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sirohibholu

आती है जैसे याद किसी दिल-शिकन की शक़्ल, आता है याद हादिसा-ए-रूह-ओ-दिल का वक़्त!!

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आती है जैसे याद किसी दिल-शिकन की शक़्ल,
आता है याद हादिसा-ए-रूह-ओ-दिल का वक़्त!!
@sirohibholu आती है जैसे याद किसी दिल-शिकन की शक़्ल,
आता है याद हादिसा-ए-रूह-ओ-दिल का वक़्त!!

sirohibholu

कहीं कुछ भी नही टूटा हुआ है, हमारे साथ ऐसा हादिसा है !! तुम्हारा क्या तुम्हें लाखों मिलेंगे, हमारा एक ही तो राब्ता है !!

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कहीं कुछ भी नही टूटा हुआ है,
हमारे साथ ऐसा हादिसा है !!

तुम्हारा क्या तुम्हें लाखों मिलेंगे,
हमारा एक ही तो राब्ता है !!
@sirohibholu कहीं कुछ भी नही टूटा हुआ है,
हमारे साथ ऐसा हादिसा है !!

तुम्हारा क्या तुम्हें लाखों मिलेंगे,
हमारा एक ही तो राब्ता है !!

Saheb

आँख जब बरसे तो क्या पूछना मौसम कैसा ज़ख़्म तक़दीर में लिखा है तो मरहम कैसा हादिसा गुज़रा था वो एक ही लम्हे के लिए ज़िंदगी फिर ये बता र

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आँख जब बरसे तो क्या पूछना मौसम कैसा 

ज़ख़्म तक़दीर में लिखा है तो मरहम कैसा 

हादिसा गुज़रा था वो एक ही लम्हे के लिए 

ज़िंदगी फिर ये बता रोज़ का मातम कैसा 

अब न दीवार से शिकवा है न साए की तलब 

धूप जब मेरा मुक़द्दर है तो फिर ग़म कैसा 

आसमाँ रात अगर रोया नहीं है तो बता 

बर्ग-ए-गुल ( फूल की पंखुड़ियों) पर है भला क़तरा-ए-शबनम ( ओस की बूंदें) कैसा आँख जब बरसे तो क्या पूछना मौसम कैसा 

ज़ख़्म तक़दीर में लिखा है तो मरहम कैसा 

हादिसा गुज़रा था वो एक ही लम्हे के लिए 

ज़िंदगी फिर ये बता र

FIROZ KHAN ALFAAZ

तेरी आँखों से भी रूठ जाएँ तेरी नींदें, रात-दर-रात ये हादिसा हो जाए ! - 1 तेरी यादों में हमको ख़बर न हुई, रात कब ढल गई, कब सुबह हो गई ! -2 क

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तेरी आँखों से भी रूठ जाएँ तेरी नींदें,
रात-दर-रात ये हादिसा हो जाए ! - 1

तेरी यादों में हमको ख़बर न हुई,
रात कब ढल गई, कब सुबह हो गई ! -2

काग़ज़ की कश्तियों सी हसरत न पालिए,
काग़ज़ की कश्तियों के होते नहीं साहिल ! -3

इंसाँ की ख़्वाहिशों की मत पूछ इंतिहा तू,
दुनिया के बाद इसको जन्नत भी चाहिए ! -4
 
किस-किस से बैर लें, किस-किस से हम लड़ें,
यूँ बे-नक़ाब हो के निकला न कीजिये ! -5

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर ,प्रोपर औरंगाबाद बिहार तेरी आँखों से भी रूठ जाएँ तेरी नींदें,
रात-दर-रात ये हादिसा हो जाए ! - 1

तेरी यादों में हमको ख़बर न हुई,
रात कब ढल गई, कब सुबह हो गई ! -2

क

FIROZ KHAN ALFAAZ

उतरे हैं बारी-बारी हर चेहरे से मुखौटे, बुरे वक़्त में हटाती है नक़ाब ज़िन्दगी ! -1 ज़ुल्फ़ को अपने रुख़ से हटा लीजिये ! तमन्नाई के दिल की दुआ लीज

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उतरे हैं बारी-बारी हर चेहरे से मुखौटे,
बुरे वक़्त में हटाती है नक़ाब ज़िन्दगी ! -1

ज़ुल्फ़ को अपने रुख़ से हटा लीजिये !
तमन्नाई के दिल की दुआ लीजिये, -2

यारों ने जो दिया मुझे वो बे-ग़रज़ दिया,
यारी में जो सुकून है वो प्यार में नहीं ! -3

चाह रखोगे जो, वो मिलेगा तुम्हें,
जो ना सोचा किसीने वो चाह कीजिये ! -4

ज़िन्दा रहूँगा मैं सदा अशआ'र में अपने,
हो जाऊँ मैं दफ़्न चाहे मैं धुआँ हो जाऊँ ! -5

ज़िन्दगी में जीतने का राज़ तू ये जान ले,
हार है गर मान ले, जीत है गर ठान ले ! -6

तेरी आँखों से भी रूठ जाएँ तेरी नींदें,
रात-दर-रात ये हादिसा हो जाए ! -7


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर ,प्रोपर औरंगाबाद ,बिहार
स0स0-9231/2017 उतरे हैं बारी-बारी हर चेहरे से मुखौटे,
बुरे वक़्त में हटाती है नक़ाब ज़िन्दगी ! -1

ज़ुल्फ़ को अपने रुख़ से हटा लीजिये !
तमन्नाई के दिल की दुआ लीज

FIROZ KHAN ALFAAZ

ग़म न कर जो कोई इल्ज़ाम मैं तुझको दे दूँ, ऐ बेवफ़ा ग़ज़ल, मैं तेरा क़ाफ़िया ढूँढता हूँ ! -1 तो क्या हुआ जो ये जहाँ नाराज़ हो गया, मैं ख़ुद से राज़ी ह

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ग़म न कर जो कोई इल्ज़ाम मैं तुझको दे दूँ,
ऐ बेवफ़ा ग़ज़ल, मैं तेरा क़ाफ़िया ढूँढता हूँ ! -1

तो क्या हुआ जो ये जहाँ नाराज़ हो गया,
मैं ख़ुद से राज़ी हुआ तो 'अल्फ़ाज़' हो गया ! -2

ज़िन्दगी जिसके बिना बद-दुआ सी लगती है,
जाते-जाते वो जीने की दुआ दे गया मुझे ! -3

बेशक मैं तेरी सोच का हिस्सा हूँ आज भी,
अफ़सोस कि तेरे जिस्म का साया मैं नहीं हूँ ! -4

ख़ुदारा 'अल्फ़ाज़' को तू इतना मुकम्मल कर दे,
कि मेरे किरदार पे बाक़ी कोई नक़ाब न रहे ! -5

ये ग़ज़ल-ए-अल्फ़ाज़ नज़ीर इस बात की है,
कि हादिसा मेरे दिल पे गुज़रा क्या है ! -6

हसरत-ए-दिल-ए-नाकाम बदल नहीं सकती,
महज़ इरादों की रद्द-ओ-बदल होती है ! -7

पानी में अक्स देखते हैं, लहरों को ख़ता देते हैं,
ग़ैरों की ग़ल्तियों की अपनों को सज़ा देते हैं ! -8

मज़ा इसमें भी है कि उनको जलाया जाए,
कि जिनसे रूठने में भी मज़ा, जिनको मनाने में भी ! -9



©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार
स0स0-9231/2017 ग़म न कर जो कोई इल्ज़ाम मैं तुझको दे दूँ,
ऐ बेवफ़ा ग़ज़ल, मैं तेरा क़ाफ़िया ढूँढता हूँ ! -1

तो क्या हुआ जो ये जहाँ नाराज़ हो गया,
मैं ख़ुद से राज़ी ह
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