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kesaravinash
कुछ वर्षों पूर्व तुम चली गई तो सूना पड़ गया संसार। गया था कल तेरे द्वार! उग आए हैं कब्र पर तेरे कुछ भटकते बीजों के भविष्य, कुछ झार- झंखार! पूछा मेरे बेटे ने - कहां हैं दादी? यहां तो झार है, झंखार हैं, सब जगह खार ही खार है। मैंने कहा - बेटे, असुंदर से ही सुन्दर जन्म लेता है। ये जो पेड़ हैं तेरी दादी हैं, हम डार हैं, तुम पात हो, तेरे बच्चे फूल होंगे, और उनके बच्चे फल! और ऐसे ही चलता रहेगा यह संसार। ये झार, ये झंखार, ये पेड़, ये डार! सब, हां, सब! हमारे ही तो हैं परिवार!! पीढ़ियां
Manmohan Dheer
जिगर पूरी ताक़त से इक़ इक़ सच कुबूल करता है तज़ुर्बे ही ज़िन्दगी के ये इक़ इक़ सीढियां बनाते हैं असूल असर में आने लगते हैं आधी उम्र के बाद से इंसा कुछ ऐसे ही मुस्तक़बिल नई पीढियां बनाते हैं . पीढियां
Babli BhatiBaisla
ख्वाबों की दुनिया में है ख्वाहिशों की बेड़ियां बेड़ियों को तोड़ती हैं आजमाइशों की सीढ़ियां सिर्फ सोचना और बड़बोलना है बात कोरी खोखली पुरजोर कोशिशों की चाबी से तू खोल खुशियों की बेड़ियां अपनी मेहनत से चढ़ते जाना है तुझे बुलंदियों की सीढ़ियां बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla सीढ़ियां
Manmohan Dheer
अब कुछ इस तरह तुम्हें मेरी तऱफ़ बढ़ना होगा खुद को पढ़ने के लिए तुम्हें मुझको पढ़ना होगा मैं मौसमों को कह दूंगा कि तुम्हारी मदद में रहें उन हिस्सों के इश्क़ में तुम्हें मुझको गढ़ना होगा सीढियां मैं लगा देता हूँ तुम इरादों को जांच लो चलना नहीं अब हर कदम तुमको चढ़ना होगा सीढियां
यशवंत राय 'श्रेष्ठ'
अगर कोई पाठक या मित्र गण इच्छुक हो सामाजिक उपन्यास 'शुकंजय की हवेली' पढने के लिए तो अपना पता पिन कोड सहित भेजने की कृपा करें। आपके पते पर पब्लिशर द्वारा पुस्तक पहुंचे जाएगी। अगर उपन्यास अच्छा लगे तब पब्लिशर को उपन्यास की कीमत भेजिएगा। अब तक यह पुस्तक अपनी क्षमताओं पर खरी उतरी है। सनातन् संस्कृति और अध्यात्म पर आधारित यह पुस्तक प्रत्येक साहित्य प्रेमी को पढने के लिए प्रेरित कर रही है। 🙏जय श्री राधेकृष्ण जी🙏 ©यशवंत राय 'श्रेष्ठ' उपन्यास