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Liladhar Dawande

 आयिक देवा विठ्ठला, एक वैदर्भी कविता

आयिक देवा विठ्ठला, एक वैदर्भी कविता #poem #nojotophoto

3 Love

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Suman vishwakarma

कृष्ण लीला श्री कृष्ण की त्रिज्या लीला परब्रह्म कौन है पहचानिए

कृष्ण लीला श्री कृष्ण की त्रिज्या लीला परब्रह्म कौन है पहचानिए #जानकारी

137 Views

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kumaarkikalamse

हुई  एक  खता  और
इल्ज़ाम लगे बेहिसाब
टूटा भी,  बिखरा  भी
चकनाचूर  हर  ख्वाब! 

मैंने  उनकी  हर गलती
कर दी थी नजरअंदाज
उन्होंने मेरी एक भूल पर 
कर दिया रिश्ता ख़राब! 

वृत्त  रूपी  जिंदगी  की
एक त्रिज्या वे, एक हम
केंद्र बिंदु पर आ गई दूरी
व्यास का ना रक्खा हिसाब!  वृत्त का केंद्र बिंदु विश्वास है
त्रिज्या और व्यास दोनों खास है..!

जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है..!

#kumaarsthought #kumaaronlove #kumaaronz

वृत्त का केंद्र बिंदु विश्वास है त्रिज्या और व्यास दोनों खास है..! जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है..! #Kumaarsthought #kumaaronlove kumaaronz #kumaaronzindagi #केंद्रबिंदु

0 Love

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kaushik

'त्रिजटा'

त्रिजटा रामभक्त विभीषणजी की पुत्री थी। इनकी माता का नाम शरमा था। वह रावण की भ्रातृजा थी। राक्षसी उसका वंशगुण है और रामभक्ति उसका पैतृक गुण । लंका की अशोक वाटिका में सीताजी के पहरेपर अथवा सहचरी के रूपमें रावणद्वारा जिस स्त्री-दल की नियुक्ति होती है, त्रिजटा उसमें से एक थी। #गुगल_पिक्चर #रामायण #त्रिजटा #लंका
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Urvi Poonia

त्रिजटा और सीता माँ संवाद

त्रिजटा और सीता माँ संवाद #कहानी

938 Views

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kumaarkikalamse

प्रेम के 'वृत्त' का 'केंद्र बिंदु' होता है विश्वास
'त्रिज्या', 'त्रिज्या' मिलकर  बनाती हैं 'व्यास' 
जिसको  समझ  नहीं   इस  'ज्यामिति'  की
उनके  लिए  'परिधि'  भी  नहीं  होती खास।  P. S. - PINTEREST

Inspird by Alien Friend (रोली जी)

आज उनसे बात करते करते यह एक thought दिमाग में आया, किसी कारण से उस time पूरा नहीं लिख

P. S. - PINTEREST Inspird by Alien Friend (रोली जी) आज उनसे बात करते करते यह एक thought दिमाग में आया, किसी कारण से उस time पूरा नहीं लिख #प्रेम #व्यास #Kumaarsthought #परिधि #जीवा #वृत्त #kumaardedication #केंद्र_बिंदु

0 Love

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Vickram

WATER 
please keep the ponds around 
you clean

पानी और जिंदगी का सफर भी एक सा था,,
पर पानी तो हमेशा ही काम आया जिंदगी के,
कभी जिंदगी बना पानी तो कभी आंसू भी,,
तेरे हर काम में अक्सर पानी ही काम आया,,
ये शामिल रहा हमेशा खून और पसीने में,,
तेरी जिंदगी की हर जरूरत में काम आया,,
ये बहता ही रहा जिंदगी के लिए अक्सर,,,
इंसान तो खुद के लिए भी कहां जी पाया,,







water,,

©Vickram
  क्रिप्या अपने आस पास के
तालाबों को साफ रखें

क्रिप्या अपने आस पास के तालाबों को साफ रखें #शायरी

126 Views

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RITESH Sharma

त्रिया 
# सस्पेंस और थ्रिलर पर आधारित एक वेब सीरीज का ट्रेलर

त्रिया # सस्पेंस और थ्रिलर पर आधारित एक वेब सीरीज का ट्रेलर

37 Views

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Vickram

नफरत ना होती तो महोब्बत कहां 
समझ आती ।
बेवफाई ने खुद से प्यार करना सिखा 
दिया ।
अच्छा हुआ ठोकर से थोड़ी सी चोट 
लगी ।
अगर लम्बा साथ होता तो सब कुछ खत्म 
हो जाता ।

©Vickram
  कुछ चीजें अच्छे के
लिए होती हैं,,क्रिप्या किसी के लिए
खुद को चोट ना पहुंचाए,,

कुछ चीजें अच्छे के लिए होती हैं,,क्रिप्या किसी के लिए खुद को चोट ना पहुंचाए,, #शायरी

209 Views

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Bazirao Ashish

मैं घूमना चाहता हूँ
पूरी ज्या।
जिसका केन्द्र हो
सिर्फ़ अयोध्या।
और अनन्त हो
मेरे यात्रा की त्रिज्या।
मैं घूमना चाहता हूँ
पूरी ज्या।।
~●आशिष●द्विवेदी●~

©Bazirao Ashish मैं घूमना चाहता हूँ
पूरी ज्या।
जिसका केन्द्र हो
सिर्फ़ अयोध्या।
और अनन्त हो
मेरे यात्रा की त्रिज्या।
मैं घूमना चाहता हूँ
पूरी ज्या।।

मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या। जिसका केन्द्र हो सिर्फ़ अयोध्या। और अनन्त हो मेरे यात्रा की त्रिज्या। मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या।। #ज़िन्दगी

9 Love

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SHUBHRA

 चौखट पर टूटे हुए गागर की तरह....

एक त्रिया ने फेंका है प्यास बुझा कर मुझे...

चौखट पर टूटे हुए गागर की तरह.... एक त्रिया ने फेंका है प्यास बुझा कर मुझे...

4 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

जन्म देने मात्र से होती नहीं है माँ ।

माँ सिया ने है पुकारा देख त्रिजटा माँ ।।


२०/१०/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जन्म देने मात्र से होती नहीं है माँ ।

माँ सिया ने है पुकारा देख त्रिजटा माँ ।।


२०/१०/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

जन्म देने मात्र से होती नहीं है माँ । माँ सिया ने है पुकारा देख त्रिजटा माँ ।। २०/१०/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर #कविता

14 Love

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Prerit Modi सफ़र

तुम त्रिया चरित्र 
मैं नादान प्रिये
मान भी जाओ
यूं ना सताओ प्रिये
 #Collab with me open...
तुम त्रिया चरित्र 
मैं नादान प्रिये
मान भी जाओ
यूं ना सताओ प्रिये

#hindishayari #yqdidi #yqbaba #hindiwriters #coll

#Collab with me open... तुम त्रिया चरित्र मैं नादान प्रिये मान भी जाओ यूं ना सताओ प्रिये #hindishayari #yqdidi #yqbaba #hindiwriters coll #CollabChallenge

0 Love

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N S Yadav GoldMine

आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey}

त्रिजटा कौन थी :- 🌰 त्रिजटा रावण की नगरी में एक ऐसी राक्षसी थी जिसका जन्म तो राक्षस कुल में हुआ था लेकिन उसका हृदय देवियों के समान पवित्र था। वह रावण को दुष्ट व पापी समझती थी व भगवान विष्णु में विश्वास रखती थी। रावण के द्वारा माता सीता का अपहरण किये जाने के पश्चात उसे अशोक वाटिका में रखा गया था जहाँ माता त्रिजटा को ही उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। उस समय उसने अपनी बुद्धिमता के साथ माता सीता को संभाला था। 

त्रिजटा का जन्म :- 🌰 त्रिजटा के जन्म के बारें में वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास की रामचरितमानस में तो नही बताया गया है लेकिन कुछ अन्य भाषाओँ में त्रिजटा के बारें में भिन्न-भिन्न विवरण सुनने को मिलते हैं। सबसे प्रमुख मान्यता के अनुसार त्रिजटा को रावण के छोटे भाई विभीषण व उनकी पत्नी सरमा की पुत्री बताया गया हैं। कुछ अन्य रामायण में त्रिजटा को रावण व विभीषण की बहन के रूप में दर्शाया गया है। किसी भी बात को प्रमाणिक तौर पर नही कहा जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि उसका जन्म एक राक्षस कुल में हुआ था फिर भी उसके अंदर राक्षसी प्रवत्ति के गुण नामात्र थे। वह हमेशा माता सीता की सच्ची मित्र के रूप में याद की जाती है।

अशोक वाटिका में माता सीता की अंगरक्षक की भूमिका :- 🌰 जब रावण छल के द्वारा माता सीता को पंचवटी से अपने पुष्पक विमान में उठाकर ले आया तो उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा। रावण के द्वारा माता त्रिजटा को ही सीता की सुरक्षा सौंपी गयी व सभी राक्षसियों का प्रमुख बनाया गया। रामायण में त्रिजटा की भूमिका भी यही से शुरू हुई थी जिसमे उन्होंने स्वयं के चरित्र को ऐसा दिखाया जिससे वह आमजनों के दिल में हमेशा के लिए बस गयी।

माता सीता की दुःख की साथी :- 🌰 जब माता सीता रावण के द्वारा अपहरण कर लंका में लायी गयी तब वह अत्यंत विलाप कर रही थी। साथ ही अशोक वाटिका में अन्य राक्षसियां उन्हें तंग कर रही थी। यह देखकर त्रिजटा ने अपनी बुद्धिमता से बाकि राक्षसियों को चुप करा दिया था व माता सीता को ढांढस बंधाया था। त्रिजटा के कारण ही माता सीता को उस राक्षस नगरी में रहने की शक्ति मिली व उनका विलाप कम हुआ थ

माता सीता की गुप्तचर :- 🌰 वैसे तो माता त्रिजटा रावण की सेविका थी लेकिन वह भगवान श्रीराम की विजय में विश्वास रखती थी। उसनें अपने व माता सीता के बीच के संबंधों को जगजाहिर नही होने दिया किंतु हर पल वह माता सीता को हर महत्वपूर्ण जानकारी देती थी जैसे कि लंका का दहन होना, समुंद्र पर सेतु बनना, राम लक्ष्मण का सुरक्षित होना इत्यादि। त्रिजटा के द्वारा समय-समय पर माता सीता को जानकारी देते रहने से उनकी हिम्मत बंधी रहती थी।

रावण के अंत के बाद माता त्रिजटा :- 🌰 अंत में भगवान श्रीराम व दशानन रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ व उसमें रावण मारा गया। इसके पश्चात विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया व उन्होंने तुरंत माता सीता को मुक्त करने का आदेश जारी कर दिया। त्रिजटा माता सीता के जाने से तो दुखी थी लेकिन प्रसन्न भी थी कि अब सब विपत्ति टल गयी। अग्नि परीक्षा के बाद जब माता सीता भगवान श्रीराम के पास आई तब उन्होंने माता त्रिजटा के वात्सल्य व प्रेम के बारे में उन्हें बताया। यह सुनकर सभी बहुत खुश हुए व भगवान राम व माता सीता ने त्रिजटा को इतने पुरस्कार दिए कि अब जीवनभर उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नही थी। साथ ही त्रिजटा को लंका में भी विभीषण के द्वारा अहम उत्तरदायित्व व उचित सम्मान दिया गया। कुछ मान्यताओं के अनुसार माता त्रिजटा भगवान राम व माता सीता के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या भी आई थी व कुछ दिनों तक उनके साथ रही थी। कुछ रामायण में लंका विजय के बाद यह बताया गया है कि विभीषण ने भगवान हनुमान से अनुरोध किया था कि वे उनकी बेटी त्रिजटा से विवाह कर ले। इसके बाद हनुमान ने त्रिजटा से विवाह किया जिन्हें उन्हें एक पुत्र तेगनग्गा प्राप्त हुआ। कुछ समय तक वहां रहने के पश्चात हनुमान वहां से चले गए।

©N S Yadav GoldMine
  #boat आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey}

त्रिजटा क

#boat आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey} त्रिजटा क #प्रेरक

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~anshul

प्रेम की त्रिज़्या (radius) का दायरा बड़ा छोटा हो भी सकता है पर केंद्र (center) हमेशा तुम में ही आकर अटकता है ।💗

#अंशुल प्रेम की त्रिज़्या (radius) का दायरा बड़ा छोटा हो भी सकता है पर केंद्र (center) हमेशा तुम में ही आकर अटकता है ।💗
#chai_love  Pooja Singh Aar

प्रेम की त्रिज़्या (radius) का दायरा बड़ा छोटा हो भी सकता है पर केंद्र (center) हमेशा तुम में ही आकर अटकता है ।💗 #chai_love Pooja Singh Aar #अंशुल

34 Love

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Vibha Katare

मेरे जीवनवृत्त के तुम केंद्र बिंदु..
और मैं इसकी परिधि..
मेरे मन की हर नेह त्रिज्या
जोड़े मुझको तुमसे.. #Collab and write a fun #mathpoem. A math poem is one that uses a maths formula or theory to make a point about life. Here’s my try:

You me

#Collab and write a fun #mathpoem. A math poem is one that uses a maths formula or theory to make a point about life. Here’s my try: You me #YourQuoteAndMine #परिधि #नेह #त्रिज्या #वृत्त

0 Love

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Prerit Modi सफ़र

वो त्रिया चरित्र है पता है, अदाओं 
का जाल अच्छी तरहा फैंकना आता है उन्हें
हम भी आशिक़ मिज़ाज हैं
आशिक़ी करना आता है हमे
 वो त्रिया चरित्र है पता है, अदाओं 
का जाल अच्छी तरहा फैंकना आता है उन्हें
हम भी आशिक़ मिज़ाज हैं
आशिक़ी करना आता है हमे

#yqbaba #yqdidi #quote

वो त्रिया चरित्र है पता है, अदाओं का जाल अच्छी तरहा फैंकना आता है उन्हें हम भी आशिक़ मिज़ाज हैं आशिक़ी करना आता है हमे #yqbaba #yqdidi #Quote #quoteoftheday #yqtales #yqthoughts

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AB

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बोलो.,.

प्रेम का
कौन सा
आकाशविषयक
नवीन सूत्र 
प्रतिपादित

बोलो.,. प्रेम का कौन सा आकाशविषयक नवीन सूत्र प्रतिपादित

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
उधर तो रावण अपने भवन के भीतर गया-इधर वे नीच राक्षसियों के झुंड के झुंड अनेक प्रकार के रूप धारण कर के सीताजी को भय दिखाने लगे॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा का स्वप्न
रामचन्द्रजी के चरनों की भक्त, निपुण और विवेकवती त्रिजटा

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥
उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी।
वह रामचन्द्रजी के चरनों की परम भक्त और बड़ी निपुण और विवेकवती थी- उसने सब राक्षसियों को अपने पास बुलाकर,जो उसको सपना आया था, वह सबको सुनायाऔर उनसे कहा की –हम सबको सीताजी की सेवा करके
अपना हित कर लेना चाहिए(सीताजी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो)॥

त्रिजटा अन्य राक्षसियों को स्वप्न के बारे में बताती है
सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

क्योकि मैंने सपने में ऐसा देखा है कि एक वानर ने लंकापुरी को जला कर
राक्षसों की सारी सेना को मार डाला और रावण गधे पर सवार है,वह भी कैसा की नग्न शरीर,सिर मुंडा हुआ और बीस भुजायें टूटी हुई॥

स्वप्न में रामचन्द्रजी की लंका पर विजय
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥
इस प्रकार से वह दक्षिण (यमपुरी की) दिशा को जा रहा है और मैंने सपने में यह भी देखा है कि मानो लंका का राज विभिषण को मिल गया है और नगर मे रामचन्द्रजी की दुहाई फिर गयी है-तब रामचन्द्रजी ने सीता को बुलाने के लिए बुलावा भेजा है॥

स्वप्न सुनकर राक्षसियाँ डर जाती है
यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥
त्रिजटा कहती है की मै आपसे यह बात खूब सोच कर कहती हूँ की यह स्वप्न चार दिन बितने के बाद (कुछ ही दिनों बाद) सत्य हो जाएगा॥त्रिजटा के ये वचन सुनकर सब राक्षसियाँ डर गई।
और डर के मारे सब सीताजीके चरणों में गिर पड़ी॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 419  से 430 नाम
419 परमेष्ठी हृदयाकाश के भीतर परम महिमा में स्थित रहने के स्वभाव वाले
420 परिग्रहः भक्तों के अर्पण किये जाने वाले पुष्पादि को ग्रहण करने वाले
421 उग्रः जिनके भय से सूर्य भी निकलता है
422 संवत्सरः जिनमे सब भूत बसते हैं
423 दक्षः जो सब कार्य बड़ी शीघ्रता से करते हैं
424 विश्रामः मोक्ष देने वाले हैं
425 विश्वदक्षिणः जो समस्त कार्यों में कुशल हैं
426 विस्तारः जिनमे समस्त लोक विस्तार पाते हैं
427 स्थावरस्स्थाणुः स्थावर और स्थाणु हैं
428 प्रमाणम् संवितस्वरूप
429 बीजमव्ययम् बिना अन्यथाभाव के ही संसार के कारण हैं
430 अर्थः सबसे प्रार्थना किये जाने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
उधर

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 10 राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥ उधर #समाज

8 Love

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#काव्यार्पण

त्रिया चरित्र....😕😕😕
#Kavyarpan #nojoto #BoloDilSe #love 
#triyacharitr 
#strikachatritr
#charitr
#Lanat 

#DurgaAarti  Satyaprem Upadhyay -

त्रिया चरित्र....😕😕😕 #Kavyarpan nojoto #BoloDilSe love #triyacharitr #strikachatritr #Charitr #Lanat #DurgaAarti Satyaprem Upadhyay - #Life #शुन्य

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Das Sumit Malhotra Sheetal

कविता: स्त्री का चरित्र।

धन-दौलत एशो-आराम के लिए, 
कुछ स्त्रियाँ प्यार में धोखा देती हैं।

प्यार मोहब्बत रब का दूसरा रूप,
स्त्री का चरित्र त्रिया चरित्र समान।
 
अक्सर रूला जाते है हमें वो लम्हे, 
भविष्य में क्या होगा सोच घबराते।

वैसे स्त्री नारायणी जो सघर्ष करती, 
हर रिश्ता वचन देकर भी निभाती। 

भेदभाव बिल्कुल ना कभी करती, 
ऊंच-नीच बिल्कुल नहीं ये मानती।

स्त्री नारायणी हमेशा ही तो महान,
उन पर बहुत ज़्यादा हैं अभिमान।

©Das Sumit Malhotra Sheetal कविता: स्त्री का चरित्र।

धन-दौलत एशो-आराम के लिए, 
कुछ स्त्रियाँ प्यार में धोखा देती हैं।

प्यार मोहब्बत रब का दूसरा रूप,
स्त्री का चरित्र

कविता: स्त्री का चरित्र। धन-दौलत एशो-आराम के लिए, कुछ स्त्रियाँ प्यार में धोखा देती हैं। प्यार मोहब्बत रब का दूसरा रूप, स्त्री का चरित्र #HumTum

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब राक्षसियाँ मिलकर जहां तहां चली गयी-तब सीताजी अपने मनमें सोच करने लगी की –एक महिना बितने के बाद यह नीच राक्षस (रावण) मुझे मार डालेगा ॥11॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजी और त्रिजटा का संवाद
माता सीता, त्रिजटा को, श्रीराम से विरहके दुःख के बारे में बताती है
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥
फिर त्रिजटाके पास हाथ जोड़कर सीताजी ने कहा की हे माता-तू मेरी सच्ची विपत्तिकी संगिनी (साथिन) है॥सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कर
नहीं तो मै अपना देह तजती हूँ(जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मै शरीर छोड़ सकूँ)क्योंकि अब मुझसे अति दुखद विरहका दुःख सहा नहीं जाता॥

सीताजी का दुःख
आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥
हे माता! अब तू जल्दी काठ ला और
चिता बना कर मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे आग लगा दे॥
हे सयानी! तू मेरी प्रीति सत्य कर- रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानो से कौन सुने?सीता जी के ऐसे शूल के सामान महा भयानाक वचन सुनकर॥

त्रिजटा सीताजी को सांत्वना देती है

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरण पकड़ कर उन्हे समझायाऔर प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया और  सीताजी से कहा की हे राजपुत्री! हे सुकुमारी!अभी रात्री है, इसलिए अभी आग नहीं मिल सकत ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥

सीताजी को प्रभु राम से विरह का दुःख आसमान के तारे

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
हिमिलि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥
तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करूँ विधाता ही विपरीत हो गया-अब न तो अग्नि मिले और न मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥ऐसे कह तारो को देख कर सीताजी कहती है की ये आकाश के भीतर तो बहुत से अंगारे दिखाई दे रहे है,परंतु पृथ्वी पर पर इनमे से एक भी तारा नहीं आता॥

चन्द्रमा और अशोक वृक्ष
पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥
सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप अग्निमय दिख पड़ता है,पर यह भी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आग को नहीं बरसाता॥अशोक के वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि -हे अशोक वृक्ष!मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर।अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर।मेरे शोकको दूर कर (मेरा शोक हर ले)॥

सीताजी को दुखी देखकर हनुमानजी को दुःख होता है

नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥
तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान है ,तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजी का वह एक क्षण कल्प के समान बीतता गया॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 466 से 477 नाम
466 स्ववशः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण हैं
467 व्यापी सर्वव्यापी
468 नैकात्मा जो विभिन्न विभूतियों के द्वारा नाना प्रकार से स्थित हैं
469 नैककर्मकृत् जो संसार की उत्पत्ति, उन्नति और विपत्ति आदि अनेक कर्म करते हैं
470 वत्सरः जिनमे सब कुछ बसा हुआ है
471 वत्सलः भक्तों के स्नेही
472 वत्सी वत्सों का पालन करने वाले
473 रत्नगर्भः रत्न जिनके गर्भरूप हैं
474 धनेश्वरः जो धनों के स्वामी हैं
475 धर्मगुब् धर्म का गोपन(रक्षा) करने वाले हैं
476 धर्मकृत् धर्म की मर्यादा के अनुसार आचरण वाले हैं
477 धर्मी धर्मों को धारण करने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब रा

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 11 सीताजी मन में सोचने लगती है जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥ फिर सब रा #समाज

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Shikha Mishra

ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं,
सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं।

दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ़ा,
हालातों से लड़कर, मैं जीना सीखती जा रही हूं।

मेरी हंसी देख लगता है उन्हें, मैं टूटी हीं नहीं कभी,
कैसे यकीं दिलाऊं, मैं टुकड़ों में बंटती जा रही हूं।

कोशिश तो तुमने भी अच्छी की तोड़ने की मुझे,
पर देखो, यारा! मैं फिर भी मुस्कुराती जा रही हूं।

क्या बताऊं मैं किस क़दर उसकी यादों में जलती हूं,
पर अपनी हंसी से मैं, लोगों को जलाती जा रही हूं।

पढ़े और सुने तो थे,'जूही', दोस्ती के तराने कई,
सिला देख, अपने याराने की त्रिज्या घटाती जा रही हूं। ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं,
सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं।

दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ

ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं, सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं। दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ #Zindagi #Smile #yqdidi #yqurdu #yqhindi #yqhindipoetry #smghazal

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Bhanu Shukla

छवि मनोहर थी नही पर मन बड़ा उज्ज्वल रहा,
होके रावण सेविका भी सीता को बेटी कहा।

थी प्रवृत्ति शांत उसकी निशचरी रहकर सदा,
ममता के ममत्व से निज सीता की हरती व्यथा।

हांथ मे तलवार लेकर जब कभी रावण डराता,
होती दुखी मां जानकी और डर उनको सताता।

छाँव मे ममता के अपने त्रिजटा ले भयमुक्त करती,
दे कुशल प्रभु राम दल की सब समस्याये थी हरती।

इस तरह हर तत्थ्य से वह उस समय सिय प्रान थी,
मां न थी वह जानकी की फिर भी मां के समान थी।
@BHANU SHUKLA छवि मनोहर थी नही पर मन बड़ा उज्ज्वल रहा,
होके रावण सेविका भी सीता को बेटी कहा।

थी प्रवृत्ति शांत उसकी निशचरी रहकर सदा,
ममता के ममत्व से निज

छवि मनोहर थी नही पर मन बड़ा उज्ज्वल रहा, होके रावण सेविका भी सीता को बेटी कहा। थी प्रवृत्ति शांत उसकी निशचरी रहकर सदा, ममता के ममत्व से निज

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Pushpvritiya

कि...........                                                
मेरे शब्दों में आ उलझ
भ्रम में भ्रमित हो,       
         दंभी हूंकार जो भरते हो.......
इक क्षण में वो                                                 
चकनाचूर हो,                                                   
रसातल को शरण लेंगे.............                         
और कहेंगे.......                
       थम जा श्रवण से कर्ण श्रापित हो 
                                    नयन जलधि बहेंगे..........

कि बूझो ध्यान से                                                  
पाओगे तुम अपने गढ़न में भी.......                         
न केवल काया कंचन में 
  वरन् मलिन मन में भी.....
कलाएं हस्त मेरी, 
                  और कौशल शिल्पकारी भी......
             तुमको बनाया निज निमित्त,
                               सुन मैं वो नारी भी.....

कि पग पग पर छला                 
 छल छल तुम्हें पुरूष बना            
बना मैं बचती हूं........
कि मैं वो चरित हूं जो तुम संग व्यूह रचती हूं........

                       @पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya बात तब की है जब ईश्वर ने पुरूष और स्त्री की रचना की....
स्त्री ने ईश्वर से कहा..यह तो अन्याय है प्रभु...जीवन चक्र की दो धुरी के निर्माण में

बात तब की है जब ईश्वर ने पुरूष और स्त्री की रचना की.... स्त्री ने ईश्वर से कहा..यह तो अन्याय है प्रभु...जीवन चक्र की दो धुरी के निर्माण में #कविता

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Bhaskar Anand

धागे जब सज कर प्रेम का रंग लेती तो स्वरूप कुछ जज्बातों सा सवंर जाती आहिस्ता आहिस्ता उस धागों का स्वरूप जब रिश्तों के कलाईयों पर अपना उपस्थित

धागे जब सज कर प्रेम का रंग लेती तो स्वरूप कुछ जज्बातों सा सवंर जाती आहिस्ता आहिस्ता उस धागों का स्वरूप जब रिश्तों के कलाईयों पर अपना उपस्थित

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कवि राहुल पाल 🔵

मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी 
प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे 
इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी 
उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१!
वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे 
हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे 
व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने ,
हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२!
जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को 
वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे ,
जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए 
हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३!
वो न देखे हमारी तरफ अब कभी ,
साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे,
वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु ,
    बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४!
जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने 
कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे 
विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो 
   उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे  !५!
वो अंक बने और मैं बना शून्य सा ,
वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे 
प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ 
लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे  !६!
तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली 
आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे ..
मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना
बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे  !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम  )))~~

मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी 
प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे 
इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी 
उनकी

~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी #Nojotochallenge #Rahul #कविता #nojotopoetry #nojotohindi #nojotoquotes #nojotoapp #nojotonews #nojotohindishayari

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संगीत कुमार

(इश्क )

इश्क- इश्क में  यूँ  भटकता रहा। 
इश्क- इश्क- में  वो घर  बैठी रही।। 
इश्क- इश्क- में क्या क्या न किया? ।
इश्क- इश्क में यूँ भटकता रहा। 

न समझा न परखा,  ये क्या कर बैठा?। 
तेरे प्यार में क्या-क्या न खो बैठा ?।।
तुझे अपना बना रखा, तनहा से लगा बैठा।
इश्क़ -इश्क मे यूँ भटकता रहा।। 

असंबद्ध में संबंध बना बैठा। 
मिलन हुआ तो अनबन कर बैठा।। 
इश्क- में तुझे अपना समझ बैठा। 
इश्क -इश्क में यूँ भटकता रहा।। 

तेरे जुनून में सब खो बैठा। 
तु अपना न हुआ प्यार क्यों कर बैठा?।। 
तु न समझा, न मै समझ पाया। 
इश्क-इश्क में यूँ भटकता रहा।। 

तेरे अनुराग को चित्त से लगा बैठा। 
तु मानो या न मानो तुझे अपना  बना बैठा।। 
दिलरूपी संगीत में तुझे सँवार बैठा। 
इश्क-इश्क में  यूँ भटकता रहा।। 

मन से तुझे त्रिया बना बैठा। 
अम्मा की पुत्र सहचरी बना बैठा।। 
तुझे आँगन का उपवन बना बैठा। 
इश्क-इश्क में यूँ भटकता रहा।। 

     (संगीत कुमार /जबलपुर )
    ✒️स्व-रचित कविता 🙏🙏 (इश्क )

इश्क- इश्क में  यूँ  भटकता रहा। 
इश्क- इश्क- में  वो घर  बैठी रही।। 
इश्क- इश्क- में क्या क्या न किया? ।
इश्क- इश्क में यूँ भटकता र

(इश्क ) इश्क- इश्क में यूँ भटकता रहा। इश्क- इश्क- में वो घर बैठी रही।। इश्क- इश्क- में क्या क्या न किया? । इश्क- इश्क में यूँ भटकता र

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