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Abhishek Rajhans
आंदोलनों का देश है भारत ऐसे नहीं ये सोने वाला तुम बंद कमरों में बैठ कर भाग्य विधाता बनने की कोशिश मत करो ये देश न राम के नाम पर लड़ेगा ना रहीम के नाम पर बंटेगा मोमबत्तियां जलाने वाले हाथ मशाल भी उठाते है और इस देश मे नारे ,लाठियों के नाम से नहीं दबते हैं हर युवा में अब भी भगत सिंह और आजाद ज़िंदा है ये देश तुम्हारा नहीं जो किसी को बेघर करो कोशिश कर रहे हों ,कर लो आग लगा रहे हो ,लगा लो पर याद रखो एक चिंगारी काफी है तुम्हारी हस्ती मिटाने के लिए तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाने के लिए–अभिषेक राजहंस आंदोलनों का देश है भारत #Nojoto #NojotoHindi
MANJEET SINGH THAKRAL
जन आंदोलनों की बुलंद आवाज़, Narmada Bachao Andolan की नेत्री Medha Patkar जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।। ©MANJEET SINGH THAKRAL जन आंदोलनों की बुलंद आवाज़, Narmada Bachao Andolan की नेत्री Medha Patkar जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
MANJEET SINGH THAKRAL
Vicky Anand (Captain)
दिहाड़ी मज़दूर दिवस की छुट्टी नहीं मनाते, वो जानते हैं मालिक और निकम्मी सरकार, से मिली एक दिन की झूठी सम्मान से बहुत बड़ी है, एक दिन की बच्चों की भूख। मैंने नहीं देखा किसी दिहाड़ी मज़दूर को मज़दूर दिवस की छुट्टी मनाते, अपितु दिहाड़ी कमाने वाले कोसतें हैं, की आज फ़ैक्टरी बंद रहेगी, पर वो लोग नासम
Parul Sharma
भीड़ भीड़ जब किसी विन्यास में व्यवस्थित हो जाती हैं तो एक श्रृंखला बन जाती है। श्रृंखला आकृति की श्रृंखला शब्दों की श्रृंखला रिश्तों की श्रृंखला आंदोलनों की जो दिशात्मक है, सृजनात्मक है। पर इसके लिए एकीकृत होना होगा किसी निमित्त के निबद्ध होना होगा इसका मतलब ये नहीं कि तुम परतंत्र हो गये या फिर भीड़ में खो गये। भीड़ में खो जाने से भयभीत न हो! क्यूँ कि रह किसी का अपना- अपना व्यक्तित्व है अस्तित्व है । इसलिए हरेक खुद में पृथक है और सशक्त है । तो भीड़ का हिस्सा बनो, खुद व्यवस्थित हो इसे व्यवस्थित करो। पारुल शर्मा #भीड़ जब किसी #विन्यास में व्यवस्थित हो जाती हैं तो एक #श्रृंखला बन जाती है। श्रृंखला #आकृति की श्रृंखला #शब्दों की श्रृंखला रिश्तों की
MANJEET SINGH THAKRAL
आज के मृदुभाषी समाचार पत्र में पढ़िए Drsunilam Sunilam का आलेख - * Prashant Bhushan जैसे वकील का होना देश के लिए गर्व का विषय* *देश मे लोकतंत्र बहाली के संघर्ष को तेज करने की जरूरत* प्रशांतभूषण को दोषी करार देकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पोल खोल दी है। प्रशांत जी ने समझौता करने माफी मांगने की बजाए जेल जाने का विकल्प चुना।हमारे लिए यह गर्व का विषय है।उनसे यही उम्मीद थी। देश में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने वाले ऐसे बहुत कम वकील है, जो जन आंदोलनों के लिए सदा उपलब्ध रहते हैं। जिनके भीतर हर अन्याय, अत्याचार और भेदभाव के खिलाफ बोलने की हिम्मत हो । एक ऐसा वकील जो लगातार न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर दशकों से मुहिम चला रहा हो । जो देश के लगभग सभी प्रमुख जन आंदोलनों के मुद्दों पर आंदोलनों का साथ क्षेत्र में जा कर देता हो। ऐसा वकील जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल के आंदोलन का नेतृत्व किया हो। देश में ऐसा एक ही व्यक्ति है जिसका नाम प्रशांत भूषण है। यह पहला अवसर नहीं है, जब प्रशांत भूषण जी को प्रताड़ित किया गया किया जा रहा है। कई बार उन पर हमला किया जा चुका है। सभी तथ्य मौजूद होने के बावजूद कभी किसी हमलावर को आज तक अदालत में सजा नहीं सुनाई गई है। इसके बावजूद भी वे व्यवस्था से मुकाबला करने के लिए कमर कसे हुए हैं। अभी तक सरकार की किसी सर्वोच्च न्यायालय के बड़े वकील पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं हुई है। हाईकोर्ट के कई वकीलों को सालों से सरकार जेल में बंद किए हुए हैं। हो सकता है सरकार यह देखना चाहती है कि सरकार प्रतिक्रिया देखने के लिए इस तरह की कार्यवाही कर रही हो। सरकार की इस चुनौती को देश के सभी सजग नागरिकों द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए तथा इस स्थिति को बदलने की यह रणनीति शीघ्रतातिशीघ्र बनाई जानी चाहिए। लोकतंत्र भारत में अंतिम सांसे गिनता दिखलाई पड़ता है । इसलिए इस मुद्दे को किसी व्यक्ति पर हमले के तौर पर नहीं भारत की न्याय व्यवस्था एवं संविधान पर हमले के तौर पर देखा जाना चाहिए मोदी सरकार ने कोरोना काल का दुरुपयोग करते हुए लोकतंत्र को किस हद तक सीमित कर दिया है ,यह उसका एक नमूना है। परंतु दुनिया ने बड़े बड़े तानाशाहों को देखा है ।आज़ाद भारत ने आपात काल भी भोगा है। अंततः लोकतंत्र और जनता की जीत हुई है। अब तक मोदी सरकार ने तमाम नागरिकों को जेल भिजवाया । छुट पुट विरोध से अधिक कुछ नहीं हुआ । लेकिन प्रशांत भूषण जितने दिन जेल में रहेंगे देश मे लोकतंत्रवादीयों का विरोध जारी रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय की गलतफहमी है कि इस कार्यवाही प्रशान्त भूषण या उनके समर्थक डर जाएंगे। अवमानना की कार्यवाही की ही वकीलों और सरकार के विरोधियों को भयभीत करने के उद्देश्य से की गई है। परन्तु इतिहास बतलाता है न दमन ज्यादा दिन चलता है और न ही तानाशाही स्थायी होती है। जेल से तो प्रशांत जी निकलेंगे ही और इतनी ताकत लेकर निकलेंगे जिससे मोदी सरकार की तानाशाही पर पूर्ण विराम लगेगा और आने वाले समय मे सर्वोच्च न्यायालय को संवेधानिक जिम्मेदारीयो के निष्पक्षता पूर्वक निर्वहन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। आज के मृदुभाषी समाचार पत्र में पढ़िए Drsunilam Sunilam का आलेख - * Prashant Bhushan जैसे वकील का होना देश के लिए गर्व का विषय* *देश मे लोक