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Dr Upama Singh

बचपन
ग़ज़ल

क्या वो हसीन ज़माना था 
बचपन अपना कितना प्यारा था
हर एक बच्चे का अपना ख़ास अंदाज़ रहता था
हर एक मौसम हमारे लिए सुहाना होता था
ना रोने की वजह थी ना हँसने का कोई बहना था
बेवजह ही हर किसी से अपना बात मनवाना था
क्यूँ हम हो गए इतने बड़े इससे अच्छा तो हमारा बचपना था
अब कहां इंतज़ार रहता इतवार का हमें उसके इंतज़ार में बड़ा होना था
स्कूल जल्दी जाना घर पर देर से लौट कर आना 
दोस्तों संग हुडदंग करना याद आते ही आँखों में  खुशी के आज़ भी आंँसू आना
कभी दोस्तों संग काँचा तो कभी कबड्डी 
कभी लंगड़ी टांग तो कभी टूटे हमारी हड्डी
खेल कूद दोस्तों संग बीतता था अपना बचपन
खिला रहता था सारा दिन अपना मन
अब तो हमारी दुनिया गई है मोबाइल के बटन पर सिमट
फेसबुक वाट्सअप से अपनी दूर की दोस्ती निभाते
और अपनों और ख़ास दोस्तों के लिए आज़ हम वक्त नहीं पाते
वक्त भी खुदगर्ज़ निकला हमारा बचपन छीन जवानी दे गया
हर उम्र में पढ़ाई जिम्मेदारी की तबाही मिली
एक बचपन ही था जो हमें सही सलामत मिली

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DR. SANJU TRIPATHI

तेरी तलब (ग़ज़ल)

बेस्वाद सी जिंदगी को मेरी जब से तेरे प्यार का स्वाद लग गया,
पल में सारे समां के साथ साथ जिंदगी का जायका बदल गया।

जीने लगे तेरे ही ख्वाबों खयालों में रात और दिन शाम-ओ-पहर,
तेरे तसव्वुर के सिवा जिंदगी में कोई भी ख्वाब बाकी ना रह गया।

तेरी तलब ऐसी लगी है कि मेरी सारी की सारी दुनियाँ बदल गई,
हर पल हर घड़ी खुदा से दुआओं में तुझे ही मांगने दिल लग गया।

कट रही थी मेरी जिंदगी तन्हाइयों में तूने शहनाइयों से सजा दी,
चाहने लगे दिल-ओ-जान से ज्यादा जाने तू कैसा जादू कर गया।

तेरे बिना जिंदगी जीने की "एक सोच" कभी सोच भी नहीं सकती,
तेरा नाम दिल के साथ-साथ हाथों की लकीरों पर भी लिख गया। #KKPC27
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DR. SANJU TRIPATHI

बचपन की यादों में (गज़ल)

बचपन की यादों में खोकर, मेरा मन आज भी बच्चे जैसा ही बन जाता है। 
याद करता है वह शैतानियां, वह नादानियां फिर उसी में खोकर रह जाता है।

बारिश में भीग कर नहाना, वह मां-पापा की डांट खाना बड़ा याद आता है।
दादी-नानी से किस्से-कहानियां सुनना, वो करना अठखेलियां अब भी भाता है।

खेलने-कूदने के लिए, पढ़ाई से जी चुराना, वो बहाने बनाकर घूमना याद आता है।
स्कूल ना जाने को पेट दर्द का बहाना बनाना,और फिर समोसे खाना याद आता है।

क्लास से बाहर बैठने के लिए होमवर्क ना करके ले जाना बैठ कर गप्पे लड़ाना,
दोस्तों की टोली संग मौज-मस्ती करना समय बिताना, सताता है गुजरा जमाना।

भेदभाव रीति-रिवाजों से अलग,"एक सोच" को अपने में  ही खोये रहना सुहाता था।
चेहरे पर मासूमियत थी, दिल में ना कोई बैर था, बस केवल दोस्ती निभाना आता था।

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Nitesh Prajapati

चरित्र (प्रीमियम कविता)

तुम्हारा व्यक्तित्व ही है तुम्हारा चरित्र,
तुम्हारी वाणी ही है तुम्हारी पूंजी,
तुम्हारा व्यवहार ही है तुम्हारा सच्चा गहना,
तुम्हारी धीरज ही है तुम्हारी सफलता।

तुम्हारा दूसरे इंसान के प्रति, 
व्यवहार दिखाता है तुम्हारा असली व्यक्तित्व,
और तुम्हारी नम्रता ही दर्शाती है,
तुम्हारे असली संस्कार।

रखना हमेंशा हसता चेहरा, 
रखना हमेंशा सरल स्वभाव, 
ता कि कोई इंसान तुझे अपना दर्द, 
बयां करने में हिचकिचा ना पाए। 

जुबान तो सभी के पास होती है,
किसी की तीखी तो किसी की मीठी,
लेकिन उसका सही इस्तमाल ही,
जगह बनाती है तेरी दूसरों के दिल में।

-Nitesh Prajapati  रचना क्रमांक :-

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Vedantika

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हाथ में चिराग़ लिए अपना बचपन ढूँढता हूँ मैं।
आज भी पुराने दरख़्त में अपनापन ढूँढता हूँ मैं।

काग़ज़ की नाव पर ख़्वाब मासूम से रखे हैं मैंने,
अपने खिलौनो के लिए इधर उधर घूमता हूँ मैं।

वो साइकिल की घंटी से मोहल्ले को जगा देना,
चटपटी गोलियों के स्वाद में आज झूमता हूँ मैं।

नानी की लोरियाँ और दादी की कहानियाँ कई,
लेकर कल्पना के रंग हज़ार ख़्वाब बुनता हूँ मैं।

बचपन भी बचपन नहीं लगता है आजकल मुझे,
तभी तो अपने लिए ज़िम्मेदारियों को चुनता हूँ मैं। #कोराकाग़ज़ 
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Nitesh Prajapati

बचपन (ग़ज़ल)

आया था एक हसीन पड़ाव बचपन का,
बहुत जिया उसे हमने, पर वक़्त के साथ वह बचपन खो गया। 

ना जिम्मेदारी का बोझ, ना भविष्य की कोई चिंता, 
जब रहती थी हमारी पुतलियाँ भी सफेद,लेकिन आज वह आँखे कहीं खो गई। 

रहते थे तब हम अपनी मस्ती में ही, स्कूल जाना    
खेलना लड़ना और झगड़ना, लेकिन आज वह दोस्त कहीं खो गए। 

बचपन में भी जहांँ हमारी स्कूल थी,आज भी वही है,         
लेकिन आज मेरे बचपन की परी कहीं खो गई।

रखी है आज भी मैंने संभाल के बचपन की वह चीजें, 
वो चीज़े नहीं यादें है मेरी पर बढ़ती उम्र के साथ वो वक़्त कहीं खो गया। 

बारिश तब भी आती थी, आज भी आती है, 
लेकिन आज बारिश के साथ मेरे बचपन के काग़ज की कश्ती कहीं खो गई। 

-Nitesh Prajapati 





 रचना क्रमांक :-2

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चर्चा चरित्र की बड़ी जोरो पर है…
नियमों का उल्लंघन कही हुआ है…
अनायास और अकस्मात ही सब…

किसी का चरित्र मर्यादा तोड़ गया…
स्वतंत्रता के नाम पर उड़ा धुँआ है…
छिन्न भिन्न चरित्र हो गया है अब…

राम सी चरित्र की इच्छा रखते है…
रावण ने किंतु सबके मन को छुआ है...
अवतार धरती पर क्यो उतरे तब…

ये चरित्र भी बहुत ही चंचल हो गया…
नहीं रह गया ये जहर से अनछुआ है…
मनुष्य मन परिवर्तन चाहता है कब… #kkpc27 
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Vedantika

Picture: Google कोराकाग़ज़ collabwithकोराकाग़ज़ विशेषप्रतियोगिता kkप्रीमियम kkpc27 कोराकाग़ज़प्रीमियम

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“देखिए, सुबोध जी, हम आपकी छोटी बेटी के लिए रिश्ता लेकर आए हैं।” एक पिता का निर्णय था।

“जी, आभार सूर्यकांत जी लेकिन विवाह तो बड़ी बेटी का तय किया था आपने? क्या लेन-देन में कोई कमी रह गई?” एक पिता की चिंता उनके शब्दों में झलक रही थी।

विवाह के ठीक पहले इस तरह की शर्त सुनते ही मंडप में हड़कंप मच गया। बड़ी बहन की खुशियों को छीनने के लिए उसे कोसा जाने लगा लेकिन वो अपने लिए लड़ते हुए भी परिवार को इस स्थिति से निकालने की कोशिश कर रही थी। 

विवाह की सारी शर्ते पूरी हो गई। अब वो सूर्यकांत जी की बहू और अपनी बड़ी बहन की देवरानी बन गई थीं। Picture: Google

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NEERAJ SIINGH

#cinemagraph #neerajwrites प्रीमियम 😀

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जबसे प्रीमियम हुआ हैं
तबसे इतनी उआह पोह
हो गई हैं मन में और आप
मजेदार तरीके से नए नए
Options को explore 
करने में लगे हुए हैं ये सबसे
मजेदार सबकी बदमाशियां
अब दिख रही हैं और कौन
कौन क्या क्या करता हैं 
ये भी दिख रहा हैं पर ये
भी बहुत हंसने वाली बात है
और खूब हंसिये...— % &  #cinemagraph #neerajwrites प्रीमियम 😀

id default

वो बचपन पुराना,
वो मिरी बचपन की यादें वो आशियाँ पुराना 
काश फिर मिल जाएं मुझे, 

वो दर-ओ-दीवारे वो रिश्ते पुराने काश फिर 
मिल जाएं मुझे, 

वो रौनक ए ज़माना वो अपने ख़्वाबों में रहना 
काश वो नासमझी फिर मिल जाएं मुझे, 

वो सड़के पुरानी वो बगीचा पुराना वो बीता हर 
लम्हा वो खेल-पुराने काश फिर मिल जाएं मुझे, 

भूला कर भी न भूला पाएं वो जज़्बा पुराना वो
मरहम पुराना काश फिर मिल जाएं मुझे, 


वो बुलंद अल्फ़ाज़ों का शोर पुराना वो हर दर्द-
ए-सैलाब को हँसी में उड़ाना वो बेफिक्ररी काश 
फिर मिल जाएं मुझे, 


 दूसरी रचना ग़ज़ल 
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वो बचपन पुराना
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