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Kulbhushan Arora
उम्मीद बैठी, सिकुड़ी हुई, ठिठुरती सर्दी में, इस विश्वास से.... कहीं से कोई, टुकड़ा भर धूप का मिल जाएगा.... उम्मीद बैठी सिकुड़ी हुई ठिठुरती सर्दी में इस विश्वास से कहीं से कोई टुकड़ा भर धूप का मिल जाएगा.... कुलभूषण
Uma Sailar
”बुढ़ापा ” एक वक्त मेरा भी था मैं भी जब खुद्दार था खुद में, खुदपर नाज़ मुझे था आलम – ए जबानी जो था पर आज बुढ़ापा सर चढ़ आया रेखाएं ये सिकुड़ी जाए न बेटा – बेटी का साथ फिरता गिरता – पड़ता बाप नया ज़माना नए रिवाज़ सब करते मतलब से बात नहीं खुलते मदद– ए किबाड़ सब लगता है मुझे कबाड़, ज्यों – ज्यों उमर ये; ढलती जाए बदला जाए सबका सब रे भूख मिटाने के खातिर खैरात की खानी जारी है जो कल आफिस का मालिक था आज रास्ते का भिखारी है ।। उमा सेलर उमा लिखती है ©Uma Sailar Budapa Hindi Poem By Uma Sailar ”बुढ़ापा ” एक वक्त मेरा भी था मैं भी जब खुद्दार था खुद में, खुदपर नाज़ मुझे था
Shree
देखो ना! ये मुखड़ा तुम्हारी ही तो तस्वीर है जब-जब तुम्हारे नयन बिंदु और अधरों की रेखाएं प्रफुल्लित हो जाती है! देखा ना, कैसे... पसर जाती हैं सारी सिकुड़ी हुई नसें, हृदय द्रवित सम्मोहित सिंधु और धड़कनें दुगनी सी हो उद्वेलित हो जाती है! देखते ही... मन आंगन बिन सावन पसीजने लगता है पलकें तुम्हारे कंठ से उपर नहीं उठती और तन से ये आंचल लिपटा, ये दूरी तड़पाती है। दिखावा है, जब कहते हैं, हां! बिल्कुल अब सब ठीक है.. स्पृहा चरम पर पावक को अपनाने की और मुमुक्षु समर्पित तुम्हें सौंप काशवी बन जाती है। देखो ना! ये मुखड़ा तुम्हारी ही तो तस्वीर है जब-जब तुम्हारे नयन बिंदु और अधरों की रेखाएं प्रफुल्लित हो जाती है! देखा ना, कैसे... पसर जाती है
Neena Jha
मैं भी तो नारी हूँ, मैं भी स्त्रीरूपा हूँ, पर मैं क्यों बेचारी हूँ? मैं सृजनकर्ता हूँ, मैं देवी आराध्या हूँ, फ़िर मैं क्यों बेघर हूँ? मैं दानवी मैं ही विनाशनी, मैं काली हूँ मैं ही नारायणी, मैं दुर्गा के नौ अवतार, मैं लक्ष्मी के अष्ट रूप, फ़िर मैं ही क्यों कलंकित हूँ? मैं माँ जननी मैं शिवप्रिया, मैं सरस्वती मैं विष्णुप्रिया, फ़िर क्यों मैं जग में निर्वस्त्र द्रुपसुता? मैं जानकी मैं ही कौशल्या, मैं राधा रानी मैं ही सुमित्रा, मैं निर्भीक मैं सबल और निडर फ़िर मैं क्यों कहलाती जग में अबला? क्या जवाब है किसी सवाल का? हर पल मैं डर डर जीती हर गली, हर डगर मैं निकली सहमी सी, हर बात पर मैं सिमटी सिकुड़ी सी, कहाँ हैं वो अंधेर सड़क जिस पर हो निडर चलने की आज़ादी? कहाँ है मेरी निर्भीक गली जहाँ हो शाम ए तरब मेरी मतवाली? नीना गुप्ता संजोगिनी ©Neena Jha #MainAurMaa #neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी #हिन्दी_की_पाठशाला जय माँ शारदे 🙏 विषय...नारी मतलब सबला मैं भी तो
Kulbhushan Arora
फिर से कोशिश करता हूं इस अधूरे उपन्यास को पूरा करने की प्रश्नचिन्ह????? नींद आनंद की आंखों से कोसों दूर थी, उसकी बंद आंखों में दिन भर की घटनाएं, किसी सीरियल के एपिसोड की तरह चलने लगी।जबसे उसने CT scan और MRI की र
Kulbhushan Arora
प्रश्नचिन्ह??? एक उपन्यास... पहला भाग नींद आनंद की आंखों से कोसों दूर थी, उसकी बंद आंखों में दिन भर की घटनाएं, किसी सीरियल के एपिसोड की तरह चलने लगी।जबसे उसने CT scan और MRI की र
Kulbhushan Arora
*एक अधूरा उपन्यास* फिर से पोस्ट कर रहा हूं जाने कैसे डिलीट हो गई नींद आनंद की आंखों से कोसों दूर थी, उसकी बंद आंखों में दिन भर की घटनाएं, किसी सीरियल के एपिसोड की तरह चलने लगी।जबसे उसने CT scan और MRI की र
Kulbhushan Arora
एक अधूरा किस्सा... नींद आनंद की आंखों से कोसों दूर थी, उसकी बंद आंखों में दिन भर की घटनाएं, किसी सीरियल के एपिसोड की तरह चलने लगी।जबसे उसने CT scan और MRI की र
Hrishabh Trivedi
DDLJ 2.0 Chapter 2: Cigarette For chapter1, click here👉 #hr_ddlj एक अंधेरे कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ है कि तभी अचानक से एक आवाज़ सुनाई देती है जो कि इस बात का सूचक होती