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Vandana Singh

महापुरुषों की कहानी वंदना की जुबानी - आज के महापुरुष जगतगुरु शंकराचार्य Part -1 #ChuskiKeSaath #समाज

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Vikas Deep Sharma

गोस्वामी जी ने नर रूप हरि द्वारा किस की वंदना की है बंधन गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रुप हरी महा मोह तम पुंज जासु वचन रवि कर निकर

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Kulbhushan Arora

Dedicating a #testimonial to Bandana Gupta बेटी से बड़ी नहीं कोई कविता,, बेटी ईश्वर की रची हुई कविता है शीतल शीतल मधुरम मधुरम, प्रेम रस की #yqdidi #yqtestimonial

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बेटी
ईश्वर की रची
कविता है Dedicating a #testimonial to Bandana Gupta
बेटी से बड़ी नहीं कोई कविता,,
बेटी ईश्वर की रची हुई कविता है
 शीतल शीतल मधुरम मधुरम,
प्रेम रस की

Shah Aftab

अयोध्या मे पढ़ी गई सरस्वती वंदना की झलकी कभी दूसरों का न दिल दुखे मेरी भाषा मे वो जान दे shahaftab दोस्तो अच्छी लगे तो अपनी दुआओं से #Love #Zindagi #thought #will #Hindi #Dil #pyaar #poem #कविता #Desh #Vandana

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Divyanshu Pathak

गौरी' स्त्रैण भाव का शुद्ध रुप है। वे नारी की शक्ति और गरिमा हैं। डमरू उनके प्रेम और मृदुलता का भाव है तो त्रिशूल संसार मे व्याप्त तीन तरह क #yqdidi #yqhindi #नवरात्रि #yqsahitya #दुर्गाअष्टमी #पाठकपुराण

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अंक -2 और दुर्गाष्टमी
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ब्रह्माण्ड में जीवन का आधार ही 2 है। प्रकृति और पुरूष। परमात्मा और आत्मा। अभाव और भाव। भाव भी 2 ही हैं एक स्त्रैण और दूसरा पौरुष। धरा और गगन। नर और नारायण। दिन और रात। ग्यारहवीं शताब्दी में रामानुज' जो कि तमिलनाडु में पैदा हुए 'विशिष्टताद्वेत' का सिद्धांत दिया। वे कहते हैं कि आत्मा परमात्मा से जुड़ने के बाद भी अपनी अलग सत्ता बनाए रखता है। उनके सिद्धांत से उत्तर भारत में भक्ति की एक नई धारा सगुण भक्ति का विकास हुआ। आगे चलकर भक्ति सगुण और निर्गुण 2 रूपों में हुई साकार और निराकार भी यही 2 रूप हैं।निम्बार्काचार्य का दर्शन भी द्वेताद्वेत' राधा जी को कृष्ण की शक्ति मानते हैं। 1199 ईस्वी कन्नड़ जिले के उडुपी नगर में जन्मे मधवाचार्य जी ने द्वेतवात' नाम का दर्शन प्रतिपादित किया। इन सभी से पहले शिव' और शक्ति का अस्तित्व है। शक्ति का ही साकार स्वरूप महागौरी' है। माता महागौरी'------ गौरी' स्त्रैण भाव का शुद्ध रुप है। वे नारी की शक्ति और गरिमा हैं। डमरू उनके प्रेम और मृदुलता का भाव है तो त्रिशूल संसार मे व्याप्त तीन तरह क

Shubham Panthri

विचारों की वंदना

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इस देश की माटी  का कर्ज चुका कर हम जाएगे,

ए वतन  अपने लहू  से रंग कर तुजे  सजायेंगे।

- शुभम पांथरी विचारों की वंदना
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