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Er.Shivampandit
सुनो, तुम जानते हो ना मेरा मन भटकता रहता है हाँ अभी मेरे मन में एक गहरा विचार समाया है अगर चला जाऊँ तुमसे पहले तो एक काम तुम मेरा करना मेरी अस्थियों का विसर्जन गंगा में मत करना मेरा पिंड दान भी मत करवाना बस उन अस्थियों को थोड़ा संभालना और अपने आस पास कहीं एक छोटा सा पौधा लगा देना और उसकी खाद में मिला देना उन अस्थियों को खयाल रखना उस पौधे का बस इसी तरह जाने के बाद भी हमेशा रहूँगा तुम्हारे एक दम करीब खुशबू बनके... सुनो, तुम जानते हो ना मेरा मन भटकता रहता है हाँ अभी मेरे मन में एक गहरा विचार समाया है अगर चला जाऊँ तुमसे पहले तो एक काम तुम मेरा करना मेरी
Vikas Sharma Shivaaya'
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं । प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं । जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ-जब अहम समाप्त हुआ तभी ईश्वर का साक्षात्कार हुआ ! प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता–प्रेम की संकरी–पतली गली में एक ही समा सकता है–अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' अहम् का विसर्जन
Jeetal Shah
🙏🏻आज👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 विसर्जन कीजिये गुस्से का , विसर्जन कीजिये द्वेष का , विसर्जन कीजिये लोभ का , विसर्जन कीजिये मोह का , विसर्जन कीजिये आलस का , विसर्जन कीजिये चिंता का , विसर्जन कीजिये निराशा का , विसर्जन कीजिये किसी भी परिणाम की अत्यन्त जल्दी का , विसर्जन कीजिये नकारात्मक विचारों का , विसर्जन कीजिये बुरी आदतों का , सभी विघ्न दूर होंगे...... . 🚩🙏 ©Jeetal Shah #DiyaSalaai 🙏🏻आज👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 विसर्जन कीजिये गुस्से का , विसर्जन कीजिये द्वेष का , विसर्जन कीजिये लोभ का , विसर्जन कीजिये मोह का , वि
Parasram Arora
सच्चाइयों का अस्थि विसर्जन हो चुका और झूठ देवता बन कर इबादतगाहों की शोभा बड़ा रहा धर्म हवधारी प्रेत बन कर इस जगत को भयभीत कर रहा वासनाओं की मृगतृषणाओं मे डूबा ये जगत महा तृप्ति का सागर ढूंढ रहा जबकि सच्चिदानंद का जीवन से लोप हो रहा और ये बेबस जगत अपनी प्यास को भरमाने की असफल कोशिश कर रहा ©Parasram Arora #सच्चाइयों का अस्थि विसर्जन....
Parasram Arora
सच्चाइयो का अस्थि विसर्जन हो चुका और झूठ देवता बन कर इबादतगाहों की शोभा बड़ा रहा धर्म हवाधारी प्रेत बन कर भयभीत कर रहा वासनाओ की मृगतृष्णाओ मे डूबा ये जगत महातृप्ति का सागर ढूंड रहा जबकि सचिदानंद का लोप हो चुका और जगत अपनी प्यास को भरमाने की चेष्टा कर रहा r सचाईयो का अस्थि विसर्जन
Vibhu sharma
तेरे इश्क़ में खुद को इस तरह समर्पित करना चाहता हूँ। मैं तेरी सारी यादों को गंगा में विसर्जित करना चाहता हूं।। ©Vibhu sharma विसर्जन