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PRATIK MATKAR
एक निराशा हाती आली अंधार सोहळे देऊन गेली बीजे मातीमध्ये रुजण्याआधी स्वप्न कोवळे घेऊन गेली एक निराशा मग मनात रुजली स्वप्न वेलीवर हळूच चढली भार मनीचे वाढू लागले सगळेच अनुभव कडू लागले चव आयुष्याची निघून गेली भयाण शांतता वाट्याला आली भाग 1
Raone
इन काली अंधेरी रात में याद जब हम आपको आयेंगे अमावस की उस भयानक रात में आप चाह कर भी हमसे मिल नहीं पाओगे साँय-साँय करती उस रात में ख़ुद की साँसों को भी महसूस नहीं कर पाओगे मेरे बन्द पड़े अल्फ़ाज़ों को खामोशी का नाम ख़ुद दे जाओगे याद करो जब रो-रोकर मैं, अपनी तड़प आपसे कहता था उस वक्त बहरे आप बन जाते थे, पर पीड़ा मेरा गहरा था अब इस धरती पर मेरा जिस्म नहीं, दफ़न कब्र में सोया हूँ अब कब्र पे आकर क्या रोना, जिन्दा रहते तेरे प्यार में कितना रोया हूँ जब तब ना समझे तो अब क्या समझोगे पर लिखकर मैं कुछ छोड़ गया हूँ, क्या इसको समझ पाओगे कुछ अल्फ़ाज़ मेरे तुम याद रखना राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) भाग-1
Roshan-nama
हालात दिन बा दिन मुश्किल हो रहे हैं बस सुकर है हम भूखे पेट नहीं सो रहे हैं ना जाने कब तलक हम भी ज़िंदा है रोज सुबह हम हजारों ज़िन्दगी खो रहे हैं 😞😞😞😞 #lockdown3 भाग 1
Priya Anand jha
इंतजार अब बस उस पल का है। जब वो मेरे साथ होगा । आँखो में आंखे, और हाथो में एक दूसरे का हाथ होगा। इंतजार भाग - 1
प्रेM लखनवी
मैं और तुम मैं एक चांद हूं, तो तुम मेरी चांदनी हो। मैं एक राग हूं ,तो तुम सुरमयी रागिनी हो। मैं एक ख्वाब हूं , तो तुम ही हकीकत हो। मैं एक इंसान हूं, तो तुम ही अकीदत हो। मैं एक राज़ हूं , तो तुम मेरी राजदार हो। मैं एक आज हूं, तो तुम ही हर वार हो। मैं गुजरा हुआ कल हूं, तो तुम मीठी याद हो। मैं आने वाला कल हूं, तो तुम फरियाद हो। मैं एक रात हूं , तो तुम एक भोर हो। मैं एक वन हूं, तो तुम उसका मोर हो। मैं एक बादल हूं ,तो तुम एक-एक बूंद हो। मैं शब की अजान हूं, तो तुम उसकी गूंज हो। To be continued.... #मैं_और_तुम (भाग 1)
Raone
माँ अब वो नींद कहाँ हे माँ, जो तेरे आँचल में आ जाती थी । अब तो माँ वो रात ना आती, जो संग तेरे खाट पर सोकर तारे दिखलाती थी। करवट, सिलवट, सब बुरे सपनें, अब ये रात निगोड़ी देती है। देकर सब बोझ दिलों, दिमाग पर, सब सूकून, चैन ले लेती है। क्या दिन थे अम्मा वो दिन , नित थपकी तेरी पाते थे। कितनी भी भयानक चाहे रात हो, झटपट तेरे आँचल में सो जाते थे। तेरी उस लोरी, चनयनी में हे माँ, जाने क्या जादू सा होता था। कितना भी बड़ा दर्द हो माँ, पल में सब दूर हो जाता था। (भाग-1) @उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी माँ (भाग-1)
Harpinder Kaur
गाली पुरुष को लगता है कि गाली उसके पुरूष होने का एक पहचान पत्र है उसकी मर्दानगी है एक औरत के नाम पर दी गाली में वो अपना पौरूषार्थ समझता है माँ - बहन की गालियों को वो अपने गुस्से का सुकून समझता है वो देता है......... औरत के उस हिस्से को गाली जिस हिस्से से वो दुनिया में आता है और अपना वंश बढ़ाता है ©Harpinder Kaur # भाग -1 ..... ✍️