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kesaravinash

पीढ़ियां

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कुछ वर्षों पूर्व
तुम चली गई
तो सूना पड़ गया संसार।
गया था कल 
तेरे द्वार!
उग आए हैं कब्र पर तेरे
कुछ भटकते बीजों के भविष्य,
कुछ झार- झंखार!
पूछा मेरे बेटे ने -
कहां हैं दादी?
यहां तो झार है, झंखार हैं,
सब जगह खार ही खार है।
मैंने कहा - 
बेटे,
असुंदर से ही सुन्दर जन्म लेता है।
ये जो पेड़ हैं 
तेरी दादी हैं,
हम डार हैं,
तुम पात हो,
तेरे बच्चे फूल होंगे,
और उनके बच्चे फल!
और
ऐसे ही चलता रहेगा यह संसार।
ये झार, 
ये झंखार, 
ये पेड़,
ये डार!
सब,
हां, सब! 
हमारे ही तो हैं परिवार!! पीढ़ियां

ANIL KUMAR

प्रेम की सीढ़ियाँ #Thoughts

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Manmohan Dheer

पीढियां

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जिगर पूरी ताक़त से इक़ इक़ सच कुबूल करता है
तज़ुर्बे ही ज़िन्दगी के ये इक़ इक़ सीढियां बनाते हैं
असूल असर में आने लगते हैं आधी उम्र के बाद से
इंसा कुछ ऐसे ही मुस्तक़बिल नई पीढियां बनाते हैं
.

 पीढियां

Babli BhatiBaisla

सीढ़ियां #शायरी

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Sushil Gupta

सफलता की सीढ़ियां

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 सफलता की सीढ़ियां

Anuradha T Gautam 6280

पीढ़ियां..✍️अनु ॲजुरि #DelhiElections2020 #शायरी

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Motivation and Facts

बिहार के इस बंदे ने क्यों काट डाला पहाड़ 😲और बनाया 1500 सीढ़ियाँ #viral #Popular #ज़िन्दगी

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Radhe Bhaiya

सीढ़िया उन्हें मुबारक........ #जानकारी

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ADARSH SAHU

पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रहीं

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मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 
है जिससे स्वयं उस नींव को अब खंडहर कर रहीं है।

वर्तमान में खोकर जिसने कल को बनाया।
रहे चाहे जैसे पर हमें सब कुछ दिलाय।
वृक्ष के लिए जैसे है बीज गलता।
आज के नेत्र में स्वप्न कल का है पलता॥
 उसी नेत्र को अब वह फोड़ रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही है?

 नीव बनकर जिसने महल को संभाला।
बनाया उसे दुःस्वप्न की जिसने था पाला॥
जीवन की हर एक  पूंजी थी जिसने लगाई।
 रह गए अकेले अब वही दादा- माई॥
लताएं जड़ों का असर भूल रही हैं।
पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रही हैं? 

हुए जब बड़े हम स्वप्न को सहेज।
मिली दौलत-शोहरत नाम को न गुरेजे॥
मंदिर सम गृह को हम त्याग आए।
मां-बाप थे जो घर में हुए हैं पराए॥
अब घर की अंधेरी उन्हें डस रही है।
पीढियां आज की क्या कहर कर रहीं हैं? 

मां-बाप  अकेले ही अब रह रहे हैं।
बच्चे बुजुर्गों के सानिध्य से बच रहे हैं॥
 आज ने कल को है कल से दूर रखा।
कलियों ने फूल को वृक्ष से मरहूम रखा॥
जहां स्नेह था अब सिस्कियाँ बस रही है।
पिड़ियां आज की क्या कहर कर रही है? 

ओ वर्तमान खुद को क्यों भूलते हो।
अपने मूल से तुम निर्मूल क्यों हो ?
सुनो इतिहास यह है हमको बताता।
अपने जड़ के बीना न कोई अस्तित्व पाता।
 आओ हम पुरातन गौरव लौटाए।
 ताकि भविष्य की कोपलें मुसकुरायें॥
देखो!  कोपलें अब ये मुर्झा रही हैं।
पीढियां आज की क्या कहर कर रही हैं ? पीढ़ियां आज की क्या कहर कर रहीं

The_Untouched_Sky

जिंदगी... जितनी सीढ़ियां, उतनी परिभाषाएं। #Poetry

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जिंदगी... जितनी सीढ़ियां, उतनी परिभाषाएं।
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