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Yudi Shah
क्यु तु मुझ को सताती है हरपल मुझ को रुलाती है ढले साम, उठु या सुभा तेरी याद आती है... ✍️Yudi Shah क्यु तु मुझ को सताती है हरपल मुझ को रुलाती है ढले साम, उठु या सुभा तेरी याद आती है... ✍️Yudi Shah #lyrics #MoonHiding
Rabindra Kumar Ram
*** कविता *** *** हुस्ने ज़माल *** " ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , किस करवट उठु किस करवट सोता हूं , किसकी आरज़ू है जो उसके बगैर तन्हा होता हूं , मेरे निन्दो का हिस्सा कर लें तू जरा , तेरे बगैर ना सोता हूं ना जगते हैं , लिये खामोशी किसकी बाते करते हैं , ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , ठहर जाऊं कहीं ये किसकी बातें करने चले हैं , तरकस में ये निशान हैं किसकी की , फिर से मैं किसकी पहचान ढुंढ ने चले हैं , मिल जरा कि मिलना हो जाये , मुहब्बत के कुछ तो निशान मिले , फिर जाने मैं कब कहां कैसे फिर किसका हो जाऊं ." --- रबिन्द्र राम *** कविता *** *** हुस्ने ज़माल *** " ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , किस करवट उठु किस करवट सोता हूं
Rabindra Kumar Ram
*** कविता *** *** हुस्ने ज़माल *** " ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , किस करवट उठु किस करवट सोता हूं , किसकी आरज़ू है जो उसके बगैर तन्हा होता हूं , मेरे निन्दो का हिस्सा कर लें तू जरा , तेरे बगैर ना सोता हूं ना जगते हैं , लिये खामोशी किसकी बाते करते हैं , ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , ठहर जाऊं कहीं ये किसकी बातें करने चले हैं , तरकस में ये निशान हैं किसकी की , फिर से मैं किसकी पहचान ढुंढ ने चले हैं , मिल जरा कि मिलना हो जाये , मुहब्बत के कुछ तो निशान मिले , फिर जाने मैं कब कहां कैसे फिर किसका हो जाऊं ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** कविता *** *** हुस्ने ज़माल *** " ये तुम हो ना तेरा महज ख्याल हैं , जो भी हैं बस उसकी हुस्ने ज़माल है , किस करवट उठु किस करवट सोता हूं
Varsha ✍️
वो तुम्हारा क्रिसमस पर मिलना हर साल सेंटा कुछ प्यार ,कुछ तोहफा में लिपटी खुशियां ले कर आना हर साल की तरह इस बार जब आना सेंटा ना देना प्यार ,,ना कोई मंहगा तोहफा देना ⬇️⬇️⬇️⬇️ #Love#loveatfirstsight#december#day23 वो तुम्हारा क्रिसमस पे मिलना हर साल सेंटा कुछ प्यार ,,कुछ तोहफों में लिपटी खुशियां ले कर आना हर साल
Sapna Sharma
Abhishek Mishra
ज़रा सा ऊँचा उठु तो आसमान को सर लगता है, साथ नही होते पापा, तो उजाले से भी डर लगता है। मेरी कामयाबी को कोई मेहनत कहे या किस्मत, मुझे तो ये सब आपकी दुआओं का असर लगता है। सीच कर आपने प्यार से, इस पौधे को बड़ा कर दिया, अपनी एड़ियां घिस कर मुझे पैरों पर खड़ा कर दिया। जो कह ना पाया होठो से आज हर बात लिख रहा हूँ घोलकर शब्दों में, मैं अपने जज़्बात लिख रहा हूँ। (पूरी कविता कैप्शन में) ज़रा सा ऊँचा उठु तो आसमान को सर लगता है, पापा साथ नही होते, तो उजाले से भी डर लगता है। मेरी कामयाबी को कोई मेहनत कहे या किस्मत, मुझे तो ये आ
Annu Goyal
#poetry Title: "हो गइ परायी अपने ही घर मे मैं" क्यूं बन दी यह रीत ऐसी ऐ मेरी खुदा, जो हो गयी परायी अपनों ही घर मे मैं... क्यूं बन दी यह
Dilip Jain
sandy
#स्पेस... खरंतर आज नकोच वाटत होत बाहेर पडायला.असली मंद हवा आणि त्यात खराब असलेला मुड,अजुनच नैराश्य येत होतं.ह्याच म्हणणं होत की भरल्या घरात