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DR. LAVKESH GANDHI
पेंशन पेंशन आने वाली है अब खूब सजेगी थाली चार दिनों के बाद फिर आएगी अँधियाली यही तो है बुढ़ापे में पेंशन की कहानी #पेंशन # #पेंशन -की -टेंशन # #yqlifelessons #yqjivan #
SHOONYA
आ बैठ मारे कने, थारी पुराणी पेंशण बांधू। केवण हाला केवेला, जादूगर कीकर करियो जादू।। आ बैठ मारे कने, थारी पुराणी पेंशण बांधू। जो कोई ना कर सकियो वो कर ने दिखा दूं,।। आ बैठ मारे कने, थारी पुराणी पेंशण बांधू। NPS/OPS रो झगड़ों आज बंद करा दूं। आ बैठ मारे कने, थारी पुराणी पेंशण बांधू।। कोई ओ थे पुराणी पेंशण हाला हो? इन बाता रो आज अंत करवा दूं, आ बैठ मारे कने,थारे भी पुराणी पेंशण बंधा दूं।। © SHOONYA #पुरानी पेंशन योजना #अशोक गहलोत
Dr Satish Maurya
साथ मे बच्चे नन्हें नन्हें पैर ,सहा न जाय काली रोड की तपिश,और दूरी का जहर ऊपर से प्यास और भूख का कहर, मोटर न सवारी मीडिया ले रहे फ़ोटो बारी बारी मजदूर और उनके बच्चों की मजबूरी ले रहे पत्रकार फ़ोटो बारी बारी, मजबूर मजदूर
Pradeep Kumar Mishra
जिन्दगी कोई magic 🪄✨ नहीं है, यहाँ तो मेहनत करना होगा सहब..!! ©Pradeep Kumar Mishra #मजदूर #मजबूर
Satish Kaushal
बहुत कुछ कहके हम फसना नही चाहते, दो वक्त की रोटी मिल रही है वही बहुत है.. सच बोलकर इन रोटियों के लिए तरसना नही चाहते.. समय और हालात एक सा नहीं रहता, आज है तो कल भी आएगा जो चमक रहा है दिन के उजालों की तरह, वक्त का पहिया घूमेगा और वो भी ढल ही जायेगा.. इतना कुछ कहके भी क्या होने वाला है तेरे हिस्से में जितनी मुस्कुराहट है मुस्कुराले क्यों की तू तो ऐसे ही रोने वाला है... तू मजदूर है मजबूर रहेगा, तुझे इंसान कौन समझता यहां तेरे दर्द तेरे है यहां तेरे दर्द को कौन सहेगा.. मत सुना अपने दर्द जमाने को लोग तेरा मजाक बनाएंगे तू रोएगा और ये मुस्कुराएंगे ©Satish Kaushal मजदूर मजबूर
कौशिक
हां मजदूर हूं मैं पर उस से कहीं ज्यादा मजबूर हूं मैं दिन भर मेहनत कर पसीना बहाता हूं तब कहीं जाकर मुठ्ठी भर कमाता हूं मजदूर हूं अपना घर परिवार छोड़के आता हूं शौक नहीं मजबूर हूं इसलिए शहर शहर ठोकरें खाता हूं सोचता था एक धागा हूं जिसमे शहरों के मोती पिरोता हूं सोचता था मै वो कड़ी हूं जो भारत को भारत होने देता हूं ये मोटर,ये गाड़ी आलीशान बंगले साहब सब बने मेरे ही पसीने से हैं वो संसद जिसमे होती है साजिशे मेरे ही खिलाफ वो भी इन्हीं हाथो के नगीने हैं लोग देखते है कारीगरी तो तारीफ करते हैं जब मेरे लिए कुछ करने की बारी होती है तब बस टीवी के आगे बातें करते हैं बहुत तो कहते हैं ये मजदूर है टिकता नहीं है एक जगह देश में महमारी फैलाने की यही है बस एक वजह मुझे तो कोई शौक नहीं दर दर भटकने का रोटी कपड़ा मिलता यहीं पर तो साहब क्यों करता मीलों का पैदल सफर क्या देखते नहीं या दिखता ही नहीं हुक्मरानों को देश का सिपाही देश में ही मोहताज है दाने दाने को (देश में मजदूर होना अभिशाप है मजदूर होने की सज़ा पूरा परिवार भुगतता है) मजबूर मजदूर