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samandar Speaks
जिक्र ए मेहर ओ वफा ना करो चश्म ए मस्त से रुसवा ना करो बचा के रखो मान दहलीज़ का ना सरे राह इसको उछाला करो दरख्तों पे पसरा मातमी सन्नाटा शब्ज ओ बाग ए फजा ना भरो हर चेहरे पे है बस पर्दा ए रवायत अब सलिका हमे ना सिखाया करो हिज्र मे कब यहाँ मरता है कोई बेवजह बावफा का दम ना भरो दीद ए पानी से है चेहरे कि सुरत बेनजर अब नजर को तुम ना करो ✍राजीव✍ जिक्र ए मेहर ओ वफा ना करो चश्म ए मस्त से रुसवा ना करो बचा के रखो मान दहलीज़ का ना सरे राह इसको उछाला करो दरख्तों पे पसरा मातमी सन्नाटा शब्ज
arun dhuwadiya
मजहबी पखण्ड का उपचार हो। और जिहादी सोच पर भी वार हो। ये नहीं चाहा कभी आवाम ने। कौम से इंसानियत की हार हो। नफरती लोगों को समझाओ जरा। प्रेम की इस धरती पे बस प्यार हो। मज़हबी उन्माद वाली कोढ़ का। प्यार ही उपचार का आधार हो। सारी दुनियाँ को मिटाने की सनक। तुम तो योद्धा हो नहीं, बीमार हो। मातमी चीखों पे अठ्ठाहस हुई। सोचों तुम, इंसाँ नहीं आज़ार हो । तुमसे अब उम्मीद *आशू* क्या करे। दुश्मन-ए- इंसानियत खूँखार* हो। (खून पीने वाले) आशू रतलाम मजहबी पखण्ड का उपचार हो। और जिहादी सोच पर भी वार हो। ये नहीं चाहा कभी आवाम ने। कौम से इंसानियत की हार हो। नफरती लोगों को समझाओ जरा। प्रेम
यशवंत कुमार
आओ, चलें! दो कदम तुम चलो; दो कदम हम चलें, हर कदम सही दिशा में हो, कारवां बनता चले, कंटक कितने पैरों तले, और कब तक आयेंगे ? पैरों की ठोकर खा वो, धूल में मिलते जायेंगे. Read in Caption... आओ, चलें! दो कदम तुम चलो; दो कदम हम चलें, हर कदम सही दिशा में हो, कारवां बनता चले, कंटक कितने पैरों तले, और कब तक आयेंगे ?