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Vivek Singh rajawat
"भीष्म पितामह" अपनी शक्ति की ध्वजा हाथों में लहराता हुआ, वो बढ़ा अपनो में शस्त्रों को बरसाता हुआ। कोई नही हैं आज जो रोक पाए वीर को, दुश्मनों के मध्य भी जो न माने हार को। जिनको खिलाया था कभी पालने में, उनको लगा अभी मृत्युलोक पहुचाने में। नेत्रों को अश्रुओं से भर प्रत्यंचा को चढ़ाया, हृदय सम्भाल, युद्ध को सत्य धर्म बतलाया। एक ओर अर्जुन लगे प्राणों से भी प्यारा, दूसरी ओर कदाचित वचन न टूटे तुम्हारा। तुमने कसम खाई श्रीकृष्ण को सुदर्शन सम्भालवाने की, शिखंडी ने भी ठानी तुम्हें अर्जुन के द्वारा मरवाने की। हैं आज देखो माँ बाण गंगा का प्यार बेटा, बेबस मृत्यु को व्याकुल बाण शैया पर प्यासा लेटा। जब प्यासे अधर बुलाते है, तब अर्जुन प्यास बुझाते हैं, ये कैसे नाते-रिश्ते हैं, पहिये में काल के पिसते हैं। विवेक सिंह राजावत। भीष्म पितामह
Sikendar Kumar
पंडित सुधाकर शर्मा
जिस देश भारत में पितामह भीष्म से रणधीर थें, जिनकी प्रतिज्ञा के वचन अति घोर थे गंभीर थे। कुरु वंश संरक्षक बने जो मीचु को झुठला गए, पर स्नेहवश निज मृत्यु के भी भेद को बतला गए। वह सोम वंशी शूर क्षत्रिय धर्म प्राण महान थें, सद्धर्म हेतु अधीर वह मानव चरित्र प्रमाण थे। "भीष्म पितामह "
Ek villain
जन्म के बाद बालअवस्था युवाअवस्था के बाद वृद्धअवस्था भी आती है सबसे ज्यादा कष्ट वृद्धावस्था में ही मिलता है परिवार में संस्कारों का माहौल बना होने पर घर के सदस्य उसी वृद्ध की देखभाल करते हैं वही खुद वृद्ध हुए व्यक्ति ने अगर जीवन में सदाचार का पालन नहीं किया हो तब हो सकता है कि बाद की पीढ़ी भी उसी का अनुसरण करने लगे जाए महाभारत युद्ध के दौरान प्रबल प्रतापी भीष्म पितामह शेर सोया पर लेटने को मजबूर हो गए भीष्म जैसे वीर योद्धा की यह स्थिति उनके धनात्मक जीवन का प्रतिफल ही प्रतीत होता है वह शरीर से दुर्योधन के साथ थे जबकि मन से पांडवों के साथ थे ©Ek villain #भीष्म पितामह मन से पांडवों के साथ थे और शरीर से दुर्योधन के साथ
Kritsan Blaze
Vandana Rana
अपने पापों के फल से तो गंगा पुत्र भीष्म पितामह भी नहीं बच पाये थे और हम सोचते हैं कि गंगा स्नान करने से हमारे सभी पाप धूल जायेंगे! ©Vandana rana अपने पापों के फल से तो गंगा पुत्र भीष्म पितामह भी नहीं बच पाये थे और हम सोचते हैं कि गंगा स्नान करने से हमारे सभी पाप धूल जायेंगे! #Gangar
Vikas Sharma Shivaaya'
अंतिम *सांस* गिन रहे *जटायु* ने कहा कि मुझे पता था कि मैं *रावण* से नही *जीत* सकता लेकिन तो भी मैं *लड़ा* ..यदि मैं *नही* *लड़ता* तो आने वाली *पीढियां* मुझे *कायर* कहती 🙏जब *रावण* ने *जटायु* के *दोनों* *पंख* काट डाले... तो *काल* आया और जैसे ही *काल* आया ... तो *गिद्धराज* *जटायु* ने *मौत* को *ललकार* कहा, -- " *खबरदार* ! ऐ *मृत्यु* ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना... मैं *मृत्यु* को *स्वीकार* तो करूँगा... लेकिन तू मुझे तब तक नहीं *छू* सकता... जब तक मैं *सीता* जी की *सुधि* प्रभु " *श्रीराम* " को नहीं सुना देता...! *मौत* उन्हें *छू* नहीं पा रही है... *काँप* रही है खड़ी हो कर... *मौत* तब तक खड़ी रही, *काँपती* रही... यही इच्छा मृत्यु का वरदान *जटायु* को मिला। किन्तु *महाभारत* के *भीष्म* *पितामह* *छह* महीने तक बाणों की *शय्या* पर लेट करके *मौत* का *इंतजार* करते रहे... *आँखों* में *आँसू* हैं ... रो रहे हैं... *भगवान* मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं...! कितना *अलौकिक* है यह दृश्य ... *रामायण* मे *जटायु* भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* पर लेटे हैं... प्रभु " *श्रीराम* " *रो* रहे हैं और जटायु *हँस* रहे हैं... वहाँ *महाभारत* में *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं और *भगवान* " *श्रीकृष्ण* " हँस रहे हैं... *भिन्नता* *प्रतीत* हो रही है कि नहीं... *?* अंत समय में *जटायु* को प्रभु " *श्रीराम* " की गोद की *शय्या* मिली... लेकिन *भीष्म* *पितामह* को मरते समय *बाण* की *शय्या* मिली....! *जटायु* अपने *कर्म* के *बल* पर अंत समय में भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* में प्राण *त्याग* रहा है.... प्रभु " *श्रीराम* " की *शरण* में..... और *बाणों* पर लेटे लेटे *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं.... ऐसा *अंतर* क्यों?... ऐसा *अंतर* इसलिए है कि भरे दरबार में *भीष्म* *पितामह* ने *द्रौपदी* की इज्जत को *लुटते* हुए देखा था... *विरोध* नहीं कर पाये थे ...! *दुःशासन* को ललकार देते... *दुर्योधन* को ललकार देते... लेकिन *द्रौपदी* *रोती* रही... *बिलखती* रही... *चीखती* रही... *चिल्लाती* रही... लेकिन *भीष्म* *पितामह* सिर *झुकाये* बैठे रहे... *नारी* की *रक्षा* नहीं कर पाये...! उसका *परिणाम* यह निकला कि *इच्छा* *मृत्यु* का *वरदान* पाने पर भी *बाणों* की *शय्या* मिली और .... *जटायु* ने *नारी* का *सम्मान* किया... अपने *प्राणों* की *आहुति* दे दी... तो मरते समय भगवान " *श्रीराम* " की गोद की शय्या मिली...! जो दूसरों के साथ *गलत* होते देखकर भी आंखें *मूंद* लेते हैं ... उनकी गति *भीष्म* जैसी होती है ... जो अपना *परिणाम* जानते हुए भी...औरों के लिए *संघर्ष* करते है, उसका माहात्म्य *जटायु* जैसा *कीर्तिवान* होता है। 🙏 सदैव *गलत* का *विरोध* जरूर करना चाहिए। " *सत्य* परेशान जरूर होता है, पर *पराजित* नहीं। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻* 🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲 विष्णु सहस्रनाम एक हजार नाम (आज 860 से 871 नाम ) 860 दमयिता जो यम और राजा के रूप में प्रजा का दमन करते हैं 861 दमः दण्डकार्य और उसका फल दम 862 अपराजितः जो शत्रुओं से पराजित नहीं होते 863 सर्वसहः समस्त कर्मों में समर्थ हैं 864 अनियन्ता सबको अपने अपने कार्य में नियुक्त करते हैं 865 नियमः जिनके लिए कोई नियम नहीं है 866 अयमः जिनके लिए कोई यम अर्थात मृत्यु नहीं है 867 सत्त्ववान् जिनमे शूरता-पराक्रम आदि सत्व हैं 868 सात्त्विकः जिनमे सत्वगुण प्रधानता से स्थित है 869 सत्यः सभी चीनों में साधू हैं 870 सत्यधर्मपरायणः जो सत्य हैं और धर्मपरायण भी हैं 871 अभिप्रायः प्रलय के समय संसार जिनके सम्मुख जाता है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' अंतिम *सांस* गिन रहे *जटायु* ने कहा कि मुझे पता था कि मैं *रावण* से नही *जीत* सकता लेकिन तो भी मैं *लड़ा* ..यदि मैं *नही* *लड़ता* तो आने वाली
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***** चोथा कारण***** समस्त अठारह अक्षौहिणी में 44 करोड़ के लगभग वीरों में एक को छोड़कर कोई ऐसा योद्धा नहीं था जिसने ह्रदय से ये चाहा हो कि मुझे भी श्री कृष्ण और अर्जुन के सवांद का एक भी शब्द भी सुनने को मिले केवल भीष्म पितामह ने ही इच्छा की थी परन्तु उस समय तो उनकी इच्छा पुरी नहीं हुई 29 दिसम्बर 2010 को उनकी श्री गीता जी पाठ सुनाकर और हृदय से स्पर्श कराकर इच्छा अवश्य पुर्ण हुईं थी। ,समस्त पृथ्वी वासियों भीष्म पितामह को इस जन्म में पिछले यादे जैसे मां गंगा जी याद और समस्त कौरवों का भार अपने सिर पर रखे रहना इस जन्म में उनकी चिंता का कारण बना हुआ था। आएं सुनाता कैसे - *** सो मन का लकड़ उसके ऊपर बैठा एक मकड़**** वह एक रति रोज खाएं तो उसको कितने दिन में खा जाएगा यह सवाल भीष्म पितामह की आत्मा जो इस जन्म में रतिराम (मामा) के शरीर रुप में आईं थीं और उनका मेरे से बारे बार -बार पुछने क्या कारण था । मेरे ह्रदय से सोचने समझने से इसका दो उत्तर हे- 1-भीष्म पितामाह के ऊपर 100 कोरवौ का मृत्यु का बार था । स्वयंबर में सबसे बड़े होने पर लाचार रहे कुछ नहीं कर सके। खुद भीष्म पितामह ने अन्त मरते समय कबूल भी किया । इसलिए उनकी आत्मा को यह सवाल बार-बार परेशान कर रहा था। 2- उस पाप को पचाने के लिए रति भर हर रोज खाकर ख़त्म करना पड़ेगा क्योंकि 100कोरवो का भार खुद पर उठाए हुए थे भीष्म पितामह जी। दावा कैसे सिद्ध हुआ कि भीष्म पितामह की आत्मा है मेरे मामा शरीर में। प्रमाण - रोटी खाते समय मां गंगा को याद करना और मेरे जन्म के समय से ही मुख से गंगा मां का नाम लेना शुरु किया। और मरते समय वचनों को याद दिलाया इस आत्मा और अपनी माता का जल पिलाकर वचन लिया आपके इच्छा मृत्यु का वरदान है जो वरदान भी अब जीवित हैं वो और आपका जन्म क्यु हुआ शरीर से उन अर्जुन के तीरों की याद । अन्तिम इच्छा के बारे पुछने पर मना करने दो दिन समय लेने पर । वे इस पृथ्वी पर से चले गये। अब कल्कि अवतार के जन्म काल में उनकी आत्मा उस वंश में पहचान मिलेगी हमें ऐसा विश्वास है प्रकृति से प्रेम से करेंगे वो इस कलयुग तब वह भारत कम नहीं हो जाता उनका पीपल और बड़ की छाया से वह रति भार भार नहीं खाएगी उनकी आत्मा । यह मेरी आत्मा का चौथा कारण है जन्म लेने का इस धरती पर। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #Ne #viral #treanding #Sachin SHAYAR ANHAR Advocate MD Aalmeen Khan Sujata jha vishwadeepak Anjali Maurya ***** चोथ
AK__Alfaaz..
आज दिल के घाट पर, प्रेम का मेला लगा था, मौनी अमावस्या का...संगम स्नान जो था, नैनों की नदियों का जल, छलक रहा था...भीगोने को तन प्रीत का, आज सभी इकठ्ठा थें, पर...सभी मौन थें, और..... एक दूसरे को देखकर... अपने-अपने, पश्चाताप के नैनों की नदी से, निकलने वाले पवित्र जल मे, मौन हो स्नान कर रहें थें... आज अहंकार का मैल...मन से छूटकर, आत्मा को साफ कर रहा था... क्योंकि...इस काली अमावस्या के बाद, खुशियों का सूरज... दुःख के दक्षिणायन से, सुख के उत्तरायण मे जो आने वाला था...।। भारतीय संस्कृति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण होना बहुत महत्व रखता है... इस समय को बहुत पवित्र भी माना जाता है.. कहा जाता है कि भीष्म प