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जनकवि शंकर पाल( बुन्देली)
राजेश गुप्ता'बादल'
कोई सुबह अन्तिम नहीं, ना कोई शाम आखिरी है। विध्वंस में है बीज छुपा, ये नव निर्माण की वानगी है। ना कोई सफर आखिरी ना इस जीवन पथ पर , मिलती कोई मंजिल आखिरी है। गिर गये तो उठना होगा, पोंछ आंसुओं को तुमको फिर बढ़ना होगा। समय पाय ऋतु बदला करती , ना पतझड़ है आखिरी ना होती कोई बहार आखिरी है। जब जब जाता बूढ़ा तन, समझो गूंजनी फिर से नन्ही मुन्नी किलकारी है। अटल सत्य है इस जग का, अन्त ही तो प्रारंभ की फिर से नवीन तैयारी है। कोई सुबह अन्तिम नहीं, ना कोई शाम आखिरी है। विध्वंस में है बीज छुपा, ये नव निर्माण की वानगी है। ना कोई सफर आखिरी ना जीवन इस पथ पर , मिलती कोई