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heartless veer
जीनके जलवे चांद भी देखें, जिनके तलवे तारे चूमे हूरें सवारें जुल्फें मोअत्तर सल्लाहो अलैहे वस्सल्म ©AR tanveer जुल्फें मोअत्तर
Anu Mittal
आख़िरिश हमको घर से निकलना पड़ा वक्त बदला तो हमको बदलना पड़ा जिस गली में न जाने की खाई कसम उस गली से भी आख़िर गुज़रना पड़ा हमकदम न मिला हमसफर न मिला भीड़ में हमको तन्हा ही चलना पड़ा चलते चलते जहां पे कदम रुक गये हादसों को भी रस्ता बदलना पड़ा आदतन शमा महफ़िल में रौशन हुई फितरतन परवानों को जलना पड़ा अनु "इंदु " अनु मित्तल ' इंदु '
Mehfil-e-Mohabbat
लोग मिलते हैं,भूल जाते हैं धूल उठती है बैठ जाती है ©राहुल रौशन अश्वनी मित्तल भैया♥️
Mehfil-e-Mohabbat
ज़िंदगी को कुछ इस तरह से जियो जब मरो तो कहो मज़ा आ गया ©राहुल रौशन अश्वनि मित्तल भैया ♥️
श्रवण कुमार पंडित "शाश्वत "
तासीर मेरी उल्फ़त की, भुला न सकोगी, उजड़े चमन में फूल, खिला न सकोगी। हिज्र में भी फलती रहेगी उल्फ़त हमारी - हाल-ए -दिल किसी को, बता न सकोगी। #Love #BreakUp #urdu #मुत्तक़
Anu Mittal
रात को रोक लिया, दिन को भी ढलने न दिया आतिशे इश्क़ ने कभी दिल को संभलने न दिया अपने दुश्मन तो हमीं ख़ुद हैँ,गिला किससे करें हम तो रुसवा भी हुये जाम छलकने न दिया हमने धड़कन को भी सीने में छुपा कर रखा हद के अंदर भी अरमां को मचलने न दिया जी में आया कि नईं दुनियां बसा लें लेकिन हसरते दीद ने वादों से मुकरने न दिया आतिशे इश्क़ ने झुलसा के रख दिया हमको राख होने न दिया, हमको सुलगने न दिया किसी मुफलिस की पूंजी की तरह रखा है खत जलाये थे मगर यादों को जलने न दिया अनु 'इंदु' हसरतें अनु मित्तल ' इंदु '
Anu Mittal
तक्सीर वक्त की है , कि मेरा कुसूर है कोई नहीँ है दरम्याँ, वो फ़िर भी दूर है कोई तो उम्र भर चले और कोई दो क़दम और कोई मंजिलों की हद से कोसों दूर है जो बेईरादा मिल गयी उनसे कभी नज़र यह दिल अब तलक उसी नशे में चूर है कुछ तो महक रहा है फिजाओं में चार सू इस शहर से वो हो न हो , गुज़रा ज़रूर है किरदार दफन हैं कई इन दास्तानों में इन किस्सों में कुछ अपना भी हिस्सा ज़रूर है चाहत पे जोर चलता है क्या ,किसी का "इंदु " जिस दिल को ख्वार होना हो ,होता ज़रूर है अनु "इंदु " हसरतें ......यादें अनु मित्तल ' इंदु '
Anu Mittal
नज़दीक भी लाकर देख लिया और दूर भी जाकर देख लिया , बेताबी-ए-दिल कुछ कम न हुई ,हमनेआज़मा कर देख लिया । अंजामे मुहब्बत से यह दिल ,वाकिफ़ था बखूबी, फ़िर भी मगर इस दिल ने कब समझा कुछ भी,हमने समझा कर देख लिया । हम शर्मो हया के मारे थे,इज़हारे तमन्ना क्या करते वो जान के भी अंजान रहे,हमने तो जता कर देख लिया । कब कब भूले थे उनको हम , कब याद किया , यह याद नहीं वो और भी हमको याद आये,हमने तो भुला कर देख लिया । मंजिल तो सामने थी अपने,हम हाथ बढ़ा कर छू न सके हर उल्टे सीधे रस्ते को हमने अपना कर देख लिया । अनु "इंदु " हसरतें ....यादें अनु मित्तल इंदु
Anu Mittal
अज़ब है रंगे दुनियां , अज़ीब सिलसिला है उतनी ही जुल्मियत है , जितने यहां खुदा है दुनियां सिमट रही है सब दायरों में अपने जितने क़रीब हैं हम , उतना ही फासला है इंसानियत तो बंद है , किस्से कहानियों में इंसान के ज़ेहन में शैतान पल रहा है गुलशन भी रो रहा है गुलों के हश्र पे अब ख़ुद बागबां ही अपनी कलियाँ मसल रहा है कैसे दिखेगा रस्ता , कैसे मिलेगी मंजिल जिधर भी देखो हरसू , गुबार उड़ रहा है अनु 'इंदु' हसरतें ....यादें अनु मित्तल ' इंदु '