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Anita Prajapati10
कार्ड____दीपावली का 📝 🌺माननीय श्री नोजोटो परिवार आप 🌺 🌺सभी को दीपावली की 🌺 🪔 हार्दिक शुभकामनाएं 🪔 🌺हमारे जमाने की बात हे ये🌺 उन दिनों मैं फोन नही थे 🌺हम लोग अपने रिश्तेदारों को कार्ड भेजकर शुभेच्छा भेजते थे, 🌺कैसे लिखते थे🌺 में बताती हूं ।।😀😀😀😀 पहले तो दीपावली का कार्ड🌺 हम खुद बनाते थे,🌺 कंकू या गुलाल को 🌺पानी में घोलकर🌺स्वास्तिक छापते, फिर 👣लक्ष्मी का 👣 पांव छापते, 🌺 "श्री" से शुरुआत होती थी, सभी संबंधियों को 🌺ये शुभ दीपावली का कार्ड भेजते थे, 🌺और सभी के कार्ड का हमे भी इंतजार रहता था।।🌺🌺 इतने छोटे से कार्ड में🌺 कितना प्यार बरसाते थे।।🌺😀😀😀😀 और अंत में लिखते 🌺ये कार्ड को हम आप को रूबरू मिले हो ऐसा समझना 🌺😀😀 ली..🌺आप की अपनी अनिता का ढेर सारा प्यार.......🌺 ❤️❤️❤️❤️ ©Anita Prajapati10 #कार्ड #कार्ड #शुभदीपावली #Flower
santosh bhatt sonu
घरों से दूर यूं त्योहार मनाना, मजबूरी ही तो है। बस नाम बड़ा है प्रदेश की नौकरी का असल में मजदूरी ही तो है। मजदूरी
दूध नाथ वरुण
हम बंदे मजदूर हैं लोगों, हमे मजदूरी में शर्म नही। मजदूरी है काम हमारा, इससे बड़ा कोई कर्म नहीं।। ©दूध नाथ वरुण #मजदूरी
Shahab
आज एक शादी का कार्ड आया उसमें सबसे नीचे लिखा है Stay Home Stay Safe... घर में रहें , सुरक्षित रहें ।। समझ नहीं आ रहा बुलाया है या मना किया है ©Shahab #कार्ड
Vikas samastipuri
हूं मैं मजदूर मजदूरी हमारी पेशा है मंत्री जी की क्या बात करे उनका न लेखा न जोखा है । कवि-विगेश ©Kavi Kumar Vigesh मजदूरी #Labourday
संतोष सिंह
पिता नहीं चाहता बोझ देना.......... मजदूर की मजबूरी है, दो पैसे घर की जरूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, इसलिए घर - स्कूल की दूरी है। न कोई दिल की दूरी है, गरीब है, ख्वाहिशें पूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, उसकी सफ़र - ए - ज़िन्दगी अधूरी है। जीनत घर में जरूरी है, मानता हूं, तालीम की दूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, मजदूरी ही उसके घर धुरी है बेटा, पिता के पायजामा की डोरी है, बेटा, मां के हाथों की चूड़ी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, ये उसके घर की मजबूरी है। बाल मजदूरी भी चोरी है, मगर दुनिया कहां छोड़ी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, सरकार भी इसपर मुंह मोड़ी है। ....... संतोष सिंह #मजदूरी #बाल_मजदूरी
shabdokapitara
। मज़दूर। घर का एक कमाने वाला, भर दिन बोझ उठता है, परिवार का पेट भर कर, कभी खुद भूखा सो जाता है।। पैदल लौटता हर रोज़ अपने घर, लेकिन दूसरों की गाड़ी चलाता है, चप्पल इसके घिसे पांव के, पर हाथ की लकीर बनाता है।। पढ़ाई भले ना की इसने, लेकिन समय पर घंटी बजाता है, छुट्टी होते ही विद्यायल की, बच्चो का प्यार पता है।। बड़े - बड़े दफ्तरों के बाहर, अपना शीश झुकाता है, दरवाज़े का दरबारी बनकर, रोटी ये कमाता है।। जिस काम से हम घबराते, वो शौक से कर जाता है, दो वक्त के पैसे पाकर, वो मजदूर कहलाता है।। #shabdokapitara मजदूरी #InspireThroughWriting
Kamal Singh
थी उम्र उसकी पढ़ने की थी उम्र उसकी खेलने की परिवार की हालत उसके तंग थी घर की शान्ति उसके भंग थी गरिबी ने बचपन छीना हाथ से खिलोने छिने छिना उसका बालपन छिना उसका लडकपन #बाल मजदूरी