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ADIL Zafar
मैं अक्सर कांपते हुए जाता था उसकी बाहों में मुझे डर था मोहब्बत में मेरी दाग न लग जाए कोई By Adil Zafar ©ADIL Zafar मैं आऊंगी
B.L Parihar
चाहे प्रेम में रख, चाहे रख मुझे वार में, चाहे सृजन में रख, चाहे रख मुझे संहार में,, चाहे मिलन में रख, चाहे रख मुझे वियोग में,,, चाहे खुशी में रख, चाहे रख मुझे तू सोग में,,,, चाहे बंदगी में रख, चाहे रख मुझे बन्दिशों में,,,,, मै तो हूं तेरे मन की दबी सी चाह सी कहीं से भी उग आऊंगा,,,,,,,, हां, कहीं से भी उग आऊंगा मैं, तेरे थके मन को छांव देने प्रेम की तेरे रुके कदमों को राह देने नए सफर की तेरी मायूस आंखो में सपने देने नए जीवन के... हां, तेरे लिए मै कभी भी कहीं से भी उग आऊंगा।।।।। ©B.L Parihar #आऊंगा
Gurudeen Verma
शीर्षक - आऊं कैसे अब वहाँ ----------------------------------------------------------- आऊं कैसे अब वहाँ, मैं यार तुमसे मिलने को। मना जब कर दिया हो तुमने, तुमसे मिलने को।। आऊं कैसे अब वहाँ -------------------------।। मेरी गलती क्या थी, कहा था सच ही मैंने। बोला था तुमने ही, आने को तुमसे मिलने।। रोक दिया हो जब तुमने, तेरी चौखट पर चढ़ने को। आऊं कैसे अब वहाँ --------------------------।। प्यार कभी नहीं मुझे दिया, बदनाम मुझे हमेशा किया। समझा नहीं मेरे दुःखों को, जुल्म मुझपे हमेशा किया।। चाहते नहीं हो जब तुम, कोई बात मुझसे करने हो। आऊं कैसे अब वहाँ -----------------------------।। फिर भी करता हूँ मैं दुहा, यही तुम्हारे लिए। हमेशा खुश आबाद रहो, लम्बी उम्र तुम जिये।। मैं नहीं हूँ जब काबिल, तुमको खुश रखने को। आऊं कैसे अब वहाँ ------------------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार - गुरुदीन वर्मा उर्फ जी. आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #आऊं कैसे अब वहाँ
Rajendra Kumar Ratnesh
खेतों की पगडंडियों पर, लड़खड़ाकर चलने । बंधु मैं लौट कर आऊँगा फिर। भेड़, बकरियां, गाय-भैंसों की, धूल उड़ाते झुण्ड को देखने, नदी किनारे बगुले की , मछली पकड़ते झुण्ड को देखने। बंधु मैं लौट कर आऊँगा फिर। भूला नहीं वो पुरानी खेलें-गिल्ली-डंडा, आंख- मिचौली उपले की बंदूकें, कालिख पोते, डरावनी डकैतों वाली मुखड़ा। बंधु मैं लेकर यादें लौटकर आऊँगा फिर। दादी, माँ के हाथों की वो स्वादिष्ट व्यंजन खाने, पापा की जेब से, मां की साड़ियों के पल्लू में बंधे, सिक्के चुराने।। बंधु मैं ये सब दोहराने लौटकर आऊँगा फिर। चैन की सांसें लेने, वृक्षों की छांव में सोने, वो सुहावनी मौसम में, हर फसलों की सौंधी लेने। बंधु मैं लौट कर आऊँगा!! - राजेन्द्र कुमार मंडल सुपौल (बिहार) ratneshwriter@gmail.com ©Rajendra Kumar Ratnesh #लौटकर आऊंगा
Alok Verma "" Rajvansh "Rasik" ""
ख्वाब जो देखे तेरे संग उन्हें कैसे झुठलाऊं, तू ही बता ओ जाने जाना पास तेरे कैसे आऊं, दिल का मेल जो हुआ था, वो कोई खेल नहीं था, सारी बातें कैसे बताऊं, ख्वाब जो देखे तेरे संग उन्हें कैसे झुठलाऊं, तू ही बता ओ जाने जाना पास तेरे कैसे आऊं......! पास तेरे कैसे आऊं.............!