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Sachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल जब जबाव ही न मिले तो सवाल क्या करे? हर छोटी-छोटी बातों पर बवाल क्या करें? मजा तो बहुत आता है खतरों से खेलने में, मगर हिम्मत ही नहीं तो मजाल क्या करें? सरसरी निगाह में ही हालात हो जाते है बेकाबू, उसकी ओर ध्यान देकर खुदको बेहाल क्या करे? आइना तो यूं लटका है अरसों से दीवारों पर, तुम्हे ही कुछ नहीं दिखता मायाजाल क्या करे? यहां गिलास-ए-जाम दिखते ही लग जाती है तलब, जिसका मन ही काबू में नहीं वो कमाल क्या करे? राही तो चलता रहा अपने गाफिलाना अंदाज़ में, आरज़ू-ए-रफ्तार लिए लड़खड़ाती चाल क्या करें? ग़ज़ल #सरसरी_निगाह #आइना #मायाजाल #गिलास_ए_जाम #राही #गाफिलाना #आरज़ू_ए_रफ्तार #लड़खड़ाती_चाल
MANVENDRA SINGH
#लस्सी_का_गिलास( हमारा इन्दरगढ ) एक दुकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त- आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि, लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए हमारे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई। उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन में न जाने क्या आया कि मैंने जेब में सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया: दादी लस्सी पियोगी? मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 20 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी। दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे, वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैने उनसे पूछा, ये किस लिए? इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना वेटा। भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था। रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी। एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा। उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई। अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका। डर था कि कहीं कोई टोक ना दे। कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये। लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था, मुझे काट रही थी। लस्सी गिलासो में भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना गिलास पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था। इससे किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी। हां, मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा, लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा: ऊपर बैठ जाइए वेटा ! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं, किन्तु इंसान तो कभी-कभार ही आता है । दुकानदार के आग्रह करने पर मैं और बूढ़ी दादी दोनों कुर्सी पर बैठ गए हालांकि दादी थोड़ी घबराई हुई थी मगर मेरे मन में एक असीम संतोष था। तुलसी इस संसार में, सबसे मिलिए धाय। ना जाने किस वेश में, नारायण मिल जाय।। ©manvendra singh लस्सी का गिलास.. #Saffron
manoj kumar jha"Manu"
चाय के लिए कोई निमंत्रण नहीं, बस पात्र चाहिए। आपको चाय पिलायें हम, आप दिसम्बर में चले आइए।। पात्र= कुल्हड़,गिलास, कप चायप्रेमी