मिले न फूल तो काँटों से जख्म खाना है उसी गली में मुझे बार-बार जाना है मैं अपने खून का इल्जाम दूँ तो किसको दूँ लिहाज ये है कि क़ातिल से दोस्ता
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Mumtaz Ansari
मिले न फूल तो काँटों से जख्म खाना है उसी गली में मुझे बार-बार जाना है मैं अपने खून का इल्जाम दूँ तो किसको दूँ लिहाज ये है कि क़ातिल से दोस्ता
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Odysseus
यहां पे कौन भला ग़मगुसार अपना है
कहां किसी को कहीं इंतज़ार अपना है
ये कैसे रंग हमें ज़िंदगी दिखाती है
किसी रकीब के संग, आज यार अपना है
मि #ghazal#nojotovideo