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somnath gawade
पांढरा गुलाब तीला खूप आवडतो; मित्रत्व भावना सहज मांडतो. #पांढरा गुलाब
Satish Deshmukh
ढग पांढरा......... ! एक पांढरा ढग म्हणाला वाटोळीतला, "पुरोगाम्यांचा समुद्र झाला मुंबईतला! त्या पाण्याचे बाष्पही नको जरा आम्हाला घास घेतला, काटा रुतला सुरमईतला! मातोश्रीच्या नभात नाही 'राम' राहीला ,हिंदूत्वाचा चहाच घेऊ गुहाटितला!" जेष्ठामधले ढग पांढरे असेच फसवे पैशासाठी सुर हरवला बासरीतला! कवी -सतीश दिलीपराव देशमुख शेंबाळपिंप्री,ता.पुसद जि.यवतमाळ. ©Satish Deshmukh ढग पांढरा #faraway
Arun Nagar Writer
ऐ सनम ये हवाएँ तुमसे मिलकर आती होंगी यूँ ही नहीं मुझपर ये इतने ज़ुल्म ढाती होंगी थर-थर काँपे मेरी साँसें तेरी यादों में क्यूँ शायद ये साँसों का कलेजा काट जाती होंगी ©Arun Nagar Writer थर थर काँपे मेरी साँसें...! follow कीजिए 👍👍🙏 #Shayari #शायरी #गजल #ghazal #rekhta #rekhtashayari #twolineshayari #SAD
संजय दास
#Kabir_Is_God सतगुरु के दरबार में मेरी थर थर कापे देह ना जाने किस बात पर मेरा टूट न जाए नेह
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... कैसे दे नववर्ष बधाई , जाकर उनको आज । काज सभी के बन्द पड़े है , कैसे छेड़े साज ।। रोटी तो अब मिलती मुश्किल , कब तक खाए भात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... शीत लहर से काँप रहे हैं , जीव-जन्तु इंसान । दसों दिशाओं धुन्ध पड़ी है , छुपे सूर्य भगवान ।। खाली पेट मरोड़ उठी है , सुकुड़ी सबकी आँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... जो मेरा अब तक हुआ नही , कैसे हो स्वीकार । बस कहकर तुमने थोप दिया , यह सबका त्यौहार ।। लेकिन इसमें दिखी न हमको , खुशियों की सौगात । थर-थर कापे होंठ सभी के ... हम तो अपनी पीर छुपाए , बैठे थे सरकार । ऊपर से नववर्ष तुम्हारा , बन बैठा त्यौहार ।। किसको जाकर आज दिखाए , किसने मारी लात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । ०१/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के ....
Sukhwinder Singh Ahluwalia
Shailesh Hindlekar
शुभ प्रभात 💐 आज उंच उंच हंड्या बांधल्या जातील, थर लावले जातील, कुणाचा हात पोहोचेल कुणाचा नाही.. आपण तरी वेगळं काय करतो रोज..रोज थर लावतो, रो
ROHAN KUMAR SINGH
🔱# *बाघ* # की # *खाल* # आसन में धारे, गले में # *सर्प* # का # *हार सांचे* # थर थर कांपे # *ब्रहमांड* # सारा जब कालो का काल # *कैलाश* # पे ना
ROHAN KUMAR SINGH
🔱# *बाघ* # की # *खाल* # आसन में धारे, गले में # *सर्प* # का # *हार सांचे* # थर थर कांपे # *ब्रहमांड* # सारा जब कालो का काल # *कैलाश* # पे ना