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Rishu singh
पक्के मकान कच्चे रास्ते जिंदगी बड़ी ही ऊबड़ खाबड़ सी है ©Rishu singh #khoj पक्के मकान कच्चे रास्ते जिंदगी बड़ी ही ऊबड़ खाबड़ सी है
Ankur tiwari
कुछ उड़ान अभी बाकी है छूना आसमान अभी बाकी हैं जंग जीत लूंगा मैं भी दुनियां के सभी बस खुद से जीतना मुकाम अभी बाकी हैं सब्र का बांध अभी ठहरा हुआ हैं मेरा शायद आने को कई तूफान अभी बाकी है गर रोशनाई खत्म हो गई तो खून से लिख दूंगा पर्वत सा ऊंचा होना मेरा नाम अभी बाकी हैं रास्ते ऊबड़ खाबड़ पथरीले सब पार कर लूंगा मिलना मुझे अभी कुछ आराम बाकी हैं सब पड़े हुए हैं खींचने को कदम पीछे मेरे आगे बढ़ने को मेरा स्वाभिमान अभी बाकी हैं अंजान पत्थर हूं इतना भी आसान नही तोड़ पाना मुझे सफलता का बनना हसीं मकान अभी बाकी हैं कुछ उड़ान अभी बाकी हैं छूना आसमान अभी बाकी है ©Ankur tiwari #seashore कुछ उड़ान अभी बाकी है छूना आसमान अभी बाकी हैं जंग जीत लूंगा मैं भी दुनियां के सभी बस खुद से जीतना मुकाम अभी बाकी हैं सब्र का ब
DrLal Thadani
हाथ पकड़ कर तुझे चलना सिखाया ऊबड़ खाबड़ रास्तों से तुझे बचाया ऊंची नीची टेढ़ी मेढी़ राह आए भी तो याद करना पापा को जो कभी नहीं घबराया #अल्फ़ाज़_दिलसे ♥️ पिता v/s पुत्र ♥️ #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ अपने मित्रों के साथ कोलाब करें। ♥️ कोलाब करने के बाद
Abhishek 'रैबारि' Gairola
ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फ़िज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। बाहर की फजा-ए-माहौल का इल्म नहीं है केद में मुझे कती तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद-ए-दिये जला रखे हैं। लंबा है रास्ता-ए-सेहरा मगर मंजिल-ए-नख़लिस्तान साफ़ है मृगतृष्णा बोल बोल कर सीधी राहों पर भी मोड़ बिठा रखे हैं। दिल दबा है, दिमाग रला है, रूह विकृत और दरदरी हो गई है। क्या जाने बेचारी ने कितने युगों से करोड़ों जन्म भिड़ा रखे हैं। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फ़िज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं
Abhishek 'रैबारि' Gairola
ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं। लंबा है रास्ता-ए-सेहरा मगर मंजिल-ए-नख़लिस्तान साफ़ है। मृगतृष्णा बोल- बोल कर सीधी राहों पर भी मोड़ बिठा रखे हैं। दिल दबा है, दिमाग रला है, रूह विकृत और दरदरी हो गई हैं क्या जाने बेचारी ने कितने युगों से करोड़ों जन्म भिड़ा रखे हैं। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उ
Rishi Tiwari Samajsevi
अगर आगे बढ़ना चाहते हैं तो उबड़-खाबड़ राहों में भी चलना होगा । ©Rishi Tiwari Samajsevi राह उबड़-खाबड़ #Travel
सुसि ग़ाफ़िल
प्रेम के रास्ते सुगम नहीं होते ..... उबड़ खाबड़ होते हैं , खुरदुरे होते हैं | प्रेम के रास्ते सुगम नहीं होते उबड़ खाबड़ होते हैं खुरदुरे होते हैं
SURAJ आफताबी
जब आकांक्षी मन की आकांक्षाओं को टटोला जब पैबंद उधेड़ कुछ वेदनाओं का मुख खोला जब हृदय की ख़लिश से मलहम की पिछौरी उघड़ने लगी जब धड़कनों के कम्पन्नों से सुरीली-दर्दीली आह जुड़ने लगी तब मन के आँसुओं ने जाना इस खार का बहना कितना ज़रूरी है स्वाद चख खट्टे-खट्टे दर्दों का आंखों ने जाना आंसुओं का रहना कितना ज़रूरी है ! वो बंद पलकों में होश भरा मयखाना वो गजलों - नज्मों से भरी इबादत वो इक सूरत मुकम्मिल इबादतखाना जब विचार बिन कलम गूढ़ पैग़ाम लिखने लगे थे जब महार्घ आफताबी बड़े सस्ते में बिकने लगे थे तब जाना स्वयं का स्वयं से पूर्ण संवाद उस अपूर्ण ख्वाब से कितना ज़रूरी था बीहड़ी आँखों ने खारे मोती चख जाना ये तृप्त स्वाद कितना जरूरी था! याद करने हेतु शुक्रिया आप सभी का 🙏🙏 खलिश- चुभन पिछौरी- ओढ़ने की चादर महार्घ- महंगा बीहड़ी - उबड़-खाबड़ #yqdidi #yqhindi
Anjali Singhal