोस्त, भाषा की उस वर्णमाला की तरह हैं, जिसके साथ आप आज भी खुशियों की किताब पढ़ सकतें हैं। " #Tjdiaries #NAPOWRIMO